समय कितनी तेजी से भाग रहा है, इसका अंदाजा सामान्य रूप में नहीं होता है. जैसे ही कोई अवसर विशेष की
बात हो, किसी यादगार दिन की बात हो,
किसी पारिवारिक घटना की चर्चा हो, किसी स्मृति के सम्बन्ध
में कोई दिन याद किया जाये (भले ही ऐसा सुखद अथवा दुखद घटना के रूप में हो) तो समझ
आता है समय का भागना, बहुत ज्यादा गति से भागना.
आज 16 मार्च है. इस तारीख को भुला पाना संभव ही नहीं है. आज काल-गणना में समझ आई
काल की गति. देखते-देखते सत्रह वर्ष गुजर गए, और आँखों के सामने सबकुछ वैसे ही ताजा है जैसे वर्ष 2005 में था. एक-एक फोन, एक-एक शब्द, एक-एक घटना, एक-एक व्यक्ति सबकुछ. कुछ भी आँखों से
ओझल नहीं है, सिवाय पिताजी के.
बहरहाल, किया भी क्या जा सकता था, अब किया भी क्या जा सकता है? किसी समय पिताजी को याद करते हुए चंद लाइन लिख
गईं थीं, वे ही आज की पोस्ट में पिताजी को
समर्पित हैं.
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