पिछले दिनों भारतीय आर्थिक क्षेत्र में दो उल्लेखनीय घटनाओं
का उद्भव हुआ. एक तो केंद्र सरकार द्वारा व्यापार नीति के तहत निर्यात संवर्धन
योजनाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार निकायों को भारतीय रुपए में लेन-देन की अनुमति
देना रहा है. दूसरी घटना भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा डिजिटल रुपये की पेशकश के लिए
पहली पायलट परियोजना दिसम्बर माह में मुंबई, नई दिल्ली, बेंगलुरु और भुवनेश्वर में शुरू करना रही. इन दो घटनाओं से
भारतीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मक सुधार आने की सम्भावना देखी जा रही है.
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रुपये का लेन-देन होने से जहाँ भारतीय रुपये को
अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलेगी वहीं डिजिटल रुपये के आने से लेन-देन सहज हो सकेगा.
एक अनुमान के अनुसार विदेशी व्यापार भुगतान में औसतन छह प्रतिशत तक शुल्क लगता है.
डिजिटल मुद्रा आने से, भारतीय रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण होने से इस शुल्क में कमी
आएगी.
अंतरराष्ट्रीय व्यापार निकायों को भारतीय रुपए में
लेन-देन की अनुमति देने का उद्देश्य घरेलू मुद्रा में व्यापार को सुगम बनाना और
बढ़ावा देना है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि भारतीय रुपये के
अंतरराष्ट्रीयकरण करने की रुचि में वृद्धि को देखते हुए रुपये में अंतरराष्ट्रीय
व्यापार के निपटाने को मंजूरी देने का फैसला लिया गया है. इससे आयात और निर्यात के
बारे में इनवॉयस तैयार करने, भुगतान और निपटान भारतीय रुपए में किया जा सकेगा. वर्तमान
में आयात के मामले में भारतीय कंपनी को विदेशी मुद्रा में भुगतान करना पड़ता है.
मुख्य रूप से यह डॉलर में होता है किन्तु कभी-कभी यह पाउंड,
यूरो या येन में भी हो सकता है. निर्यात के मामले में भी
भारतीय कंपनी को विदेशी मुद्रा में भुगतान किया जाता है. बाद में कंपनी उस विदेशी
मुद्रा को रुपये में बदल देती है क्योंकि उसे अपनी आवश्यकताओं के लिए रुपये की
आवश्यकता होती है.
भारतीय रुपये को अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मान्यता दिलवाने
के साथ-साथ डॉलर की अघोषित सत्ता को, उस पर बनी निर्भरता को भी समाप्त करना इसका उद्देश्य हो
सकता है. यदि बीते माह को दृष्टिगत रखते हुए बाजार की स्थिति देखें तो कच्चे तेल
की कीमतों में गिरावट, डॉलर की कमजोरी और निरंतर विदेशी फंड प्रवाह के बीच डॉलर के
मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट देखने को मिल रही थी. इसके अलावा रूस-यूक्रेन
युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा रूस के विदेशी मुद्रा भंडार पर जिस तरह से पाबन्दी
लगाई है,
उसके बाद वैश्विक व्यापार जगत में अनेक देशों ने उसकी मंशा
को भाँप लिया है. बहुतायत देशों को लगने लगा है कि इस तरह के कदम के बाद बहुत
ज्यादा समय तक वैश्विक स्तर पर व्यापार के लिए डॉलर पर निर्भर नहीं रहा जा सकता
है. भारत तो बहुत पहले से डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती स्थिति की समस्या से जूझ
रहा है. इसी कारण से भारतीय रिजर्व बैंक भी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए रुपये
में विदेशी कारोबार को बढ़ावा देना चाहता है. बैंक ने जुलाई को एक सर्कुलर जारी
करके कहा था कि उसने आईएनआर में चालान, भुगतान और निर्यात/आयात के निपटान के लिए एक अतिरिक्त
व्यवस्था करने का फैसला किया है. रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय ने बैंकों और
कारोबारियों के संगठनों के प्रतिनिधियों से रुपये में आयात-निर्यात लेनदेन को बढ़ावा
देने को कहा था. डिजिटल मुद्रा के आने के बाद रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार
करना सुगम हो सकता है.
भारतीय रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण होने से निकट भविष्य में
डॉलर की तरह पूरी तरह से रुपये में कारोबार करना संभव हो जाएगा. इसके लिए किसी भी
देश के साथ व्यापार लेनदेन का निपटान करने के लिए भारत में बैंक व्यापार के लिए
भागीदार देश के कॉरेस्पॉन्डेंट बैंक/बैंकों के वोस्ट्रो खाते खोलेंगे. भारतीय
आयातक इन खातों में अपने आयात के लिए भारतीय रुपये में भुगतान कर सकते हैं. आयात
से होने वाली इन आय का उपयोग भारतीय निर्यातकों को भारतीय रुपये में भुगतान करने
के लिए किया जा सकता है. भारतीय रिजर्व बैंक से रुपये में अंतरराष्ट्रीय कारोबार
किये जाने की अनुमति मिलने के बाद नई दिल्ली में विशेष ‘वोस्ट्रो खाते’ खोले गए,
जिससे विदेश में रुपये में कारोबार संभव हो सकेगा. रूस के
दो सबसे बड़े बैंक स्बरबैंक और वीटीबी बैंक ऐसे पहले बैंक हैं जिन्हें रुपये में
कारोबार करने की मंजूरी मिली है. वर्तमान में रूस के नौ बैंकों ने रुपये में
कारोबार करने के लिए विशेष वोस्ट्रो खाते खोल दिए हैं. वोस्ट्रो खाता एक ऐसा खाता
है जो एक कॉरेस्पॉन्डेंट बैंक दूसरे बैंक की ओर से रखता है.
यदि वैश्विक बाजार का आकलन करें तो ज्ञात होता है कि डॉलर
का वैश्विक विदेशी मुद्रा कारोबार में लगभग 88% हिस्सा है. यूरो, जापानी येन और पाउंड स्टर्लिंग का स्थान डॉलर के बाद ही आता
है. भारतीय रुपए की हिस्सेदारी लगभग दो प्रतिशत के आसपास है. चूँकि डॉलर को
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में मान्यता मिली हुई है,
ऐसे में विशेषाधिकारों की सीमा-रेखा में होने वाले भुगतान
संतुलन संकट से वह अमेरिका को एक तरह की मौद्रिक सुरक्षा देता है. रुपये के
अंतरराष्ट्रीय कारोबार का हिस्सा बनने से विदेशी लेन-देन में रुपए का उपयोग भारतीय
व्यापार के लिये मुद्रा जोखिम को कम करेगा. डॉलर पर निर्भरता कम होने से मुद्रा की
अस्थिरता जैसे संकट का सामना भी कम करना पड़ेगा. ऐसा होने से व्यापारिक सुरक्षा बनी
रहेगी. एक तरफ जहाँ व्यापार की लागतों पर नियंत्रण रहेगा,
वहीं व्यापार का बेहतर विकास भी संभव हो सकेगा.
इसके साथ ही सरकार की एक निश्चित सीमा तक विदेशी मुद्रा
भंडार रखने की अनिवार्यता में भी बहुत हद तक कमी आएगी. वर्तमान में मुख्य रूप से
डॉलर में अंतरराष्ट्रीय कारोबार होने के कारण विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में डॉलर
को जमा करके रखना होता है. यदि भारतीय रुपये को अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए
बहुसंख्यक देशों द्वारा मान्यता मिल जाती है तो डॉलर पर बनी निर्भरता कम होने से
विदेशी मुद्रा भंडार जमा रखने की स्थिति से मुक्ति मिलेगी. विदेशी मुद्रा पर
निर्भरता को कम होने से भारतीय व्यापार बाहरी जोखिमों से बच सकेगा. मुद्रा जोखिम
के कम होने से पूंजी प्रवाह के उत्क्रमण को काफी हद तक कम किया जा सकेगा. इससे
भारतीय व्यापार की सौदेबाज़ी की शक्ति भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने,
उसके वैश्विक कद और सम्मान को बढ़ाने में सहायक होगी.
अच्छा लिखा है।
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