आये दिन एक उदाहरण
भरी कहानी सामने से गुजरती है, जिसमें एक व्यक्ति कुछ सीख देने का प्रयास कर रहा है. वह अपने सामने बैठे
लोगों को एक बोर्ड दिखाते हुए पूछता है कि उनको क्या दिख रहा है? बोर्ड सफ़ेद रंग का है और उसमें छोटा सा एक काला बिन्दु बना हुआ है. भीड़
में से बहुसंख्यक लोग काला बिन्दु दिखाई देना बताते हैं. तब वह व्यक्ति इसे
नकारात्मक मानसिकता का परिचायक बताते हुए कहता है कि किसी को भी इतना बड़ा सफ़ेद
बोर्ड नहीं दिखाई दिया जबकि एक छोटा सा काला बिन्दु सबने देख लिया. संभव है कि उस
व्यक्ति की दृष्टि में ऐसा सही हो, एक बहुत बड़े सफ़ेद बोर्ड
के बीच एक छोटा सा काला बिन्दु ही देखना नकारात्मक मानसिकता का सूचक हो किन्तु यही
एकमात्र सत्य हो, ऐसा नहीं है.
यह एक मानवीय
स्वभाव है कि वह सकारात्मकता की जगह पर नकारात्मकता में बहुत जल्दी घिर जाता है. किसी
भी व्यक्ति का मन,
दिल-दिमाग सकारात्मक घटनाओं के प्रति उतनी तेजी से नहीं सोच पाता है जितनी तेजी से
वह नकारात्मक घटनाओं के प्रति सोचने लगता है. यह लगभग सभी लोगों के साथ हुआ होगा, घर का कोई व्यक्ति किसी काम से यदि बाहर जाता है और यदि वह निश्चित
समयावधि में वापस नहीं लौटता है तो मन बजाय सकारात्मक सोचने के नकारात्मक ही सोचने
लगता है. इस सन्दर्भ में मन को, दिल को कितना भी समझाया जाये
किन्तु वह नकारात्मकता की तरफ ही मुड़ जाता है. ऐसा अकेले सोचने के सन्दर्भ में ही
नहीं होता है बल्कि हमारे दिल-दिमाग में दुखद घटनाएँ, दुःख भरी यादें ज्यादा गहराई
से छाई रहती हैं. खुशियों से भरी बातें, सुख भरे समय की
यादें स्थायी रूप से अपना स्थान नहीं बना पाती हैं जबकि दुखी करने वाली ऐसी बातें
जैसे स्थायी रूप से दिल-दिमाग में बस जाती हैं.
ये बातें किसी भी
रूप में नकारात्मकता को प्रदर्शित नहीं करती हैं बल्कि ये मानवीय स्वभाव का चित्र
खींचती हैं. मानवीय स्वभाव में ही कुछ इस तरह की भावनात्मकता छिपी हुई है जो सुख
के बजाय दुःख के प्रति जल्दी आकर्षित होती है. समाज में भी यदि किसी व्यक्ति की
संपत्ति, उसक सुख
आकर्षित करता है तो उससे ज्यादा तेजी से किसी भी व्यक्ति का दुःख, उसका कष्ट ध्यान खींचता है. निश्चित ही यह नकारात्मकता का नहीं बल्कि करुणा
का द्योतक है. दुखों के प्रति, कष्ट के प्रति सहज रूप में
ध्यान चले जाने के रूप में ही सफ़ेद बोर्ड में एक छोटे से काले बिन्दु का ध्यान
आकर्षित कर लेना है. यहाँ बजाय नकारात्मकता के इसे मानवीय स्वभाव के रूप में समझने
की आवश्यकता है.
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