पहलगाम में
आतंकियों की अप्रत्याशित रूप से धार्मिक पहचान कर हिन्दुओं की हत्याएँ करने के बाद
समूचे देश ने केन्द्र सरकार से कठोर कार्यवाही की अपेक्षा की थी. निर्दोषों को मौत
की नींद सुलाने के साथ-साथ ‘मोदी को बता देना’ जैसी चुनौती के बीच जनसामान्य को दृढ़ विश्वास था कि केन्द्र
सरकार की तरफ से जबरदस्त जवाबी कदम उठाया जायेगा. दिन बीतते जा रहे थे, सरकार की चुप्पी बयानों के सन्दर्भ में ही टूट रही थी, मीडिया की तरफ से लगातार कुछ न कुछ बड़ा होने जैसा संकेत दिया जाता मगर
प्रत्येक दिन जितनी आशा के साथ आता, उतनी निराशा के साथ चला
जाता. उरी और पुलवामा के आतंकी हमलों के बाद सरकार की तरफ से की जा चुकी सैन्य
स्ट्राइक के बाद भी इस बार की चुप्पी जनसामान्य के भीतर एक तरह के रोष को जन्म दे
रही थी. पहलगाम हत्याकांड के बाद आतंकवादियों, पाकिस्तान के
विरुद्ध उपजा क्रोध अब सरकार की ख़ामोशी, कदमों को देखते हुए
रोष में बदलने लगा था. जनसामान्य की एकराय सिर्फ और सिर्फ युद्ध जैसा कठोर कदम उठाने
की थी. बहुसंख्यक भारतीय नागरिक भी पाकिस्तान को, पाकिस्तान
समर्थित आतंकवादियों को सिर्फ सबक सिखाने की मंशा नहीं बल्कि उनका सम्पूर्ण
विध्वंस करने की चाह रख रहे थे.
केन्द्र सरकार ने पहलगाम
घटना के बाद से ही अपनी सक्रियता शुरू कर दी थी. गृह मंत्रालय के आदेश पर एनआईए ने हमले की जाँच आरम्भ
की. सिन्धु जल समझौता अनिश्चितकाल के लिए निलम्बित कर दिया गया. पाकिस्तान से
युद्ध होने, तनाव की स्थितियों के बाद भी इस समझौते को कभी निलम्बित नहीं किया गया
था. यह पहली बार है जबकि भारत ने इसको निलम्बित किया. पाकिस्तान ने भारत के इस कदम को ‘युद्ध की कार्यवाई’ बताया. पाकिस्तानी नागरिकों के सभी
प्रकार के वीजा रद्द करते हुए उन्हें तत्काल वापसी के आदेश दिए गए. इसी के साथ इस्लामाबाद
में भारतीय मिशन और नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के कर्मचारियों की संख्या को
कम कर दिया गया. पाकिस्तानी उच्चायोग के रक्षा, नौसेना और वायुसेना सलाहकारों को एक सप्ताह में भारत छोड़ने
का आदेश भी दिया गया. सेना के सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिए गए. केन्द्र सरकार के ऐसे
क़दमों, निर्णयों से
स्पष्ट संकेत मिला कि इस बार वह शांत बैठने के मूड में नहीं है.
केन्द्र सरकार
स्वयं तो कूटनीतिक,
राजनैतिक निर्णय लेते हुए काम कर रही थी साथ ही सैन्य गतिविधियों को भी सक्रियता
प्रदान कर रही थी. सरकार की तरफ से लगातार बैठकों के द्वारा सेना को उनकी सैन्य
गतिविधियों के लिए खुली छूट देने जैसा आक्रामक एवं विश्वासपरक कदम उठाकर दर्शाया
गया कि सरकार सुस्त अथवा खामोश नहीं है. भारतीय वायुसेना द्वारा सेंट्रल सेक्टर में
एक बड़ा सैन्य अभ्यास शुरू किया गया, जिसमें पहाड़ी और जमीनी लक्ष्यों पर हवाई हमलों
का अभ्यास किया गया. इसे 'आक्रमण'
नाम दिया गया जिससे इसका उद्देश्य स्पष्ट
हो जाता है. वायु सेना के अलावा नौसेना ने अरब सागर में अपनी गतिविधियों को बढ़ा
दिया था. युद्धपोतों को हाई अलर्ट पर रख कर कई एंटी-शिप और एंटी-एयरक्राफ्ट
मिसाइलों का सफलतापूर्वक परीक्षण भी किया गया.
इसके बाद भी
जनाक्रोश कम नहीं हो रहा था. जनमानस पाकिस्तान के विरुद्ध खुले रूप में सैन्य
गतिविधि को देखना चाहता था. दरअसल जनता का मनोविज्ञान तत्काल कार्यवाही करने का, तुरंत बदला लेने का होता है. उसके
लिए रणनीति, कूटनीति, राजनीति आदि का
कोई सन्दर्भ नहीं होता है. इसके उलट किसी भी सरकार के लिए युद्ध तात्कालिक
प्रतिक्रिया के रूप में नहीं स्वीकारा जाता है. युद्ध का तात्पर्य किसी दूसरे देश
पर केवल हमला करना भर नहीं होता है बल्कि अपने देश, सेना, नागरिकों की अत्यल्प क्षति के साथ युद्ध को अपने पक्ष वाली स्थिति में ले
जाना होता है. हम सभी वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कई युद्ध देख रहे हैं, जो लम्बे समय के बाद भी अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुँचे हैं. भारत सरकार
की मंशा भी कुछ इसी तरह की रही होगी कि बिना युद्ध जैसे ट्रैप में फँसे पाकिस्तान
को सबक सिखाया जाये. देखा जाये तो दक्षिण एशिया की वर्तमान भू-राजनैतिक स्थितियाँ
भारत के पक्ष में नहीं हैं. सभी पड़ोसी देशों में राजनैतिक हलचल मची हुई है. ऐसे
में अनिश्चितकालीन अथवा दीर्घकालिक युद्ध वाला माहौल न केवल देश को क्षति पहुँचा
सकता है बल्कि चीन को हस्तक्षेप करने का अवसर प्रदान कर सकता है. सम्भव है कि ऐसा
कुछ विचार करके केन्द्र सरकार किसी सटीक कदम को उठाने की तैयारियों में सक्रिय हो.
ऐसा कुछ उस समय
समझ में भी आया जबकि केन्द्र की तरफ से युद्ध जैसी स्थितियों से निपटने के लिए
नागरिकों को आगाह किया गया. एक निश्चित तिथि पर देश में मॉक ड्रिल, ब्लैक आउट के
द्वारा युद्ध से निपटने के लिए जन-जागरूकता को बढ़ाने वाले दिशा-निर्देश जारी किये
गए. इधर जनमानस में ब्लैक आउट को लेकर, मॉक ड्रिल को लेकर सक्रियता, सजगता देखने को मिल
रही थी उधर सरकार कुछ बड़ा करने के मूड में थी. केन्द्र सरकार द्वारा अप्रत्याशित
कदम उठाते हुए मॉक ड्रिल, ब्लैक आउट वाले दिन से पहले ही पाकिस्तान और पीओके में मिसाइल
स्ट्राइक करके पाकिस्तान समर्थित आतंकियों की कमर तोड़ दी.
भारत की तीनों
सेनाओं ने अपनी संयुक्त शक्ति के साथ आधी रात के बाद ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ के द्वारा
पाकिस्तान और पीओके स्थित आतंकवादी ठिकानों पर सटीक सैन्य हमले किये. ख़ुफ़िया
जानकारियों के आधार पर चिन्हित 21 आतंकी ठिकानों में से अभी 09 ठिकानों को सेना ने
अपना निशाना बनाया है. इनमें पाँच केन्द्र पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में और चार
पाकिस्तान में स्थित थे. इन हमलों में विशेष बात यह रही कि पाकिस्तान के किसी भी
सैन्य ठिकाने को और नागरिकों को निशाना नहीं बनाया गया. सेना का निशाना पूरी तरह
आतंकी केन्द्रित रहा, इसमें लश्कर-ए-तैयबा, टीआरएफ सहित कई आतंकी ठिकाने शामिल
रहे. बहावलपुर (जैश-ए-मोहम्मद),
मुरीदके (लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय), टेहड़ा कलां (जैश-ए-मोहम्मद), सियालकोट (हिजबुल मुजाहिदीन), बरनाला (लश्कर-ए-तैयबा), कोटली (जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल
मुजाहिदीन का प्रशिक्षण शिविर), मुजफ्फराबाद (लश्कर-ए-तैयबा
का आतंकी शिविर और जैश-ए-मोहम्मद का संचालन केन्द्र) इन हमलों में पूरी तरह ध्वस्त
कर दिए गए.
केन्द्र सरकार ने
एक सर्वदलीय बैठक में स्पष्ट रूप से कहा कि ऑपरेशन सिन्दूर अभी ख़त्म नहीं हुआ है.
यह स्पष्ट सन्देश है कि आतंकी संगठनों का, उनके ठिकानों का सफाया किये बिना भारतीय सेना रुकने वाली नहीं
है. अचम्भित करने वाली भारत की सैन्य कार्रवाई में दर्जनों आतंकियों और उनके
करीबियों के मारे जाने की पुष्टि खुद पाकिस्तान ने की है. केन्द्र सरकार द्वारा उरी
हमले के बाद की सर्जिकल स्ट्राइक तथा पुलवामा अटैक के बाद की एयर स्ट्राइक के बाद
वर्तमान मिसाइल स्ट्राइक के द्वारा पाकिस्तान को स्पष्ट सन्देश दिया गया है कि
भारत अब पाकिस्तानी आतंकवाद का घिनौना खेल बर्दाश्त नहीं करने वाला. निश्चित ही
ऐसा दृढ़ विश्वास और आक्रामक रणनीति जनाक्रोश को समाप्त करेगी साथ ही आतंकियों का
भी सर्वनाश करेगी.
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