आज एक समाचार ने सुखद एहसास कराया, वो यह कि देश की राजधानी में हजारों की तादाद में मुस्लिम भाइयों ने एक साथ जुट कर आतंकवाद के खिलाफ विगुल फूंका। सुखद इस कारण नहीं कि मुस्लमान एक साथ आए (क्योंकि मीडिया ने ये भ्रांति फैला रखी है कि समाज मुसलमानों को आतंकवादी मानता है) खुशी इस बात पर हुई कि अब आतंकवादी किसी भोले भले मुस्लमान को मजहब के नाम पर हिंसा की ओर नहीं ले जा सकेंगे।
आतंकवाद का सबसे बड़ा हथियार किसी भी वर्ग का उसको मदद करना ही होता है, चाहे वो उसको किसी भी रूप में मिले। मजहब, कुरान, अल्लाह का नाम लेकर खून खराबा करते लोगों को भी अब समझ में आ जाएगा कि उनके द्वारा फैलाया जा रहा वैमनश्यता का वातावरण अब नहीं टिकने वाला।
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