17 मार्च 2024

पिताजी के जैसा बनने की कोशिश

उन्नीस साल का सफ़र, जिसमें सब लोग तो साथ थे बस एक आप ही न थे. आपके जाने के बाद बहुत कोशिश की जिम्मेवार बनने की, परिवार को साथ लेकर चलने की. आपके जाने वाली तारीख से लेकर आज तक की तारीख की अपनी यात्रा पर नजर डालते हैं तो लगता है कि हर स्थिति में असफल ही हुए हैं. आपके जैसा स्वभाव नहीं ही पा सके, यदि उसका शतांश भी पाया होता तो मिंटू को नहीं खोते.

 

कोशिश तो हर पल करते हैं आपके जैसे बनने की मगर आज तक नहीं बन सके. बहुत अच्छे से याद है आपके जाने के एक महीने बाद घर के लिए बाजार से लौटते समय पहली बार ककड़ी खरीद कर लाये थे. उस समय और घर आने के दौरान बहुत बार आँखें नम हुईं. समय को कुछ और ही मंजूर था, उसी दिन हम शाम को ट्रेन एक्सीडेंट का शिकार हो गए. साल भर तक वे सभी पारिवारिक जिम्मेवारियाँ, जो हमें उठानी थीं उनको पिंटू-मिंटू ने उठाया.

 

पता नहीं समय ख़राब रहा या फिर कुछ और ही. धीरे-धीरे जब लगा कि सबकुछ सही होने जा रहा है तो मिंटू हम सबको छोड़ आपके पास चल दिया. ये भी एक तरह से हमारी ही गैर-जिम्मेवारी है, इसे हम स्वीकारते हैं. सबसे बड़े भाई होने का दम भरते रहे मगर एक छोटे भाई की समस्या को,उसकी मनोदशा को न समझ सके.

 

पता नहीं समय क्या-क्या दिखाएगा? कोशिश यही है कि जो रास्ता आपने दिखाया है, जो शिक्षा आपने दी है उसका अनुपालन कर सकें. हार-जीत के संघर्च के बीच से खुद को निकाल कर आपकी नज़रों में खुद को साबित कर सकें. कोशिश यही है कि पारिवारिक जिम्मेवारियों को निभाने में आपके जैसा बन सकें. 






 

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