जीवन भागदौड़ का नाम है. अभी क्या काम है और अगले ही पल क्या काम निकल आए पता नहीं? अभी कल ही आए और आज फ़िर जाना पडा. ये भागदौड़ ही आदमी के जीवन का हिस्सा है. आने-जाने का ये सिलसिला इंटरव्यू से शुरू हुआ और अब शादी-विवाह के कार्यक्रमों तक जा पहुँचा. शादियों में आने-जाने का अपना ही एक मजा है. घर-परिवार के अपने बड़े-बुजुर्गों से जब उनके समय की शादियों के बारे में सुनते हैं तो लगता है की क्या वाकई लोगों के पास इतना समय होता था कि वे लोग तीन-तीन, चार-चार दिन तक बारात का आनंद उठाते रहते थे? और क्या लोगों में खातिरदारी का इतना जज्बा होता था कि इतने दिनों तक खातिरदारी करते रहते थे?
हमारे लिए तो हो सकता है कि ये बातें इतनी विस्मयकारी न हों क्योंकि किसी न किसी रूप में गाँव से घर-परिवार से बराबर संपर्क बना रहा. ये बातें उन लोगों के लिए अवश्य ही विस्मयकारी हो सकतीं हैं जिन्हों ने आज की शादियाँ देखीं हैं. बारात का आना, लड़के वालों का अपना नखरा दिखाना, किसी तरह सौदेबाजी की तरह से सभी रस्मों का निर्वहन करना...................और बस लगभग 10-12 घंटे में शादी का संपन्न हो जाना. अब ये हो गई है शादी. अब न तो पता लगता है कि कौन लड़की का चाचा है, न पता चलता है कि कौन लड़के का जीजा है, न पता चले कि कौन बुआ, कौन मौसी है.............न पता ये कि कौन साला-कौन साली है. संबंधों की अहमियत समाप्त हो जाने के कारण उनका महत्त्व ख़ुद व ख़ुद समाप्त हो गया है.
अब तो रिश्ते में मजाक का सम्बन्ध होने के बाद भी मजाक करने से डर लगता है, साली के साथ छेड़छाड़ करने से भी डर लगता है, जीजा को अपना महत्त्व दिखने से डर लगता है, साले पर राब गांठने से डर लगता है.........देखा जाए तो सभी तरह के संबंधों में एक तरह का डर सा पैदा हो गया है. इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण शादी-विवाह को भी व्यावसायिक रूप से संपन्न किया जाना है. लेन-देन के कारण अब आत्मीयता ही नहीं आ पाती है. एक-एक रस्म, एक-एक काम का पहले से ही हिसाब तय कर दिया जाता है. ये तक तय हो जाता है कि किस सम्बन्धी का स्वागत किस तरह और कौन करेगा. क्या इस तरह से आपस में आत्मीयता रह सकती है?
(आप लोग ये न समझियेगा कि एकाएक इंटरव्यू से लौटने के बाद आध्यात्म जाग गया है..........दरअसल एक शादी के बारे में पता चला और उसके परिणाम के बारे में भी पता चला. जहाँ शादी के मात्र तीन माह बाद ही पति-पत्नी में तलाक की प्रक्रिया अपनायी जाने लगी. तब लगा कि ये संबंधों का ही ह्रास है कि जन्म-जन्मान्तर के संबंधों की स्थापना करने वाला देश अब लिव-इन-रिलेशन जैसे संबंधों की वकालत कर रहा है. )
तीन माह बाद आने वालों को हम वापस लौटा देते हैं। हिन्दू विवाह में तलाक की अर्जी विवाह के साल भर के पहले देना संभव नहीं।
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