बधाई हो, मंगल ग्रह पर आदमी की पहुँच के लिए। संसार के तमाम सारे वैज्ञानिकों के लिए ये बड़ी ही खुशी का दिन होगा? होना भी चाहिए, आख़िर अरबों, खरबों डॉलर लगा कर मंगल की धरती को छीने का सौभाग्य मिला है। भले ही ये सौभाग्य किसी मशीन के सहारे से मिला हो पर मिला तो सही। वैसे भी आदमी की ज़िंदगी मशीन से क्या कम है? चलने, फिरने, खाने, पीने, हंसने आदि के लिए मशीन की जरूरत आम हो गई है।
फिलहाल मुद्दे से भटकने की जरूरत नहीं है, बात हो रही है मंगल को छू लेने की। सवाल ये उठता है कि हम क्या हासिल करेंगे मंगल को खंगाल कर? ये तो साफ दिख रहा है कि वहाँ वर्तमान में पानी या किसी प्रकार का जीवन नहीं दिखाई दे रहा है। ऐसी स्थिति में वहाँ की धूल फांकने से क्या हासिल होगा? जहाँ तक बात मंगल पर आदमी को बसाने की है तो ये इतना आसन काम नहीं है। एक रोकेट को भेजने में कितना खर्च आता है ये सभी को मालूम है, तब बिना वजह परेशां होकर इधर उधर भटकने से क्या मिलेगा?
हाँ, इस मंगल के अभियान से एक बात तो सीखी जा सकती है और वो ये कि हम अभी भी न चेते तो हमारी धरती का भी वही हाल होगा जो मंगल का दिख रहा है, धूल ही धूल बस धूल ही धूल। यहाँ वैज्ञानिकों को सोचना होगा कि ऐसा तो नहीं कि मंगल पर कभी जीवन रहा हो, जैसा वहाँ कि जमीन की स्थिति को देख कर लग रहा है, और धरती के आदमियों की तरह वे उसे बर्बाद कर ख़ुद भी समाप्त हो गए हों? आख़िर मंगल की सतह पर दिखते नदियों, झीलों के निशान क्या साबित कर रहे हैं?
हम मंगल, चाँद पर जाने की सोचने के स्थान पर धरती को हरा भरा बनने का प्रयास करें। आदमी को किसी और जगह बसाने के स्थान पर धरती पर ही थोड़ी सी जगह दे दे, लाखों लाख धन को बर्बाद करने के स्थान पर आदमी के स्वास्थ्य को सुधारने में लगाएं तो मानव का कुछ भला होगा।
पर पता है काली खोपडी वाला आदमी इतनी आसानी से नहीं मानने वाला, जब धरती पर भी धूल ही धूल दिखेगी, पानी, नदियों, झीलों के बस निशान ही रहेंगे तब हम सब चिल्ला चिल्ला कर कहेंगे बधाई हो, मंगल पर पहुँचने की।
बधाई देने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं बचेगा. सही कह रहे हैं.
जवाब देंहटाएंचिन्तायें बिल्कुल वाजिब है काली खोपडी वाला आदमी
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