21 जुलाई 2022

मोबाइल का उपयोग और व्यक्ति का अकेलापन

आज लगभग हर हाथ मोबाइल से और सभी मोबाइल इंटरनेट सुविधा से सुसज्जित हैं. हम सभी अपने आसपास ऐसे लोगों को अवश्य ही देखते होंगे जो लगातार मोबाइल को ही निहारते रहते हैं. मोबाइल की स्क्रीन पर अपनी उंगलियाँ घुमाते रहते हैं. जबरदस्त व्यस्तता से भरे दिखाई पड़ने वाले ऐसे लोग वास्तविकता में अन्दर से किस कदर अकेलेपन से घिर चुके होते हैं, न उनको इसका भान होता है और न ही हम सब उसे समझ पाते हैं. इस अकेलेपन को न समझ पाने का एक बहुत बड़ा कारण यह भी होता है क्योंकि हम सब भी कहीं न कहीं इसी तरह की स्थिति का शिकार होते हैं.


निश्चित ही तकनीकी दौर में बिना तकनीक के आगे बढ़ना संभव नहीं है. इंटरनेट और स्मार्ट फोन ने यकीकन काम को गति दी है, सुविधाजनक बनाया है मगर इस गति और सुविधा ने व्यक्तियों को अकेला कर दिया है या कहें कि उनमें अकेलापन भर दिया है. ये चौंकने वाली बात नहीं है, बस इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है, अपने आसपास जो घटनाएँ हो रही हैं उनका विश्लेषण करने की आवश्यकता है. हम सभी को वो दौर याद होगा जबकि हमें डाटा की बहुत अधिक कीमत चुकानी पड़ती थी. उन दिनों में भी काम हुआ करते थे, नेट का उपयोग हुआ करता था मगर उसमें एक तरह की सीमितता थी. उस समय डाटा के उपयोग में मन-मष्तिष्क में एक तरह की किफ़ायत करने का भी भान हुआ करता था. उन दिनों के उलट आज देखें तो असीमित रूप में हम सबको डाटा मिला हुआ है मगर इसका कितना सदुपयोग किया जा रहा है या कहें कि हो रहा है ये सोचने वाली बात है.


लगभग मुफ्त के भाव मिलते डाटा ने और इंटरनेट की दुनिया में उपलब्ध अनेकानेक सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ने जैसे हम सबके आसपास एक तरह का कल्पनालोक बना दिया है. सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की जबरदस्त उपलब्धता से व्यक्ति अपने आसपास की वास्तविक दुनिया से दूर होता गया और स्क्रीन पर दिखाई पड़ती दुनिया के करीब आता गया. इसी का दुष्परिणाम व्यक्तियों के अकेले होने के रूप में सामने आ रहा है. इसकी परिणति अवसाद, निराशा, कुंठा, अपराध, नशे की प्रवृत्ति आदि के रूप में दिखती हुई आत्महत्या तक जा पहुँची है. इसे कोई बनाई हुई आभासी स्थिति न कहिये बल्कि महसूस कीजिये.




हम, आप सभी सुबह-सुबह मोबाइल पर आते अनेकानेक सुप्रभात अथवा दार्शनिक संदेशों से दो-चार होते हैं. अक्सर इन संदेशों के प्रत्युत्तर में या तो सन्देश ही भेज दिया जाता है अथवा किसी इमोजी को भेज दिया जाता है. सन्देश भेजने वाले ने अपने दायित्व का निर्वहन कर लिया और उस सन्देश के प्रत्युत्तर में हम, आप ने अपने कर्तव्य का निर्वाह कर लिया. ये क्रम सामान्य दिनों में ही नहीं अपितु विशेष दिनों, अवसरों पर भी बना रहता है. जन्मदिन, वर्षगाँठ, पर, त्यौहार अथवा किसी भी ख़ुशी या ग़म के अवसर पर अब फोन करके बात करने जैसी स्थिति न के बराबर दिखाई पड़ती है. अब घनिष्ट यार-दोस्तों में भी देर-देर रात तक चैट करने की प्रवृत्ति पनप चुकी है. परिजनों के बीच, मित्रों के बीच, सहयोगियों के बीच, शहर-मोहल्ले के परिचितों के बीच आज एक तरह का अबोलापन सा बना हुआ है. कहने को पूरे दिन चैट होती है मगर बातचीत हुए महीनों बीत जाते हैं.


इस स्थिति को सहज समझना ही नादानी है और समाज में अकेलापन भर रही है. कोई भी व्यक्ति हो वह अपनी लगातार की दिनचर्या में कभी परेशान भी होता है, कभी खुश भी रहता है. कभी उसे अपने कार्यक्षेत्र में कोई उलझन आती है तो कभी वह पारिवारिक समस्या से जूझता है. किसी समय में आपस में बातचीत से ऐसी समस्याओं, परेशानियों का हल निकल आया करता था, यदि हल न भी निकलता था तो अपनी बात कह लेने से, सामने वाले से सांत्वना के दो बोल मिल जाने से भी मन हल्का हो जाया करता था. अब मैसेज के द्वारा न तो सामने वाले की मनोस्थिति समझ आ रही है और न ही उसकी ख़ुशी, ग़म के बारे में समझना हो पा रहा है.


अपने आसपास भीड़ होने, देखने के बाद भी व्यक्ति नितांत अकेला अपने मोबाइल की स्क्रीन में ही केन्द्रित है. सोशल मीडिया, इंटरनेट के अनकहे से सम्मोहन में व्यक्ति सबकुछ भुला बैठा है. होना यह चाहिए कि जिस तरह से आये दिन युवाओं में, किशोरों में अवसाद, हताशा, निराशा, नाराजगी, चिडचिडापन, आक्रोश आदि देखने को मिलने लगा है, उसके समाधान के लिए प्रयास किये जाएँ. परिवार में, सहयोगियों में आपस में बातचीत के पुराने दौर वापस लाये जाएँ. संपर्क बनाये रखने से ज्यादा आवश्यक है कि आपस में सम्बन्ध बनाये जाएँ. शाम को निश्चित रूप से सभी को मोबाइल, सोशल मीडिया, इंटरनेट से बाहर निकल एक-दूसरे से मिलने-जुलने को अनिवार्य बनायें. युवाओं और किशोरों को इंटरनेट की आभासी रील वाली दुनिया से वास्तविक संबंधों, रिश्तों वाली दुनिया की सैर करवाएं. मोबाइल का उपयोग अत्यंत आवश्यक होने की दशा में ही करने के प्रयास किये जाने चाहिए.


यह सत्य है कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में तकनीकी बहाव को रोका नहीं जा सकता है, उससे बचा भी नहीं जा सकता है मगर अपने व्यवहार से, मानसिकता से उस पर नियंत्रण अवश्य लगाया जा सकता है. जिस तरह प्राकृतिक रूप से सर्दी, गर्मी, बरसात को रोका नहीं जा सकता परन्तु उनसे बचने के उपाय अवश्य किये जा सकते हैं, कुछ ऐसा ही हम सबको मोबाइल, इंटरनेट, सोशल मीडिया के उपयोग को लेकर करना होगा. स्क्रीन की भीड़ भरी आभासी दुनिया में अकेलेपन का शिकार होने से बचने के लिए अपने आसपास की वास्तविक दुनिया से पहले की तरह सम्बन्ध बनाने होंगे.


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