12 जून 2024

माउंट एवरेस्ट पर बढ़ता कचरा

विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट हमेशा से लोगों के लिए कौतूहल का विषय रही है. 1953 में जब पहली बार एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने इस पर पहुँचने का दुस्साहस किया तो वह सम्पूर्ण विश्व की कल्पनाशीलता की विजय थी. उसके बाद से आज तक एवरेस्ट विजय का स्वप्न लेकर हजारों पर्यटक इस ओर उमड़ते हैं. नेपाली भाषा में सागरमाथा अर्थात आसमान में माथा नाम से पहचानी जाने वाली इस पर्वत चोटी का प्रथम सर्वे 1955 में भारत ने किया. ब्रिटिश सर्वेयर जॉर्ज एवरेस्ट के सम्मान में ही इसे माउंट एवरेस्ट नाम से जाना गया. 8848 मीटर ऊँचा एवरेस्ट हिमालय का एक हिस्सा है जो एशिया के छह देशों से गुजरता हुआ 2400 किमी तक फैला है.    

 

एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे द्वारा एवरेस्ट विजय के बाद अपनी कल्पना को वास्तविकता में बदलने का एहसास लेकर हजारों की संख्या में पर्यटक और पर्वतारोही यहाँ आने लगे हैं. इतनी बड़ी संख्या में यहाँ लोगों के आने का असर अब दिख रहा है. विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटी आज दुनिया का सबसे ऊँचा कचरा डंपिंग क्षेत्र कहलाने लगी है. इस क्षेत्र में 1976 में पहाड़ और वन्यजीवों की रक्षा के लिए सागरमाथा राष्ट्रीय उद्यान स्थापित किया गया. इसकी महत्ता और विशेषता को देखते हुए 1979 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया. एक अनुमान के अनुसार इस पार्क को देखने के लिए ही प्रतिवर्ष दस हजार लोग यहाँ आते हैं. इन आगंतुकों के साथ-साथ एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले पर्वतारोहियों की संख्या भी सैकड़ों में रहती है. पर्वतारोहण के अनुकूल मौसम में पाँच सौ से अधिक लोग एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास करते हैं. प्रत्येक पर्वतारोही के साथ एक स्थानीय कर्मचारी भी रहता है जो अभियान का मार्गदर्शन करने के साथ-साथ रास्ते में उपयोग आने वाले तमाम उपकरणों, भोज्य पदार्थों आदि को लेकर चलता है. पर्वतारोहण करने के पूर्व प्रत्येक व्यक्ति को यहाँ बने हुए शिविरों में कई सप्ताह रहकर खुद को पर्वतारोहण के अनुकूल बनाया जाता है. इस दौरान प्रति व्यक्ति आठ किग्रा तक कचरा उत्पन्न होता है. इसमें ऑक्सीजन के खाली डिब्बे, छोड़े गए टेंट, खाद्य-पदार्थों के कंटेनर आदि सहित मानव मल भी शामिल है. देखा जाये तो माउंट एवरेस्ट एक तरह का पर्यटक स्थल बन गया है. वर्ष 2009 से अभी तक दो हजार से अधिक लोग इस पर्वत पर चढ़ाई कर चुके हैं. इसके चलते अब यह पर्वत कूड़े के ढेर में बदलता जा रहा है. अभी कुछ समय पूर्व नेपाली आर्मी ने माउंट एवरेस्ट सहित हिमालय की दो अन्य चोटियों से ग्यारह टन कचरा साफ़ किया. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार नेपाली आर्मी इस कचरे में चार लाशें और एक कंकाल भी मिला. आर्मी को माउंट एवरेस्ट, नुपसे और लोहसे जैसी चोटियों से कचरा साफ़ करने में 55 दिनों का समय लगा. एक अंदाजा लगाया जा रहा है कि माउंट एवरेस्ट पर पचास टन कचरे सहित दो सौ से ज्यादा लाशें हैं.

 



यहाँ एक बात तो स्पष्ट है कि प्रतिवर्ष इतनी बड़ी संख्या में माउंट एवरेस्ट पर सामान्य नागरिकों का चढ़ना महज रोमांच की दृष्टि से, पर्यटन की दृष्टि से ही हो रहा है. इसके पीछे किसी भी तरह का वैज्ञानिक अनुसंधान, शोध-कार्य, शैक्षणिक जिज्ञासा कतई नहीं है. अपने शौक को पूरा करने के लिए, पर्यटन के लिए माउंट एवरेस्ट को कचरा क्षेत्र बनाये जाने से जहाँ एक तरफ पर्यावरण को नुकसान हो रहा है वहीं दूसरी तरफ स्थानीय नागरिकों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इस क्षेत्र में बढ़ती पर्यटक संख्या से प्राकृतिक पर्यावरण पर दबाव पड़ता है. जलाने एवं अन्य कार्यों के लिए लकड़ी की उपलब्धता बनाये रखने के लिए बड़े स्तर पर वनों की कटाई की जाती है. माउंट एवरेस्ट के आसपास रहने वाले हज़ारों नागरिकों के लिए जल स्रोत ही महत्त्वपूर्ण है. इस क्षेत्र में अपशिष्ट का उचित प्रबंधन न होने के कारण बर्फ पिघलने से ढँका हुआ कचरा बाहर आकर स्थानीय क्षेत्र के बाहर बड़े गड्ढों में आ जाता है. यही कचरा बाद में मानसून के मौसम में जलमार्गों से बहकर स्थानीय जलग्रहण क्षेत्र को दूषित करता है. यह प्रदूषित जल स्थानीय नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक है. मल पदार्थ से दूषित जल हैजा और हेपेटाइटिस जैसी घातक बीमारियों को उत्पन्न करता है.

 

माउंट एवरेस्ट के मौसम, जलवायु, उसकी परिवर्तनशीलता, ऑक्सीजन की उपलब्धता, तापमान का अचानक से बदलता क्रम आदि के सापेक्ष अनेक अनुसंधानों से जनहितकारी परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं. किसी अनुसंधान के लिए, वैज्ञानिकता के लिए, शोध जिज्ञासा हेतु, चिकित्सा, विज्ञान आदि की आवश्यकता हेतु किये जाने वाला पर्वतारोहण अनुमन्य हो सकता है मगर अपने शौक, रोमांच, पर्यटन के लिए एवरेस्ट पर्वतारोहण पर रोक लगनी चाहिए. यह सच है कि नेपाल की अर्थव्यवस्था में माउंट एवरेस्ट पर्वतारोहण बहुत बड़ा योगदान देता है मगर इसके चलते पर्यावरण संकट उत्पन्न कर लेना, एवरेस्ट को कचरे का ढेर बना देना कतई उचित नहीं. तिब्बती भाषा में एवरेस्ट को चोमोलुंगमा अर्थात दुनिया की देवी माँ कहा जाता है. इसका तात्पर्य एक पवित्र स्थान से है मगर पर्वतारोहियों की भीड़ ने, अपशिष्ट अप्रबंधन ने इसे प्रदूषित कर दिया है. विगत वर्षों में नेपाल सरकार सहित अनेक गैर-सरकारी संगठनों द्वारा जिस तरह से एवरेस्ट से कचरा साफ़ करने का अभियान चलाया जा रहा है, उसको देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि विश्व की सबसे ऊँची चोटी कचरा मुक्त रूप में नजर आएगी.

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