16 मई 2008
विकास के नाम पर विनाश की दौड़
धरती को विनाश की कगार पर पहुचाने के बाद भी हम किसी दूसरे ग्रह पर जीवन की तलाश मे माथापच्ची करते दिख रहे हैं. विकसित देशों की नक़ल करके भारत के वैज्ञानिक भी चाँद और मंगल की और भागने की कोशिश कर रहे हैं. यह क्या विकास की दौड़ है भारतीयों की? अपने को अभी खाने को पर्याप्त रोटी नहीं मिल पा रही है, बीमारों को उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है, बच्चों को सही शिक्षा नहीं मिल पा रही है, आम आदमी को सुरक्षा नहीं मिल पा रही है और हम हैं कि चाँद की तरफ दौड़ रहे हैं. आख़िर ये दौड़ किसके लिए? चाँद पर जीवन की तलाश किसके लिए? विकास से लेकर विनाश तक की दौड़ उनके लिए है जो संतृप्त हैं, हम अभी अपने अस्तित्व को तलाश रहे हैं. विकास के नाम पर विनाश की इस दौड़ से हमे कुछ भी हासिल होने वाला नहीं….सिवाय पछताने के.
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