22 मार्च 2024

राजनैतिक गलियारे के व्यवस्था परिवर्तक

आखिरकार कई-कई समन को अस्वीकार करने वाले अरविन्द केजरीवाल को ईडी ने अपने चंगुल में ले ही लिया. आबकारी नीति मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कर लिया गया. आम आदमी पार्टी के इससे पहले कई जनप्रतिनिधि जेल में हैं. मनीष सिसौदिया, संजय सिंह, सतेन्द्र जैन आदि पहले से गिरफ्तार होकर जेल में हैं. अब अरविन्द केजरीवाल गिरफ्तार कर लिए गए हैं और छह दिन की रिमांड पर हैं. संभव है कि वे भी अपने साथियों के बीच जल्द ही दिखाई देंगे. 


अरविन्द केजरीवाल की गिरफ़्तारी ने भी एक तरह का अलग रिकॉर्ड बना दिया है. देश में यह पहला मामला है जबकि किसी मुख्यमंत्री को उसके पद पर रहते हुए गिरफ्तार किया गया है. यहाँ उनकी गिरफ़्तारी से सम्बंधित सवाल-जवाब अथवा विमर्श की तरफ इस पोस्ट को कतई नहीं ले जाना है. आज इस विषय पर पोस्ट लिखने का सन्दर्भ महज इतना है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध शुरू हुए आन्दोलन से, लोकपाल को लाने के संकल्प के साथ जन्मे एक दल ने और उसके नेताओं ने आम आदमी के विश्वास को न केवल तोडा है बल्कि घनघोर तरीके से चकनाचूर भी कर दिया है.




अन्ना आन्दोलन के दौरान जिस तरह से इन नेताओं द्वारा बड़ी-बड़ी बातें की गईं, खुद को ईमानदारी का एकमात्र प्रतिनिधि बताया गया, दूसरे दलों के नेताओं के सैकड़ों-सैकड़ों कागजों में भ्रष्टाचार के सबूत दिखाए गए, खुद को राजनीति की, सत्ता की चकाचौंध से बाहर रखने के जुमले फेंके गए, बच्चों तक की कसमें खाई गईं और अंततः सबके सब ही एक ही रंग में रँगे नजर आये. दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ खुले मंचों से लहराए जाने वाले कागजात सत्ता में आने के बाद न जाने कहाँ गायब हो गए? जिस कांग्रेस के खिलाफ पूरा आन्दोलन चलाया गया, उसी के साथ मिलकर सरकार बनाई गई. इसके बाद भी इन सबका खुद को व्यवस्था बदलने वाला, नई तरह की राजनीति करने का ढोल पीटना बंद नहीं किया गया.


जो सारे कार्य इन लोगों ने अपने लिए निषिद्ध मान रखे थे, कह रखे थे, वे सारे के सारे अपनाए गए. आम जनमानस को इससे समस्या पैदा होने वाली नहीं थी और न है. आखिर राजनीति के गलियारों में यह कोई नई या अनोखी बात नहीं है. कोई भी दल हो आज बात भले सिद्धांतों की, शुचिता की, ईमानदारी की करता हो मगर काम स्वार्थपरक ही करेगा, सत्तालोलुप रहेगा. आम आदमी पार्टी के कृत्यों से, इनके नेताओं के रंग बदलने से नकारात्मक प्रभाव उन छोटे-छोटे सामाजिक संगठनों पर पड़ा जो वाकई में छोटे से क्षेत्र में ईमानदारी से, कुशलता के साथ कार्य कर रहे थे. आम आदमी पार्टी के कृत्यों से सबसे निचले स्तर के व्यक्ति की ईमानदारी, शुचिता पर, उसके कार्यों पर संदेह किया जाने लगा है. आम जनमानस में एक धारणा गहरे तक बैठ गई कि किसी भी रूप में समाज से भ्रष्टाचार को दूर नहीं किया जा सकता है. कोई कितना भी आन्दोलन करे, कसमें खाए, खुद को ईमानदार बताता घूमे लेकिन यह सब सिर्फ और सिर्फ सत्ता प्राप्ति के लिए, स्वार्थ-पूर्ति के लिए ही किया जाता है.


आन्दोलन से लेकर अद्यतन इनके कृत्यों को देखने के बाद बचपन में किसी कक्षा में पढ़ी डाकू खड्ग सिंह और बाबा भारती की कहानी याद आ गई. 





 

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