चुनावी मौसम सामने देख जूते से रहा नहीं गया. अनुकूल
अवसर देख वो किसी जूतेबाज़ के पैर से बाहर आ गया. वो एक बार फिर उछला. वो एक बार
फिर निशाना चूक गया. सवाल उठता है कि जब अवसर मनोनकूल था, व्यक्ति मनमाफिक था तो
जूता अपने निशाने से क्यों भटका? कहीं जूते को लक्ष्य तक पहुँचाने वाले का मकसद
सिर्फ जूता उछालना ही तो नहीं था? चूँकि जूता उछला और लक्ष्य तक पहुँचा भी किन्तु
निरर्थक रूप से. वह न अपने लक्ष्य को भेद पाया और न ही उछलने को सिद्ध पाया. तो
फिर ऐसी उछाल से क्या तात्पर्य जो आपको लक्ष्य-भेदने से दूर कर दे? वैसे जूते का
उछलना कई बार सवालों का उछलना होता है. इसके बाद भी हर बार बस जूता उछलता ही है,
सवाल कहीं पीछे रह जाते हैं. सवालों के जवाबों को छोड़कर सब सामने आने लगता है.
आखिर जूता उछालने वाले ने सिर्फ प्रचार के लिए तो जूता उछाला नहीं होगा? जूता पैर
से निकालने, फिर निशाना साधने और उसके बाद लक्ष्य पर फेंकने में जो मेहनत लगी वो
सिर्फ खबरों में आने के लिए नहीं हुई होगी. आखिर उसके जानबूझ कर निशाना चूकने या
फिर धोखे से चूक जाने में भी कोई मामला छिपा होगा? इनको खबर बनाने के बजाय जूते को
खबर बना दिया जाता है. और विडम्बना भी देखिये, उस जूते को खबर बना दिया जाता है जो
अपने दूसरे साथी जूते से अलग हो गया. जो जूता अपने लक्ष्य से भटक गया. कम से कम एक
बार उस निशानेबाज से भी जानकारी करनी चाहिए कि आखिर उसने जूते को उछालने का कृत्य
क्यों किया? उछलने वाला जूता किसके पैर का था? जूते उछालबाज़ी की दुनिया में शायद
ये सब निरर्थक सा लगे किन्तु अपने आपमें बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. आखिर यदि जो
व्यक्ति निशाने पर था वो अपने लक्ष्य से भटका तो फिर निशानेबाज का निशाना क्यों
चूका? यदि जूता अपने ही पैर का था तो फिर उस शिद्दत से क्यों नहीं उछला कि लक्ष्य
से जा टकराता? यदि जूता उछालना महज प्रचार था तो फिर एक ही क्यों कई-कई जूते उछाले
जा सकते थे. एक ही व्यक्ति पर क्यों कई-कई पर उछाले जा सकते थे. चुनावी मौसम में
ही जूते का उछलना क्यों?
गौर से देखिये, तो ये सिर्फ जूता उछलने की क्रिया नहीं है
वरन मानसिकता के उछलने की क्रिया है. लोकतान्त्रिक व्यवस्था के उछलकर गिरने की
क्रिया है. जनतंत्र के जन से दूर होते जाने की प्रतिक्रिया है. काश कि अबकी जूता
उछले तो निशाने पर लगे. काश कि अबकी जूता उछले तो सवालों को हल करता हुए उछले.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " चटगांव विद्रोह की ८६ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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