उत्तर प्रदेश
सरकार एवं नाबार्ड के संयुक्त प्रयास से बुन्देलखण्ड के कालपी के हस्तनिर्मित कागज़
को भारत सरकार ने बौद्धिक सम्पदा स्वीकारते हुए उसे जीआई टैग दिया है. इससे यहाँ
के कागज को पूरे विश्व में अलग पहचान मिलेगी. पदमश्री से सम्मानित जीआई टैग
विशेषज्ञ डॉ. रजनीकान्त दुबे ने बताया कि कालपी के हस्तनिर्मित कागज का जीआई में 733 नम्बर से पंजीकृत किया गया है. कोरोनाकाल
में जीआई पंजीकरण हेतु कालपी की हस्तनिर्मित कागज समिति ने अपना आवेदन चेन्नई भेजा
था. एक लम्बी और कानूनी प्रक्रिया के बाद कालपी के हाथ कागज उद्यमियों को यह शुभ
अवसर प्राप्त हुआ. यहाँ के हस्तनिर्मित कागज को जीआई टैग मिलने के पहले भी बुन्देलखण्ड
क्षेत्र के महोबा के देसावरी पान को, बाँदा के गौरा पत्थर को
भी जीआई टैग मिल चुका है. इसके साथ-साथ यहाँ के अदरख, कठिया
गेंहू, अरहर की दाल को भी जीआई टैग दिलवाने की प्रक्रिया चल
रही है.
अभी हाल ही में चार
नए सामानों, जिनमें बागपत होम फर्निशिंग, अमरोहा ढोलक, कालपी हस्तनिर्मित कागज और
बाराबंकी हैंडलूम शामिल हैं, को जीआई टैग मिलने के बाद उत्तर
प्रदेश के जीआई प्रमाणित उत्पादों की संख्या 52 हो गई है.
जीआई विशेषज्ञ पद्मश्री रजनीकांत जिनकी संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन प्रमाणन
प्राप्त करने के लिए तकनीकी सुविधा प्रदान करती है, के
अनुसार वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) में शामिल इन उत्पादों
को जीआई टैग प्रदान किया गया. उनके अनुसार 52 उत्पादों के 40
शिल्पों के साथ हस्तशिल्प मामले में प्रदेश पहले स्थान पर है. अकेले
वाराणसी क्षेत्र में 23 में से 18 जीआई
टैग वाले उत्पाद हस्तशिल्प श्रेणी के हैं. वर्तमान में देश में जीआई टैग उत्पादों
की कुल संख्या 432 हो गई है. इसमें कश्मीर का केसर
और पश्मीना शॉल, हिमाचल का काला जीरा, तिरुपति के लड्डू, बंगाल का रसगुल्ला, छत्तीसगढ़ का जीराफूल, बीकानेरी भुजिया, ओडिशा की कंधमाल हल्दी, कर्नाटक की कुर्ग अरेबिका
कॉफी, केरल की रोबस्टा कॉफी, दार्जीलिंग
की चाय, रतलामी सेव, नागपुर के संतरे,
बनारस की बनारसी साड़ी, राजस्थान का फुलकारी
(हस्तशिल्प ), मध्य प्रदेश के झाबुआ का कड़कनाथ मुर्गा,
राजस्थान का दाल बाटी चूरमा, कोलकाता की
मिष्टि दोई सहित कई उत्पाद शामिल हैं. सबसे अधिक जीआई रखने वाले शीर्ष पाँच राज्य
कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश,
कर्नाटक और केरल हैं.
किसी भी क्षेत्र की
पहचान उसके उत्पाद से भी होती है. जब उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती
है तो उसे प्रमाणित करने वाली प्रक्रिया को जीआई टैग कहा जाता है. इसे जियोग्राफिकल
इंडीकेटर अथवा भौगोलिक संकेतक के नाम से जाना जाता है. देश की संसद ने उत्पाद के
रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण को लेकर दिसंबर 1999 में वस्तुओं का भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम
पारित किया. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के एक सदस्य के रूप में बौद्धिक संपदा
अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलुओं पर समझौते का अनुपालन करने के लिए भारत ने यह अधिनियम
पारित किया था. वर्ष 2003 में इसके लागू होने के बाद वर्ष 2004
में देश में सबसे पहले दार्जिलिंग की चाय को जीआई टैग मिला था. कृषि
से सम्बंधित, हैंडीक्राफ्ट्स से सम्बंधित, खाद्य सामग्री से सम्बंधित उत्पादों को जीआई टैग दिया जाता है. जीआई टैग
के द्वारा उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिलता है. इसके बाद बाजार में उसी नाम से
दूसरा उत्पाद नहीं लाया जा सकता है. इसके साथ ही जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता
का पैमाना भी होता है. कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के
अनुसार जीआई टैग को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है. यह ऐसे कृषि, प्राकृतिक अथवा हस्तनिर्मित उत्पादों की गुणवत्ता और
विशिष्टता का आश्वासन देता है जो एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होता है. इसके
चलते देश के साथ-साथ विदेशों में भी उस उत्पाद को सहजता से बाजार उपलब्ध हो जाता
है.
किसी उत्पाद के लिए
जीआई टैग प्राप्त करने के लिए चेन्नई स्थित पेटेंट, डिजाइन और व्यापार चिह्नों के नियंत्रक के ऑफिस में आवेदन
करना होता है. इसके लिए उत्पाद को बनाने वाली संस्था आवेदन कर सकती है. कुछ क्षेत्रों
में जीआई टैग के लिए सरकारी स्तर पर भी आवेदन किया जा सकता है. आवेदन करने वाले को
उत्पाद की मौलिकता, ऐतिहासिकता,
उसके महत्त्वपूर्ण होने सम्बन्धी जानकारी को सबूतों सहित देना होता है. सम्बंधित उत्पाद
के मानकों पर खरा उतरने के बाद ही उसे जीआई टैग दिया जाता है. इसे भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री
द्वारा उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत जारी किया जाता है.
एक भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण दस वर्ष की अवधि के लिये वैध होता है. इसके पश्चात्
इसका नवीनीकरण करवाना होता है.
देश के बहुत सारे
उत्पाद अपनी वैश्विक पहचान के लिए जाने जाते हैं. बहु-सांस्कृतिक लोकाचार, प्रामाणिकता एवं जातीय विविधता देश की अर्थव्यवस्था
के लिये महत्त्वपूर्ण उत्प्रेरक का कार्य कर सकती है. जीआई टैग इसी तरह के
उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकता है. इसके साथ-साथ इससे स्थानीय समुदायों को भी
लाभ मिलेगा. वे लोग अपने उत्पादों की न केवल सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो सकते हैं
वरन उसकी मौलिकता को भी बचाए रख सकते हैं. इससे सम्बंधित क्षेत्र के उत्पाद, यहाँ की प्रतिभा को उद्यमिता, व्यक्तियों
के कौशल के मुद्रीकरण तथा व्यवसायों को तीव्रता से बढ़ाने के नए अवसर मिल सकेंगे.
घरेलू स्तर पर किये गए शिल्पकार्य का मुद्रीकरण देश में निम्न महिला श्रमबल भागीदारी
दर में सुधार करेगा. इससे एमएसएमई क्षेत्र का भी कायाकल्प होगा जो भारत के सकल
घरेलू उत्पाद में 31 प्रतिशत और निर्यात में 45 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है.
जीआई टैग के
द्वारा ऑनलाइन बाजार की उपलब्धता भी सहज हो जाती है. देश के ई-कॉमर्स क्षेत्र में आधुनिक
वितरण प्रणाली उपलब्ध होने के कारण जीआई उद्योग को वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ाने में मदद
कर सकती है. ऑनलाइन बाजार के एक प्लेटफ़ॉर्म द्वारा चलाये गए लोकल-टू-ग्लोबल कार्यक्रम
ने भारतीय उत्पादकों और उनके उत्पादों, जैविक उत्पादों को 200 से अधिक देशों में पहुँचाया
है. बताया
जाता है कि वर्ष 2019 से वर्ष 2021 के बीच अमेज़न ने दो बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के
मेड इन इंडिया उत्पादों का निर्यात किया है. प्रारंभिक चरण में जीआई उत्पादों को सरकारों
के समर्थन की आवश्यकता है. विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि जीआई के तहत उत्पादों के पेटेंट
और कॉपीराइट संरक्षण के परिणामस्वरूप उच्च आर्थिक लाभ प्राप्त होता है, साथ ही गुणवत्तापूर्ण उत्पादन को बढ़ावा मिलता
है.
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