भारत का पड़ोसी देश
पाकिस्तान वर्तमान में अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है. वहाँ की आर्थिक स्थिति
एकदम खस्ताहाल हो चुकी है. बढ़ते कर्ज, बढ़ती मँहगाई, घटता विदेशी मुद्रा भंडार, घटती
जीडीपी आदि के चलते पिछले एक साल में पाकिस्तान की हालत बदतर हुई है. रोजमर्रा की
वस्तुओं के दामों में जबरदस्त वृद्धि देखने को मिल रही है. लोगों के लिए आटा-दाल की
व्यवस्था करना भी दुष्कर हो रहा है. दूध, प्याज, नमक आदि जैसे जरूरी सामान भी इतने मँहगे हो गए हैं कि लोगों के लिए इनको
खरीदना कठिन हो रहा है.
पाकिस्तान के
विदेशी मुद्रा भंडार में 6.7 बिलियन
अमेरिकी डॉलर की गिरावट आई है, जो फरवरी 2014 के बाद सबसे निचले स्तर पर है. इसमें मात्र
4.3 अरब डॉलर बचे हैं जबकि वाणिज्यिक बैंकों के पास 5.8
अरब डॉलर हैं. इस प्रकार पाकिस्तान के पास कुल 10.1 अरब डॉलर ही हैं, जो आयात बिल के भुगतान हेतु पर्याप्त नहीं हैं. ऐसा
अनुमान लगाया जा रहा है कि उसके पास केवल तीन सप्ताह के भुगतान हेतु ही विदेशी
मुद्रा शेष है. इस कमी के चलते पाकिस्तान खाना पकाने के तेल जैसे जरूरी सामानों का
आयात भी नहीं कर पा रहा है. विदेशी मुद्रा की कमी के कारण भुगतान न होने से बंदरगाहों
पर बहुत सारा आवश्यक सामान अटका पड़ा है.
पाकिस्तान की
आंतरिक दशाएँ भी उसके बिगड़ते हालात के लिए उत्तरदायी हैं. वहाँ की राजनैतिक
स्थितियाँ किसी से छिपी नहीं हैं, रही सही कसर वर्ष 2022 में आई भीषण बाढ़ ने पूरी कर दी.
वर्ष 2022 में जून से अक्टूबर के बीच एक तिहाई पाकिस्तान
बाढ़ की चपेट में था. इससे करीब साढ़े तीन करोड़ लोग प्रभावित हुए थे. अभी भी 80
लाख लोग विस्थापित स्थिति में हैं, 1700 से
ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, 22 लाख
से ज्यादा घर तबाह हो गए हैं, स्वास्थ्य सेवाएँ चरमरा गई हैं,
इसके साथ-साथ दूसरी बुनियादी सेवाएँ भी ध्वस्त हो गई हैं.
आर्थिक स्थितियों
की नकारात्मकता का असर केवल पाकिस्तान पर ही नहीं हो रहा है बल्कि प्रत्यक्ष और
अप्रत्यक्ष रूप से इसका असर भारत पर भी पड़ रहा है. आर्थिक तंगहाली का, मुद्रा अवमूल्यन का, बढ़ती मँहगाई का असर पाकिस्तान की तमाम कम्पनियों पर तो पड़ा ही है, उसके साथ-साथ वे कम्पनियाँ भी नकारात्मकता का शिकार हुई हैं जो भारत से सम्बंधित
हैं. बहुतायत कम्पनियाँ घाटे में चल रही है. जिंदल और टाटा पर भी इसका सर्वाधिक
प्रभाव देखने को मिल रहा है. पीटीआई के अनुसार जिंदल ग्रुप का पाकिस्तान में अच्छा खासा व्यापार है. यह
ग्रुप स्टील इंडस्ट्री के अलावा एनर्जी सेक्टर में भी सक्रिय है. यदि पाकिस्तान की
आर्थिक गतिविधि के कारण वहाँ के व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर संकट आता है तो इस
कंपनी पर भी वैसा ही असर पड़ेगा. इसी तरह पाकिस्तान के आर्थिक विकास में टाटा ग्रुप टेक्सटाइल मिल्स लिमिटेड का
बहुत ज्यादा योगदान है. वहाँ की नकारात्मकता का असर इस कम्पनी पर भी देखने को मिल
सकता है.
पाकिस्तान में
भारतीय कम्पनियों पर होने वाले नकारात्मक प्रभाव के अलावा वहाँ के आर्थिक संकट का
असर भारत से पाकिस्तान भेजे जाने वाले सामानों पर भी हो रहा है. ट्रेडिंग
इकोनॉमिक्स की रिपोर्ट के अनुसार कर्ज में डूबे पाकिस्तान ने साल 2021 में भारत से लगभग 503 मिलियन डॉलर का आयात किया था. इस दौरान भारत से
फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट्स, ऑर्गेनिक
केमिकल्स, चीनी, कॉफी-चाय, एल्युमिनियम, प्लास्टिक के सामान पाकिस्तान भेजे गए. यदि इस वर्ष
के आँकड़े देखें तो पाकिस्तान में करीब 8 मिलियन डॉलर की कॉफी-चाय, लगभग 190 मिलियन डॉलर के
फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट्स, 141 मिलियन डॉलर के ऑर्गेनिक केमिकल्स, 119 मिलियन डॉलर की चीनी सहित अनेक दूसरे सामान भेजे गए.
पाकिस्तान की बिगडती आर्थिक दशा से इन सामानों से जुड़ी भारतीय कम्पनियों का
कारोबार भी प्रभावित होगा और इनको वित्तीय घाटा उठाना पड़ सकता है. शत्रु संपत्ति विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार
भारत में 577 ऐसी कम्पनियाँ हैं
जिनमें पाकिस्तानियों का धन लगा है. इसमें से 266 कम्पनियाँ इंडियन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हैं, वहीं 318 कम्पनी सूचीबद्ध नहीं हैं. ऐसा अनुमान है कि
भारत की इन कम्पनियों में पाकिस्तानी नागरिकों के लगभग 400 मिलियन डॉलर की हिस्सेदारी है. इनमें बिरला, टाटा, फार्मा कंपनी सिप्ला, विप्रो, डालमिया समेत कई प्रमुख व्यापारिक प्रतिष्ठान शामिल हैं. ऐसे में अगर
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था दीवालिया होने की स्थिति में पहुँचती है तो इन कम्पनियों
पर भी उसका सीधा असर देखने को मिल सकता है.
भारत को पाकिस्तान
के आर्थिक संकट को लेकर सावधान होने की आवश्यकता है. एशियाई देशों में बांग्लादेश, श्रीलंका के बाद पाकिस्तान तीसरा
देश है जहाँ आर्थिक संकट देखने को मिल रहा है. मँहगाई का असर भारत में भी देखने को
मिल रहा है किन्तु यहाँ स्थिति नियंत्रण में है. इसके बाद भी पडोसी देश होने के
नाते, एशियाई क्षेत्र में सक्षम देश होने के नाते भारत को एक
जिम्मेवार देश के रूप में भी देखा जाता है. ऐसे में उसी तरफ से सहायता की उम्मीद भी
रहेगी. इस सहायता की उम्मीद के बीच भारत को अपनी स्थिति को मजबूत बनाये रखना होगा.
संभव है कि आर्थिक रूप से कमजोर पाकिस्तान में चीन की घुसपैठ बढ़े. नेपाल की सरकार
को प्रो-चीन माना ही जा रहा है, ऐसे में पाकिस्तान को सहायता की आड़ में भारत के
लिए चीन और नेपाल चुनौती खड़ी कर सकते हैं. पाकिस्तान को मदद के नाम पर चीन भारत के
खिलाफ रणनीति बना सकता है. अपने व्यापारिक और सामरिक लाभ के लिए वह पाकिस्तानी
क्षेत्र का उपयोग भी कर सकता है. भारत के एक और पड़ोसी देश अफगानिस्तान में इस समय
नागरिक अधिकार हनन करने वाली सरकार है. यदि पाकिस्तान को उसकी तरफ से मदद मिलती है
तो संभव है कि सीमा पार से संचालित आतंकवाद भारत के लिए मुसीबत बन जाए.
निश्चित ही
पाकिस्तान का आर्थिक संकट हाल फ़िलहाल समाप्त होता नहीं दिख रहा है. ऐसे में भारत
को उसकी दशा पर और उसके कदमों पर सजग निगाह रखने की आवश्यकता है. पाकिस्तान को मदद
के नाम पर भारत विरोधी मानसिकता वाले देशों द्वारा यदि वहाँ अपने कदम जमा लिए गए
तो निकट भविष्य में यह भारत के लिए कष्टकारी हो सकता है.
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