18 जून 2022

अग्निपथ योजना का अनावश्यक विरोध

भारतीय सेना में अग्निपथ योजना की घोषणा होते ही उसका विरोध देश में अनेक स्थानों पर दिखाई दिया. सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया साथ ही निजी संपत्ति को भी क्षति पहुँचाई गई. अग्निपथ योजना में भर्ती किये जाने वाले अग्निवीर युवाओं के सन्दर्भ में अनेक तरह की चर्चाएँ देखने को मिल रही हैं. ऐसा लगता है जैसे किसी अन्य शक्ति के हाथों से सारा उपद्रव संचालित हो रहा हो. जिस तरह से बयानबाजी होने लगी, जिस तरह से लोगों ने इस योजना को लेकर पूर्वाग्रह व्यक्त किये उसे देखकर तो यही लगता है कि विरोध करने वाले किसी व्यक्ति ने इस योजना के बारे में पढ़ नहीं रखा है. केंद्र सरकार द्वारा जैसे ही इस योजना की घोषणा की गई वैसे ही विरोधियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया.


कुछ बिंदु ऐसे हैं जिन पर विचार किया जाता तो शायद बहुत बातें स्पष्ट हो जाती. यहाँ जिस तरह से विरोध शुरू किया गया उसके अनुसार ऐसा प्रतीत हुआ मानो सरकार युवाओं को जबरदस्ती उठा ले जा रही है. सत्रह वर्ष से बाईस वर्ष तक के युवाओं के लिए जैसे यह अनिवार्य योजना है, जिसमें उनको अपने ये चार साल सेना के लिए देना ही देना है. सरकार के ऐसे कदम के बाद उनका भविष्य चौपट हो जायेगा. चार साल के बाद वे किस नौकरी की तैयारी करेंगे. यहाँ समझना चाहिए था कि यहाँ किसी तरह की अनिवार्यता अथवा जबरदस्ती नहीं है. जिस युवा का मन हो सेना में सेवा करने का वह चार साल के लिए इसमें जा सकता है.


जिस तरह से कहा जा रहा कि सिविल सेवा में जाने के लिए, इंजीनियर, डॉक्टर आदि बनने के लिए यही उम्र महत्त्वूर्ण होती हा और यदि यही चार साल सेना में निकल गए तो फिर वे युवा क्या करेंगे. यहाँ सोचना होगा कि जिस युवा को सिविल सेवा, डॉक्टर, इंजीनियर क्षेत्र में जाना होगा वो उसी के लिए अपनी पढ़ाई कर रहा होगा. वो अनावश्यक रूप से अपना ध्यान क्यों भटकाएगा? इस योजना के द्वारा कम से कम वे युवा जो शारीरिक रूप से सक्षम हैं मगर किसी अन्य कारण से सिविल अथवा अन्य क्षेत्र में नहीं जा सकते. सेना में अग्निवीर के रूप में अपनी सेवा दे सकते हैं.




इस बात का भी विरोध किया जा रहा है कि इस तरह की भर्तियों से सेना का मूल ढाँचा प्रभावित होगा. यहाँ भी इस बात पर विचार नहीं किया गया कि इस अग्निपथ योजना के आने के कारण किसी दूसरी भर्ती योजना को बंद नहीं किया गया है. नियमित रूप से जो भर्तियाँ सेना में होती थीं, वे चलती रहेंगी. इस योजना का लाभ जो व्यक्तिगत रूप से हमें समझ आ रहा है वो ये होगा कि सेना के वे कुशल, नियमित जवान जो लम्बे परिश्रम, अनुशासित जीवन और अभ्यास के बाद प्रशिक्षित होते हैं और उनको अपना बहुत सा समय मंत्रों ट्रेन की सुरक्षा में, वीआईपी की सुरक्षा में, आपदा के समय राहत कार्यों में, किसी दुर्घटना के समय सहायता करने में निकालना पड़ता है, उन सैनिकों को इससे मुक्त रखा जा सकता है. यहाँ पर यही अग्निवीर तैनात किये जा सकते हैं. इससे देश के कुशल और प्रशिक्षित सैनिकों को अपना बेहतर सेना के लिए, देश की सुरक्षा के लिए देने को मिलेगा.


अभी कहीं भी खुलकर ये बात नहीं कही गई है कि अग्निवीरों को देश की सीमा पर तैनात किया जायेगा. किसी ने भी ये नहीं कहा है कि उनको हथियारों से समृद्ध करके संवेदित जगहों पर तैनात किया जायेगा. जिस तरह की चर्चाएँ निकल कर सामने आ रही हैं उनमें एक बात ध्यान देने योग्य है कि ये एक तरह का सैन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम है. जिसके चार साल तक नियमित प्रतिमाह वेतन तो मिलेगा ही, चार साल की अवधि पूरी होने के बाद एक बड़ी धनराशि भी प्रदान की जाएगी. दुर्घटना में अथवा इन्हीं चार साल की अवधि में किसी तरह से अग्निवीर की मृत्यु हो जाती है तो उसके लिए भी सरकार की तरह से धनराशि की व्यवस्था की गई है.


देखा जाये तो वर्तमान में जिस तरह का परिदृश्य राजनैतिक हलकों में बना हुआ है, उसे देखते हुए एक बात विरोधी भली-भांति समझ चुके हैं कि उनके द्वारा किसी भी रूप में केंद्र सरकार को हिलाया नहीं जा सकता है. इसलिए विरोधियों के द्वारा समय-समय पर उपद्रव रूप में विरोध किया जाने लगा है. उनका मकसद है कि समाज में लोगों में केंद्र सरकार के विरुद्ध एक मानसिकता का निर्माण हो, सरकार के खिलाफ माहौल बने जिससे आगामी चुनावों में शायद किसी हद तक सरकार को कमजोर कर सत्ता से दूर किया जा सके. अग्निवीर का विरोध इसी विपक्षी मानसिकता का परिणाम है.

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2 टिप्‍पणियां:

  1. अग्निपथ योजना में वही शामिल होंगे जो आज रेलगाड़ी, बस, थाना इत्यादि को अग्नि के हवाले कर रहे हैं. इस योजना का लाभ किसे मिलेगा, यह सोचना होगा. भरत के सभी नागरिकों के लिए यह योजना बने तो ठीक है, वरना हथियार चलाना सीखकर ये चौकीदार बनेंगे या पकौड़े छानेंगे. इससे किसी तरह का कोई विकास नहीं होना है. मुझे तो हमेशा लगता है कि प्रधानमंत्री के सलाहकार सही नहीं है. कुछ भी दिमाग में आता है बिना किसी परिकल्पना और कार्य योजना के आदेश दे दिया जाता है. बाकी अपने अपने विचार है, सभी स्वतंत्र है अपनी बात रखने के लिए.

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    1. एक बात समझ में नहीं आ रही कि अभी योजना पर काम भी शुरू नहीं हुआ और लोगों ने धारणा बना ली कि सेना की ट्रेनिंग लेकर निकले लोग हत्यारे बन जायेंगे. एक साल में कुछ 46000 लोग चयनित होंगे, वो भी सेना के नियमानुसार. अभी ये भी कहीं नहीं कहा गया कि उनको हथियार दिए जायेंगे.
      एक बात सोचिये, जो सेना के प्रशिक्षित, नियमित जवान हैं वे बोरवेल से बच्चे निकालने में लगाये जाने लगे हैं, मेट्रो ट्रेन में यात्रियों की जाँच में लगे हैं, हवाई अड्डों में चौकसी बरते हैं, जजों की सुरक्षा में लगे हैं, संसद भवन में तलाशी लेने में लगे हैं, बाढ़ में राहत सामग्री बांटने में लगे हैं.... क्या ऐसी जगहों पर इन अग्निवीरों को लगाकर हम अपने कुशल सैनिकों की ऊर्जा को सही दिशा में नहीं लगा सकते?
      और रही बात चार साल बाद बाहर आकर गुंडागर्दी करने की, तो NCC या प्रादेशिक सेना में भी प्रशिक्षण मिलता है, वहाँ से निकलने के बाद कौन गुंडा बना, कौन हत्यारा बना?

      सरकार की इसमें एक ही कमी रही कि इसे नौकरी से जोड़कर सामने रखा. इसे सेना में प्रशिक्षण के नाम पर लाते तो लोग इसके लिए फीस भी देते और हँसी-हँसी इसका समर्थन भी करते.

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