07 अक्तूबर 2022

क्या मोबाइल वाकई समस्या बन गया है?

क्या मोबाइल वाकई हम सबके जीवन में एक समस्या बनता जा रहा है? यह एक ऐसा सवाल है जो हम लगभग रोज ही अपने से करते हैं और इसका जवाब स्वयं देने के बाद फिर इसी समस्या से घिर जाते हैं. यह सबके लिए किस हद तक सच है, ये उसके उपयोग की स्थिति पर निर्भर करता है किन्तु सत्य यही है कि आज जिस तरह से लोगों को मोबाइल की लत लग गई है, वह एक समस्या ही बन गया है. संचार के एक साधन के रूप में, आपसी संपर्क, बातचीत का माध्यम बना मोबाइल अब संचार के साथ-साथ मनोरंजन का साधन भी बन गया है. इंटरनेट और स्मार्टफोन के आने के बाद से मोबाइल ने जैसे अपने स्वरूप को विकराल कर लिया है. अब इसका उपयोग जानकारियों के आदान-प्रदान से अधिक मनोरंजन के लिए किया जाता है. सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों, रील्स, शॉर्ट वीडियो आदि की अधिकता जिस तरह से बाढ़ आई हुई है, उसके चलते मोबाइल अब एक समस्या ही बनता जा रहा है. 


यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मोबाइल एक नशे की तरह लोगों के जीवन में प्रवेश कर चुका है. अब मोबाइल का उपयोग उसकी सुविधा के चलते कम व्यक्ति की अपनी लत के कारण ज्यादा हो रहा है. यह किसी से भी छिपा नहीं है कि व्यक्ति चाहे अकेले बैठा हो या किसी भीड़ का हिस्सा हो, उसके लिए जैसे वरीयता वाला काम मोबाइल देखना है. मिनट-दो-मिनट में बार-बार मोबाइल को देखना, उसकी स्क्रीन को निहारना, बार-बार सोशल मीडिया के मंचों को खोलकर उनकी पोस्ट, फोटो, वीडियो आदि को देखना एक तरह का रोग बनता जा रहा है. अपने अनेक कामों के बीच में भी मोबाइल को खोलकर देखना, दिन का उजियारा हो या फिर रात का अंधकार, लोगों के लिए जैसे मोबाइल ही एकमात्र सहारा बना होता है. यह भी एक तरह की बीमारी कही जा सकती है कि जब लगने लगे कि इंटरनेट के माध्यम से उसके मोबाइल में कुछ नया सन्देश, फोटो, वीडियो आदि आने वाला है. सोशल मीडिया पर उसके द्वारा पोस्ट की गई सामग्री पर बार-बार लाइक, कमेंट आदि को देखने की आदत भी किसी नशे से कम नहीं.




विडम्बना यह है कि इस रोग का शिकार, इस नशे का आदी हर उम्र का व्यक्ति बना हुआ है. बच्चों में यह समस्या और तीव्रता से देखने को मिल रही है. एकल परिवार होने के कारण, माता-पिता के नौकरीपेशा होने की स्थिति में बच्चों का सबसे अच्छा साथी मोबाइल बना हुआ है. उनको कुछ खिलाना-पिलाना हो, उनकी किसी जिद को पूरा करना हो, खेलने में व्यस्त रखना हो तो बस मोबाइल पकड़ा कर माता-पिता खुद को जिम्मेवारी से मुक्त कर लेते हैं. अब बच्चों को घरों में परियों की कहानियाँ नहीं सुनाई जातीं बल्कि उनको मोबाइल पकड़ा कर रंगीन स्क्रीन में व्यस्त कर दिया जाता है. यह बच्चों के कोमल मन-मष्तिष्क पर नकारात्मक रूप से अपना प्रभाव छोड़ रहा है. देखने में आ रहा है कि अब बच्चे चिड़चिड़े होते जा रहे हैं. उनकी माँग के अनुसार यदि उनको मोबाइल न दिया जाये तो वे चिल्लाने का, सामान फेंकने का, खुद को हानि पहुँचाने का काम करने लगते हैं.   


कुछ ऐसा ही हाल युवाओं का है. वे किसी भी कार्य में व्यस्त हों किन्तु उनके हाथों से मोबाइल नहीं छूटता है. कभी किसी ऑनलाइन गेम में व्यस्त होने के कारण, कभी रील्स बनाने या फिर उनको देखने के क्रम में उनकी उंगलियाँ लगातार मोबाइल स्क्रीन पर टहलती ही रहती हैं. इसके चलते ऐसे बहुत से केस देखने को मिल रहे हैं जहाँ लोगों में आँखों की बीमारी, गर्दन का दर्द, रीढ़ की हड्डी में दिक्कत, उँगलियों की अपनी बीमारी की समस्या उत्पन्न हो रही है. इन बीमारियों के साथ-साथ लोगों की याददाश्त भी कमजोर हो रही है. छोटे से छोटे काम के लिए बच्चों, युवाओं की मोबाइल पर निर्भरता ने उनके मष्तिष्क की कार्यक्षमता को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है. अब वे किसी जानकारी के लिए कहीं खोजबीन करने का, अपना अनुभव जुटाने का, खुद का विश्लेषण करने का जोखिम नहीं उठाते हैं. उनके लिए एकमात्र समाधान अब उनके हाथ में दिखता मोबाइल है.


इस सुविधाजनक समस्या से बाहर निकलने के प्रयास उन्हीं लोगों को करने होंगे, जो इसके आदी बने हुए हैं. उनको समझना होगा कि मोबाइल की ऐसी लत किसी भी नशे की तरह बुरी है. देखने में भले यह किसी तरह की बाहरी बीमारी को नहीं दिखा रहा है किन्तु शरीर को, मन को, दिमाग को भीतर ही भीतर खोखला कर रहा है. अनिद्रा, तनाव, अवसाद, निराशा, गुस्सा, चिड़चिड़ापन आदि की समस्याएँ इसी मोबाइल की अधिकता के कारण उत्पन्न होने लगी हैं. आइए, इस समस्या को दूर हुए मोबाइल को अपनी सुविधा का ही साधन बना दिया जाये.

 




 

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