19 अक्टूबर 2022

अपने लिए 'ना' कहना सीखना चाहिए

सबके काम आना एक सहयोगात्मक, सकारात्मक सोच हो सकती है किन्तु बिना अपना आगा-पीछा सोचे दूसरों के लिए काम करते जाना न तो सहयोगात्मक है और न ही सकारात्मक. इस तरह का रवैया भले ही प्रथम दृष्टया लोगों को इस रूप में बेहतर लगता हो कि व्यक्ति सबके काम आता है, सभी के काम सहजता से कर देता है किन्तु यदि इसका अध्ययन मानवीय व्यवहार के सन्दर्भ में किया जाये तो यह एक तरह की नकारात्मकता ही है. बिना अपने समय की, स्वास्थ्य की, श्रम की परवाह किये सिर्फ दूसरों के काम करते जाना, दूसरों के लिए काम करते जाना, दूसरों की जिम्मेवारियों को अपने कन्धों पर ढोने जाना समझदारी नहीं है. भले ही ऐसा करने वाले व्यक्ति को लगता हो कि वह कोई बहुत बड़ा काम कर रहा है, बहुत बड़ी जिम्मेवारी का निर्वहन कर रहा है किन्तु वास्तविकता में वह अपने लिए ही सिरदर्दी पैदा कर रहा है, अपने ही व्यक्तित्व विकास के प्रति नकारात्मकता बना रहा है, अपने परिवार के प्रति भी अन्याय सा कर रहा है.  


देखा जाये तो किसी भी व्यक्ति के सामने ऐसी स्थिति अचानक से प्रकट नहीं होती है. किसी भी संस्थान पर धीरे-धीरे से ऐसा वातावरण बनाया जाता है जिससे वह दूसरों के काम करने को, दूसरों की जिम्मेवारियां उठाने को अपना सहयोग, अपना कर्तव्य समझने लगता है. उसे लगता है कि आखिर किसी न किसी को तो ये काम करना ही है, कोई दूसरा न कर रहा अथवा किसी कारणवश जिसे यह काम सौंपा गया है, वह नहीं कर पा रहा है तो इस काम से सहयोग कर दिया जाये. यह एक-दो बार के लिए सुखद स्थिति हो सकती है, सदैव के लिए नहीं. इस तरह का रवैया अपनाने के बाद सम्बंधित संस्थान में अन्य लोगों की मानसिकता अपना काम उसी व्यक्ति के सिर पर डालने की हो जाती है. ऐसा करने के पीछे उस व्यक्ति की मानसिकता भले ही सहयोग करने की रही हो मगर उससे बड़ा तथ्य यह होता है कि वह व्यक्ति किसी काम के लिए ना नहीं कर पाता है, किसी व्यक्ति को उसका काम या फिर उसकी जिम्मेवारी का बोझ उठाने से इंकार नहीं कर पाता है. किसी बात को इंकार न कर पाने का खामियाजा इसी रूप में उठाना पड़ता है कि वह बजाय अपने काम संपन्न करने के, दूसरों के काम संपन्न करता रहता है. बजाय अपनी जिम्मेवारियों को पूरा करने के वह दूसरों की जिम्मेवारियों को उठाता रहता है. बजाय अपने व्यक्तित्व विकास के, बजाय अपने कैरियर के दूसरों के हितार्थ श्रमशील बना रहता है.




अगर कोई व्यक्ति अपने साथ काम करने वाले साथियों की समस्याओं का समाधान कर पाता है तो यह खुशी की बात है किन्तु यह ख़ुशी तभी महत्त्वपूर्ण है जबकि सामने वाला उस पर अनावश्यक कार्यों का बोझ न लादे. देखने में आता है कि ऐसे व्यक्ति पर हर तरीके के कामों का बोझ डाल दिया जाता है. यहाँ उस व्यक्ति को समझना चाहिए कि वह किसी भी तरह के काम को पूरा करने के लिए हमेशा ही मौजूद हैं, यह भाव दूसरे के मन में नहीं होना चाहिए. यदि वह व्यक्ति ऐसा ध्यान नहीं रखता है तो लोग अपना काम उससे निकलवाते रहेंगे और उसके अपने काम कभी पूरे नहीं हो सकते. ऐसी स्थिति से बचने के लिए सबसे पहले उस व्यक्ति को दूसरों को ना कहना सीखना होगा. कभी-कभी सिर्फ एक ना कहना भी बहुत अधिक लाभदायक सिद्ध होता है. इसके लिए यह आवश्यक नहीं कि किसी भी तरह से अशालीन भाषा में सामने वाले को उस काम के लिए ना कहा जाये. वह व्यक्ति विनम्रता से अनावश्यक काम को नकारते हुए कह सकता है कि अभी उसके पास समय नहीं है, उसे वह समय अपने परिवार के लिए देना है.  


यहाँ सम्बंधित व्यक्ति को यह भी ध्यान रखना होगा कि उसके द्वारा किसी भी अनावश्यक काम के लिए इंकार करने पर उसके लिए किसी भी तरह का अफ़सोस करने की आवश्यकता नहीं है. किसी भी काम के लिए हाँ अथवा ना कहना किसी भी व्यक्ति का अपना अधिकार है. ये जानते-समझते हुए भी जिस काम को उनके सिर पर थोपा जा रहा है वह नितांत अनावश्यक है अथवा कि उसका उससे कुछ लेना-देना नहीं है, व्यक्ति का इंकार न कर पाना उसके व्यक्तित्व की बहुत बड़ी कमी कही जाती है. इस तरह की कमी भले ही तात्कालिक रूप में किसी तरह के नकारात्मक परिणाम न दे किन्तु दीर्घकालिक अवधि में यह कमी व्यक्ति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है. ना न कर पाने की आदत के चलते, इंकार करने के स्थान पर किसी भी काम, जिम्मेवारी को स्वीकार करने के स्वभाव के कारण जब उसी व्यक्ति के काम बाधित होने लगते हैं, समय की बर्बादी समझ आने लगती है, उसके विकास-क्रम में अवरोध आने लगते हैं, परिवार के लिए भी वह यथोचित समय नहीं दे पाता है तो उसके भीतर एक तरह का आक्रोश, एक तरह का चिड़चिड़ापन पैदा होने लगता है. वह व्यक्ति भले ही अपने स्वभाव के कारण अपनी प्रतिक्रिया न दे किन्तु उसकी नकारात्मकता उसके स्वयं के लिए कष्टकारी होने लगती है. ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि उन सबके लिए उसे न तो कोई यथोचित परिणाम प्राप्त होता है और न ही किसी तरह का रिवार्ड हासिल होता है, आखिर वे सभी काम दूसरों के काम होते थे, दूसरों की जिम्मेवारियाँ थीं, अनावश्यक कार्य थे.


कई बार व्यक्ति किसी काम के लिए ना इसलिए भी नहीं कहता या कह पाता है क्योंकि उसे लगता है कि इससे कहीं सामने वाले से उसके सम्बन्ध न प्रभावित हों. ऐसी किसी भी सोच से बचते हुए सामने वाले के साथ पूरी ईमानदारी बरतते हुए उसे अपने समय, अपने श्रम, अपनी जिम्मेवारी के बारे में भी बताएं. यहाँ एक बात और ध्यान रखने वाली है जब सामने वाला व्यक्ति अनावश्यक कामों को थोपते समय किसी तरह से संबंधों का लिहाज नहीं कर रहा है तो उसके साथ संबंधों का लिहाज करते हुए अपने आपको अनावश्यक कार्य में संलिप्त कर लेना उचित नहीं कहा जायेगा. काम के लिए इंकार न करने वाले व्यक्ति के सामने अक्सर एक स्थिति यह भी होती है कि यह काम उसके संस्थान का है, उसके साथ का है यदि उसने कर दिया तो क्या गलत किया. इस तरह की मानसिकता एक-दो कार्यों के सन्दर्भ में तो उचित मानी जा सकती है किन्तु दीर्घकालीन स्थितियों में ये सही नहीं होती है. यहाँ उसे समझना चाहिए कि उसके पहले भी किसी न किसी रूप में कार्यों का निष्पादन होता रहा है. किसी न किसी के द्वारा उन कार्यों का सम्पादन होता रहा है. ठीक उसी तरह से कार्यों का सम्पादन वर्तमान में भी हो सकता है. यहाँ यह भी महत्त्वपूर्ण है कि इस तरह की सोच के कारण अन्य लोग कार्य करने की प्रवृत्ति से बचते रहते हैं और किसी भी कार्य-स्थल, संस्थान, कार्यालय आदि में कार्य न करने की प्रवृत्ति वाले अधिक लोग हो जाते हैं. यह स्थिति भी किसी संस्थान की उन्नति की दृष्टि से सही नहीं है.


किसी की परेशानी सुलझाना, उसकी मदद करना, उसकी जिम्मेवारियाँ पूरी करना एक अच्छी बात है लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि यह आदत कहीं मुसीबत ना बन जाए. किसी की परेशानी हल करने पर, किसी कार्य को करने पर जो संतोष मिलता है उसका आनंद लिया जाना चाहिए किन्तु पल भर के इस आनंद के लिए ख़ुद को मुसीबत में मत डालिए. इसलिए अनावश्यक कार्यों से बचने के लिए, अपने समय को बचाने के लिए, अपने स्वास्थ्य के लिए, अपने परिवार की ख़ुशी के लिए ना कहना भी सीखिए, इंकार करना भी शुरू करिए.  

 




 

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