अभी एक सिस्टर को संत का दर्जा मिला तो मन में एक ख्याल आया कि इसी बीच हिन्दू धर्म के आराध्य (चुनावी राजनीती में भाजपा के) श्री राम के बारे में भी थोड़ा सा कुछ लिख दिया जाए. स्थिति तो ये है कि आपने हिन्दू या राम पर कुछ कहा नहीं तो तमाम सारे लोग जो सोचने की शक्ति भी खो चुके हैं वे भी चिंतन करके आपके ऊपर शब्द-भेदी वाण चलाने लग जाते हैं. इसी कारण को ध्यान में रख कर लगा कि कुछ कहा जाए. राम की वास्तविकता, उनके अस्तित्व पर हमेशा से प्रश्न चिन्ह लगाये जाते रहे हैं. कभी कहा गया कि ये कोई एतिहासिक पात्र नहीं हैं, कभी कहा गया कि राम जैसा कोई भी भारत में नहीं हुआ, कभी कहा गया कि गोस्वामी तुलसी दास ने अपने महाकाव्य की सफलता के लिए एक पात्र का निर्माण किया आदि-आदि................
देखा जाए तो भगवान् राम का नाम ही ऐसा है कि जिसको देखो वही जुगाली करना शुरू कर देता है. हमारे बुंदेलखंड में कहा जाता है कि मिचकरियन (मेंढकों) को खांसी उठ रही है. आपने देखा होगा कि इस खांसी में काफ तो बहुत आता है और ये छूत का रोग तेजी से बाकियों को भी अपनी गिरफ्त में ले लेता है। भगवान् राम को लेकर अच्छी बातें इस समय कम होतीं हैं उनकी चर्चा बुराई के रूप में अधिक होती है. बुराई करने के लिए भी दो-तीन प्रकरण हैं और घूम-फ़िर कर इनकी सत्यता को जाने बिना ही राम को विवाद का केन्द्र-बिन्दु बना दिया जाता है.
इन प्रकरणों में एक है राम के द्बारा किया गया शम्बूक वध, शम्बूक वध को लेकर दलित समाज में बहुत ही आक्रोश है. वे तो अब दलित-साहित्य के सहारे ये तक साबित करने में लगे हैं कि राम से बड़ा पापी और शम्बूक से ज्यादा पुण्यात्मा कोई था ही नहीं. यहाँ विवाद इस बात का नहीं है कि दलित समाज आज राम को पापी और ग़लत साबित कर रहा है. समस्या तो ये है कि एक तरफ़ तो यही दलित समाज राम के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता. दलित-साहित्य के पुरोधा राम को काल्पनिक पात्र बताते-बताते अपना साहित्य रचे दाल रहे हैं वहीँ दूसरी तरफ़ शम्बूक वध पर राम की छीछालेदर किए जा रहे हैं. ये क्या बात हुई, पात्र काल्पनिक और उसकी घटना को सत्य माना जा रहा है.
अब यदि राम काल्पनिक हैं तो उनके किसी भी कार्य को उसी कल्पना की तरह देखना चाहिए और यदि शम्बूक का वध सही है तो ध्यान रखना होगा कि राम का अस्तित्व था, है, रहेगा. इसी तरह की घटना समाज में विखंडन की स्थिति पैदा करती है.वैसे आपको याद हो तो भगवान् राम के अस्तित्व पर सवाल तो कांग्रेस पार्टी ने भी उठाये थे और हलफनामा भी अदालत में दिया था। रामसेतु को लेकर. अब यदि राम थे ही नहीं तो किस बात का राम सेतु और किस बात का विवाद पर यदि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी विजयादशमी को राम-लक्ष्मण की आरती उतारतीं हैं तो इसका मतलब कि राम का अस्तित्व आपको स्वीकार है.
अब कहा जायेगा कि ये आस्था का सवाल है, अपनी पसंद का सवाल है तो क्या आपने किसी को मिकी-माउस की, सुपरमैन की, स्पाईडरमैन की किसी हरकत पर विवाद करते देखा है? उसके आसमान में उड़ने पर, इमारतों में चढ़ने पर क्या विवाद करते देखा है? नहीं न......क्योंकि ये काल्पनिक हैं। अब जब राम काल्पनिक हैं तो शम्बूक वध पर विवाद कैसा, उनका नाम लेते लोगों पर साम्प्रदायिकता का शक कैसा, उनकी किसी भी घटना को दलित-विरोधी या समाज विरोधी क्यों मानना?
क्या कुछ और है वास्तविकता या काल्पनिकता का अर्थ?
राम
जवाब देंहटाएंहम
राम के वंशज
इस तरह नपुंसक हो जाएँगे
अपने राम के अस्तित्व पर लगा प्रश्न चिन्ह
चुपचाप सह जायेंगे
क्यों नही आंदोलित करती हमें यह बातें
क्यों हमारा खून उबाल नही खाता है
कुछ कारोबारी नेताओ के अलावा
देश का दूसरा नेता इस बात को क्यों नही उठाता है
हजारो मील दूर छपा कार्टून
देश को भड़का सकता है
हमारे विश्वास के साथ बलात्कार करने वाला
भी तो सज़ा पा सकता है
ढोंग बंद करो ,मंदिरों मे जाना बंद करो
यदि राम की मर्यादा को बरकरार नही रख सकते
तो राम को पूजना बंद करो
भले ही काल्पनिक हों। चित्त में तो अस्तित्व है ही।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छा िलखा है । मैने अपने ब्लाग पर सुरक्षा ही नहीं होगी तो कैसे नौकरी करेंगी मिहलाओं के संदभॆ में स्त्री िवमशॆ पर एक बहस शुरू की है । इस िवषय पर आपके िवचार आमंित्र्त हैं ।
जवाब देंहटाएंhttp://www.ashokvichar.blogspot.comं
राम के अस्तित्व पर सवाल उठाने वाले यह क्यों नहीं पूछते की कुंआरी कोख से बिन सम्भोग ईसा कैसे पैदा हो गए? या मुहम्मद ने जब आयशा से अपनी शादी अंजाम तक पहुंचाई तब उसकी उम्र क्या थी? मुहम्मद को जिन्न- रूह- परियां दिखाई पड़तीं थीं, जन्नत से आवाजें सुनाने का और खुदा से सीधे बातें करने का दावा किया करते थे! आज हममे आपमें से कोई ऐसी बातें या दावे करे तो? पर इस बात पर कोई सवाल नहीं उठता, बस हिंदू और उनके पूज्य ही सॉफ्ट टारगेट हैं.
जवाब देंहटाएंप्रिय महोदय, श्रीराम ऐतिहासिक पात्र हैं या नहीं, यह एक विवाद का विषय हो सकता है. किंतु उनका मिथकीय धरातल इतना मज़बूत है कि उसपर कोई बहस नहीं की जा सकती. इतिहास कागज़ पर या ताम्र पत्रों और शिलालेखों पर सुरक्षित होता है जबकि मिथक ह्रदय के पन्नों पर अंकित रहता है और एक पीढी से दूसरी पीढी तक बिना किसी सरकारी या प्रशासनिक प्रोत्साहन के सहज ही पहुँच जाता है. दलित वर्ग की सोच एक बीमार सोच है. इसलिए उसकी यह मानसिक स्थिति सामयिक है. टिपण्णी में एक सज्जन द्बारा ईसाइयों और मुसलामानों पर किया गया प्रहार भी जिसका आपके लेख से कोई सन्दर्भ नहीं जुड़ता, इसी मानसिक बीमारी का परिणाम है. श्रीराम की कथा संसार के बयालीस देशों में अपने-अपने तौर पर पायी जाती है. बौद्ध और जैन ग्रंथों में भी इसके सन्दर्भ उपलब्ध हैं. कथाओं में थोड़ा बहुत बदलाव अवश्य है किंतु मूल कथा एक ही है. यह जानना भी ज़रूरी है कि कि आधुनिक युग में रामकथा पर भारत में पहला महत्वपूर्ण शोधकार्य फादर कामिल बुल्के ने किया था.जिन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने इसी विषय पर डी.फिल की उपाधि दी थी. विदेशों के ईसाई विद्वान तेसितेरी इत्यादि ही इस दिशा में पहल के अधिकारी हैं. काव्य जगत में निराला राम की शक्ति पूजा से आगे नहीं बढे.मैथिलि शरण गुप्त ने भी साकेत में उपेक्षिता उर्मिला पर ध्यान केंद्रित रखा. आधनिक संदर्भो में राम कथा को नया आयाम प्रोफेसर शैलेश ज़ैदी ने अपने चर्चित रामकाव्य 'अब किसे बनवास दोगे' के माध्यम से दिया. ईसाइयों और मुसलामानों को बुरा कहना बहुत आसान है कभी अपने ज्ञान के फलक का विस्तार करके भी देखना चाहिए. जो अच्छा है वह सबके लिए अच्छा है. हाँ किसी के लिए आदरणीय है और किसी के लिए वन्दनीय पूज्य और उपासना के योग्य. फिलहाल इतना ही.
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