18 नवंबर 2008

बेटियों के लिए........

कल अपने एक रिश्ते के बड़े भाई के इलाज के सम्बन्ध में एक नर्सिंग होम में कुछ मेडिकल टेस्ट के लिए जाना पड़ा. दिल से सम्बंधित कुछ गंभीर परेशानी थी, सबके आशीर्वाद से उनको ज्यादा दिक्कत नहीं हुई (कहा जाए तो दूसरा जीवन पाया है ऐसा डाक्टर का कहना था) बहरहाल कई सारे टेस्ट के बाद जब स्थिति काबू में लगी तो शरीर को कुछ आराम की मुद्रा में लाकर वहाँ पडी सीट पर टिका दिया. कुछ इधर-उधर देखने की प्रक्रिया में नजर एक पोस्टर पर गई. उस पोस्टर पर बेटे और बेटियाँ शीर्षक से एक कविता लिखी थी.
अपना क्षेत्र कन्या भ्रूण हत्या निवारण वाला ही है इस कारण उस कविता पर विशेष गौर दिखाया। कविता पहले भी किसी से सुन रखी थी तब भी उस कविता के रचनाकार का नाम पता नहीं चल पाया था और अब कल भी कविता सामने पोस्टर के रूप में छपी होने के बाद भी उस पर उसके रचनाकार का नाम नहीं दिख रहा था.
बहरहाल कविता हमें उस समय भी बहुत मार्मिक लगी, आज भी लगी और जब तक बेटे-बेटियों का भेद समाप्त नहीं होता तब तक उस कविता की मार्मिकता समाप्त नहीं होगी. आप भी उस कविता पर एक निगाह जरूर डालियेगा. कविता के रचनाकार को साधुवाद..................
बेटे और बेटियाँ
बोए जाते हैं बेटे
और उग आतीं हैं बेटियाँ,
खाद-पानी बेटों में
और लहलाहातीं हैं बेटियाँ,
एवरेस्ट की ऊँचाइयों तक ठेले जाते हैं बेटे
और चढ़ जातीं हैं बेटियाँ,
रुलाते हैं बेटे
और रोतीं हैं बेटियाँ,
कई तरह गिरते और गिराते हैं बेटे
और संभाल लेतीं हैं बेटियाँ,
सुख के स्वप्न दिखाते हैं बेटे
जीवन का यथार्थ होतीं हैं बेटियाँ,
जीवन तो बेटों का है
और मारी जातीं हैं बेटियाँ.

8 टिप्‍पणियां:

  1. एक दम यथार्थ काव्य है, दिल को चीर देने वाला। अगर किसी के पास हो।

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  2. बेहतर कविता की प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें

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  3. सुंदर मार्मिक कविता की प्रस्तुती के लिये बधाई/

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  4. aise kavitayon ke poster ab metro cities mein adhik chipkane ki zaroorat hai -annu anand

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  5. वाकई में बहुत ही मार्मिक रचना है।

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