कई बार कुछ
खुशियाँ ऐसी होती हैं जो व्यक्तिगत रूप से खुद अपने से सम्बन्धित नहीं होती हैं
मगर इसके बावजूद वे खुशियाँ अपने से जोड़ती हैं, प्रभावित करती हैं. इस तरह की खुशियों में एक तरह का अनदेखा
सा बंधन होता है जो किसी न किसी रूप में बंधा तो होता है मगर सामाजिक रूप में नजर
नहीं आता है. इस तरह के बंधन बहुत ही आंतरिक, अत्यंत ही
आत्मीय होते हैं. इनमें भले ही सामने वाले से कोई रिश्ता न हो, भले ही उससे कोई सम्बन्ध न हो मगर कुछ ऐसा होता है जो प्रभावित करता है
और उसकी खुशियों से खुद को जोड़ता है.
कुछ इसी तरह की
ख़ुशी आज मिली जबकि खबर मिली कि पेरिस ओलम्पिक 2024 में भारत को अपना पहला पदक
निशानेबाजी में मिला. यह पदक कांस्य के रूप में आया जिसे मनु भाकर ने दस मीटर एयर
पिस्टल स्पर्धा में प्राप्त किया. यहाँ विशेष बात ये है कि ओलम्पिक के इतिहास में निशानेबाजी
में किसी महिला द्वारा हासिल किया गया यह पहला पदक है.
इस जीत से ख़ुशी
मिलना स्वाभाविक ही है क्योंकि ओलम्पिक के दूसरे ही दिन देश के नाम पहला पदक आया.
हम लोग उस पीढ़ी से आते हैं, जिसने ओलम्पिक में अपने देश के खिलाड़ियों को बस खेलते ही देखा है. पदकों
का सूखा ख़त्म होने के लिए वर्षों तक इंतजार करना पड़ा था. इस कारण से ख़ुशी मिलने के
अलावा इसलिए भी इस पदक से ख़ुशी मिली क्योंकि पाँच वर्ष पूर्व 2019 में हमने भी
निशानेबाजी में प्रदेश स्तर की प्रतियोगिता में रजत पदक प्राप्त करते हुए राष्ट्रीय
स्पर्धा के लिए जगह बनाई थी. संयोग से यह स्पर्धा भी दस मीटर एयर राइफल की थी.
बहरहाल, कतिपय पारिवारिक कारणों से, कोरोना के कारण उसके बाद आगे आना नहीं हो सका किन्तु भारतीय निशानेबाजों
की छोटी से छोटी जीत भी हमें व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करती है, ख़ुशी देती है. मनु को बधाई, शुभकामनायें; साथ ही सभी भारतीय खिलाड़ियों को भी शुभकामनाएँ कि देश को रोज ही कई-कई
पदक प्रदान करवाते रहें.
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