बांग्लादेश से शेख
हसीना के पलायन के बाद वहाँ हुए सत्ता परिवर्तन से लगातार हालात बिगड़ रहे हैं.
वहाँ हिन्दुओं सहित अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं.
चटगाँव, पंचगढ़, बोगुरा,
रंगपुर, शेरपुर किशोरगंज, सिराजगंज, नरैल, पटुआखली, सतखीरा, तंगैल, हबीगंज आदि जगहों सहित दो दर्जन से अधिक जिलों में कट्टरपंथियों का आतंक जारी
है. इन स्थानों पर हिन्दुओं पर न सिर्फ हमले हो रहे बल्कि उनकी सम्पत्तियों को भी लूटा
जा रहा है. कट्टरपंथियों
के हमलों में उनके घरों,
दुकानों, धार्मिक स्थलों को आग के हवाले किया जा रहा है. वैसे बांग्लादेश में
हिन्दुओं पर हमले होना कोई नई बात नहीं है. उनके साथ ऐसी घटनाएँ विगत वर्षों में
लगातार होती रही हैं. हिन्दुओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा के सम्बन्ध में भारतीय
संसद में विदेश मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आँकड़े भयावह प्रतीत होते हैं. इन आँकड़ों
के अनुसार हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा की 47 घटनाएँ 2022 में दर्ज की गईं थीं, जबकि
2023 और 2024 में क्रमशः 302 और 2200 घटनाएँ दर्ज की गईं. विदेश राज्यमंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने लोकसभा में एक
लिखित जवाब में अल्पसंख्यक तथा मानवाधिकार संगठनों के आँकड़ों का हवाला देते हुए यह
जानकारी दी.
बांग्लादेश को
इंडिया लॉक्ड देश कहा जाता है. दरसअल भारत और बांग्लादेश के बीच 4367 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है, जो बांग्लादेश
की अंतरराष्ट्रीय सीमा का 94 प्रतिशत है. एक दृष्टि से बांग्लादेश लगभग चारों तरफ़
से भारत से घिरा हुआ है. ऐसे में बांग्लादेश की वर्तमान अराजक स्थिति का नकारात्मक
प्रभाव भारत पर भी पड़ने की आशंका है. बांग्लादेश से भारत को पूर्वोत्तर के राज्यों
में सहज सम्पर्क मार्ग होने के कारण सीमा सम्बन्धी मामलों के साथ-साथ सुरक्षा,
शरणार्थियों के मुद्दे पर भी प्रभाव पड़ने की सम्भावना है. बांग्लादेश में ऐसी
अराजक स्थिति होने के बाद भी भारत की ओर से बांग्लादेश के साथ राजनैतिक, व्यापारिक सम्बन्धों को बनाये रखने
का एक बहुत बड़ा कारण बांग्लादेश का अस्थिर होना भी है. ऐसा समझा जा रहा है कि यदि
भारत के द्वारा बांग्लादेश के साथ सम्बन्धों को कुछ समय के लिए भी बंद कर दिया गया
तो वहाँ पर राजनैतिक अस्थिरता तो बढ़ेगी ही साथ ही वहाँ की अर्थव्यवस्था को भी
नुकसान पहुँचने की आशंका है. ये स्थितियाँ केवल बांग्लादेश को ही नहीं बल्कि भारत
को भी नुकसान पहुँचा सकती हैं.
बांग्लादेश दक्षिण
एशिया में भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और एशिया में बांग्लादेश का
दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर भारत है. एशिया में भारत के साथ सबसे ज़्यादा निर्यात बांग्लादेश
करता है. उसने वित्त वर्ष 2022-23 में दो अरब डॉलर का निर्यात किया था. इसी वित्त वर्ष में दोनों देशों के बीच
द्विपक्षीय व्यापार 15.9 अरब
डॉलर का रहा था. भारत ने पिछले आठ सालों में बांग्लादेश को सड़क, रेल, शिपिंग और पोर्ट्स निर्माण आदि विकास परियोजनाओं के
लिए आठ अरब डॉलर की मदद की है. इसके अलावा बांग्लादेश में लगभग एक चौथाई कपड़ा इकाइयाँ
भारतीय कम्पनियों के स्वामित्व में हैं. ऐसे में यह अशांति इन कपड़ा निर्माण इकाइयों
को भी प्रभावित करेगी.
व्यापारिक रूप से
सशक्त सम्बन्धों के बाद भी भारत द्वारा सम्बन्ध-विच्छेद की नीति को हाल-फिलहाल
इसलिए नहीं अपनाया जा रहा है क्योंकि उसके लिए सदैव से चिंता का विषय यही रहा है
कि कहीं बांग्लादेश के सम्बन्ध चीन के साथ ज़्यादा मजबूत न हो जाएँ. यह चिंता अब
और गहरी हो जाती है जबकि बांग्लादेश शेख हसीना की गैर-मौजूदगी में वैश्विक राजनीति
में अपने कदम बढ़ा रहा है. वर्तमान परिदृश्य में बांग्लादेश की नजदीकियाँ चीन के
साथ-साथ पाकिस्तान के साथ भी बढ़ती दिख रही हैं. आज भी बांग्लादेश में निवेश का
सबसे बड़ा स्रोत चीन है. चीन द्वारा वैश्विक सम्पर्क और सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से
शुरू की गई एक बहुआयामी विकास रणनीति, जिसे बेल्ट एंड
रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के नाम से जाना जाता है, का हिस्सा
बांग्लादेश भी है. यदि चीन का बांग्लादेश में निवेश और निर्यात को देखें तो यह
क्रमशः सात अरब डॉलर और बाईस अरब डॉलर का है. बांग्लादेश में मुहम्मद युनुस के
अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के बाद पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों की नजदीकी का
उदाहरण पाकिस्तान के एक मालवाहक पोत का कराची से बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी तट
पर स्थित चटगाँव बंदरगाह पर पहुँचना है. 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद से दोनों देशों के बीच
यह पहला समुद्री सम्पर्क है. इसे पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश के सम्बन्ध बढ़ने का
सशक्त कदम माना जा सकता है. इसके साथ-साथ पाकिस्तान से मजबूत सम्बन्ध रखने वाले
जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन बांग्लादेश में अपनी पकड़ बना रहे हैं. इससे बांग्लादेश
के साथ भारत की व्यापक खुली सीमा पर घुसपैठ और सुरक्षा मामलों का खतरा बढ़ गया है.
भारतीय सन्दर्भों
में यदि देखा जाये तो उसके पड़ोस में अस्थिरता का निश्चित रूप से उसकी अपनी
सुरक्षा पर असर पड़ेगा. इस क्षेत्र का सुरक्षा वातावरण पहले से ही काफी बिगड़ा हुआ
है, जिसे अफ़गानिस्तान
से लेकर बांग्लादेश तक और मालदीव से लेकर म्यांमार तक देखा जा सकता है. बांग्लादेश
की स्थिति इसलिए भी भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि इससे बड़ी संख्या में
शरणार्थियों की संभावना है. ऐसी स्थिति में भारत को अस्थिर करने के लिए पाकिस्तान के
अनेक कट्टरपंथी संगठनों के पास सक्रिय होने का अवसर है. भारत को इन उभरती सुरक्षा
और विदेश नीति सम्बन्धी चुनौतियों से निपटना होगा. इस सन्दर्भ में उठाये गए कदम न
केवल भारत की आर्थिक स्थिति को निर्धारित करेंगे बल्कि उसकी राजनैतिक क्षमता को भी
स्थापित करेंगे.
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