ऐसा बहुत बार सबके
देखने में आता होगा कि उनके शहर में किसी न किसी संस्था के कार्यक्रम में किसी न
किसी प्रशासनिक अधिकारी को अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है. अतिथि रूप में
शब्दों में बदलाव होते रहना अलग बात है. कोई मुख्य अतिथि के रूप में, कोई विशिष्ट अतिथि के रूप में. किसी
कार्यक्रम में प्रशासनिक अधिकारी का आना उस कार्यक्रम के संयोजक के लिए मानो गर्व की
बात होती है. एक तरफ हम सभी जनप्रतिनिधियों को, प्रशासनिक
अधिकारियों को जनता का सेवक बताते नहीं थकते हैं मगर यदि इनको अपने किसी कार्यक्रम
में बुलाना है तो ये किसी भगवान से कम नजर नहीं आते हैं. किसी भी प्रशासनिक
अधिकारी के या फिर जनप्रतिनिधि के आने से कार्यक्रम संयोजक को अपने आपमें बहुत
अधिक गौरव की अनुभूति होने लगती है. उस समय वह भूल जाता है कि अभी कुछ दिन पहले ही
वह इनको जनता का सेवक बताते हुए गरियाने में लगा हुआ था.
बहरहाल, जनप्रतिनिधियों का हाल तो इस देश के
नागरिकों ने पहले से ही ख़राब कर रखा है. एक सामान्य नागरिक भी ये मानने लगा है कि
राजनीति बहुत गन्दी, बेकार चीज है. इसकी बात करना खुद को
कलंकित करने जैसा है. इसके उलट आज भी देश के नागरिकों के लिए सिविल सेवा का
अधिकारी किसी भगवान से कम नहीं. उसकी निगाह में किसी प्रशासनिक अधिकारी का चयन
विश्व की सबसे कठिन परीक्षा के बाद होना होता है. एक सामान्य से व्यक्ति के लिए
निश्चित ही कोई प्रशासनिक अधिकारी किसी भगवान से कम नहीं होता है, जब वह देखता है कि उस एक व्यक्ति के चारों तरफ जी-जी करने वालों की, जी-हुजूरी करने वालों की भीड़ लगी है. लाल-नीली बत्तियाँ भले ही उनकी
गाड़ियों से उतर गई हों मगर जिस तरह से खाकी के कारण उनकी हनक बीच बाजार देखने को
मिलती है, वह किसी भगवान से कम नहीं.
ऐसे हनक वाले
भगवान को यदि कोई अपने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनाता है तो वह गलत नहीं करता
है. गलत तो वे लोग होते हैं जो उस कार्यक्रम के दिए गए समय पर वहाँ पहुँच जाते
हैं. समय पर पहुँचने पर जानकारी होती है कि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रशासनिक
भगवान अभी आये नहीं हैं. उनको आने में अभी समय लगना है. कार्यक्रम संयोजक द्वारा
आमंत्रित भगवान के दर्शन वह सामान्य नागरिक भी करना चाहता है, सो वह चुपचाप अपने समय की बर्बादी
देखता हुआ वहाँ बैठा रहता है. यहाँ एक मूल बात प्रशासनिक अधिकारियों को समझने की
आवश्यकता है कि आज भी बहुत सारे युवा ऐसे हैं जो उनको आदर्श मानते हुए सिविल सेवा
की तैयारी में लगे रहते हैं. ऐसे युवाओं के लिए सिविल सेवा में जाना हनक के लिए
नहीं बल्कि समाजसेवा के लिए होता है. ऐसी सोच के बाद जब वह देखता है कि उनका आदर्श
प्रशासनिक अधिकारी स्वयं अनुशासित नहीं है, तो वह भी कहीं न
कहीं उस हनक के वशीभूत वैसा ही आचरण करने की मानसिकता बना लेता है.
प्रशासनिक
अधिकारियों को चाहिए कि वे स्वयं में अनुशासित रहकर अपनी आने वाली पीढ़ी को एक सकारात्मक
सन्देश दें. प्रशासनिक अधिकारी आये दिन विद्यालयों, महाविद्यालयों के विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होते रहते
हैं, अपने पद के अहंकार में, उसकी हनक
में वे सभी कार्यक्रमों में निश्चित रूप से बहुत अधिक विलम्ब से पहुँचते हैं. ऐसी
स्थिति में वे उन बच्चों के सामने अथवा ऐसे किसी अन्य कार्यक्रम में किसी तरह का
आदर्श प्रस्तुत नहीं कर रहे होते हैं. उन प्रशासनिक अधिकारियों को खुद में यह
जिम्मेवारी महसूस करनी चाहिए कि वे समय का अनुपालन करें,
स्वयं में अनुशासित रहे. ऐसा करके वे समाज को एक सन्देश दे सकते हैं.
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