क्या आपने अमरनाथ यात्रा पर हो रहा विरोध देखा या सुना? हाँ भाई----अमरनाथ यात्रा का विरोध नहीं, सरकार द्वारा श्राइन बोर्ड को इस यात्रा के लिए हिन्दुओं को दी गई जमीं का विरोध है।(मालूम था कुछ लोगों को ये बात हज़म नहीं होगी कि कोई हिन्दुओं की बात करे) चलिए अब तो बात स्पष्ट हो गई, मामला कोई भी हो विरोध तो हिन्दुओं को सहयोग करने का हुआ ही। क्या हिंदू अपने ही देश में अपने देवी-देवताओं के दर्शनों के लिए मार खाता रहेगा या यदि कुछ सरकारी स्तर पर या राजनीतिगत किया जाएगा तो उसका परिणाम विरोध होगा? क्या हिन्दुओं को अपने देश में ही भेद-भाव सहना पड़ेगा? (पूरा पढ़ें)
बात विरोध की नहीं धरना की है. हिन्दुओं को सांप्रदायिक सिद्ध करने के कुत्सित प्रयास में एक कदम और. क्या यहाँ यह सवाल नहीं उठता कि क्या सामाजिक सौहार्द की सारी जिम्मेवारी हिन्दुओं ने उठा रखी है? क्या मुस्लिम धर्म के मानने वालों की जिम्मेवारी नहीं कि वे भी कुछ सौहार्द दिखाते? यदि यही हाल रहा तो हिन्दुओं को अपने देश में ही अपने आराध्यों को पूजने के लिए आज्ञा लेनी होगी.
इस मुद्दे पर भाजपा और विहिप द्वारा आयोजित भारत बंद के दिन मैं पटना में था। बेली रोड पर एक बंद स्थल पर मैंने बंद से मुश्किलें झेल रहे कई राहगीरों से पूछा कि क्या आपको पता है ये बंद क्यों है। १५ में से १४ ने कहा नहीं।
जवाब देंहटाएंबिक्रम जी आपकी बात सही है 99 प्रतिशत लोगों को(वे जो राजनीतिक बंद से जुड़े नहीं हैं) पता नहीं होगा की बंद क्यों? बंद किसी समस्या का समाधान नहीं, हड़ताल किसी समस्या का हल नहीं. पर क्या तुष्टिकरण के लिए हिन्दुओं का पिटते रहना उचित है?
जवाब देंहटाएंआपके ब्लाग पर पहली बार आया हूं, एक और हिन्दूवादी जागरूक ब्लाग देख कर बहुत अच्छा लगा, कभी मौका लगे तो महाशक्ति ब्लाग पर भी अवश्य पधारे।
जवाब देंहटाएंचलिये कोई तो और है जो मानसिक रूप से बिमार कहलवा सकने की हिम्मत रखता है, :) जब भी हिन्दूओं की भावनाओं पर लिखता हूँ मुझे यही कहा जाता है. :)
जवाब देंहटाएंसही है.