वृन्दावन लाल वर्मा, इस
नाम से परिचय बचपन में ही हो गया था. यद्यपि उस समय आपके बारे में बहुत जानकारी
नहीं थी तथापि इतना अवश्य पता चल गया था कि ये कहानियों जैसा, किताबों जैसा कुछ लिखते हैं. सात-आठ वर्ष की उम्र में साहित्य के नाम पर
बस कहानी, कविता शब्द ही समझ आते थे क्योंकि इनको अपनी
पाठ्य-पुस्तकों में देख-पढ़ रहे थे. इसके अलावा घर पर पढ़ने का माहौल बना होने के
कारण भी पुस्तकों के रूप में वृन्दावन लाल वर्मा नाम देखने को मिल रहा था. बाद में
टीवी पर आने वाले मृगनयनी धारावाहिक को देखने के दौरान और भी स्पष्ट जानकारी हुई.
उसी धारावाहिक को देखने के दौरान मृगनयनी उपन्यास पढ़ने का अवसर मिला.
बाद में कक्षाओं में,
पाठ्य-पुस्तकों में ऐसे उलझे कि साहित्य के नाम पर बहुत सी पुस्तकों से परिचय
स्नातक अध्ययन के दौरान ही कॉलेज के पुस्तकालय के माध्यम से हुआ. उसमें भी
वृन्दावन लाल वर्मा जी के साहित्य को अलग-अलग करके नहीं देखा-समझा. झाँसी की रानी
और गढ़ कुंडार उसी दौरान पढ़ने को मिले. बस पढ़ने का शौक था, सो
पढ़ लिया मगर कभी सोचा नहीं था कि बचपन से सुनते चले आ रहे इस नाम का सम्बन्ध हमारे
कैरियर से, हमारी डिग्री से भी हो जायेगा.
हिन्दी साहित्य से परास्नातक की पढ़ाई पूरी करने
के बाद पितातुल्य ब्रजेश अंकल के द्वारा पीएच.डी. करने का आदेश हुआ. हमारी तरफ से
बहुत दिनों से इस मामले को लेकर टालमटोल हो रही थी. एक दिन अंकल ने न केवल आदेश
दिया बल्कि हमारे ऊपर अत्यंत स्नेह भाव, वरदहस्त रखने वाले डॉ. दुर्गा प्रसाद
श्रीवास्तव जी के पास भी ले गए. उनके सामने शिष्य भाव से जाकर बैठ गए. उस समय तक
दिमाग में ये था कि जब परास्नातक की डिग्री ले ली है तो अपने नाम के आगे डॉ. अवश्य
ही लगवाएंगे मगर ऐसा कब करेंगे, किस विषय से करेंगे ये न
सोचा था. विषय का चक्कर इसलिए भी था क्योंकि हिन्दी साहित्य से परास्नातक के पूर्व
हम अर्थशास्त्र में एमए की डिग्री हासिल कर चुके थे.
खैर, दो-चार सवाल इधर-उधर
के होने के बाद, सामान्य सी बातचीत होने के बाद डीपी सर (डॉ.
दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव जी को सामान्य बोलचाल में इसी संबोधन से पहचाना जाता रहा
है) ने हिन्दी साहित्य में हमारी रुचि और हमारे पसंद के शोध क्षेत्र की जानकारी
ली. सर को बताया कि गद्य में ज्यादा रुचि है और हम चाहते हैं कि हमारी पीएच.डी.
किसी भी विषय में हो पर क्षेत्र बुन्देलखण्ड का हो. ऐसा जानते ही सर ने तत्काल कहा
कि वृन्दावन लाल वर्मा जी के साहित्य में कर लो, उनका
साहित्य मूलतः गद्य ही है. चूँकि इस नाम से हम बचपन से ही परिचित थे, सो हमने भी
तुरंत सहमति में अपना सिर हिला दिया.
उसी समय सर ने शोध-विषय ‘वृन्दावन लाल वर्मा के साहित्य में अभिव्यक्त सौन्दर्य का अनुशीलन’ निर्धारित कर दिया. अगले दिन सिनोप्सिस बना कर विश्वविद्यालय जमा करने का आदेश दिया. बाद में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी द्वारा संशोधन के बाद हमें शोध-कार्य करने के लिए ‘डॉ. वृन्दावन लाल वर्मा के उपन्यासों में अभिव्यक्त सौन्दर्य का अनुशीलन’ शीर्षक अनुमोदित हुआ. दो वर्षों की अवधि में अपना शोध-कार्य विश्वविद्यालय में जमा करके अगले वर्ष सम्पूर्ण आवश्यक प्रक्रिया के बाद अपने नाम के आगे डॉ. लगाने की अनुमति और गौरव प्राप्त हुआ. किसी समय बस नाम से परिचित होने वाले व्यक्तित्व से अपने शोध-कार्य के दौरान व्यापकता के साथ परिचय हुआ. यह बात हमें आज भी गौरवान्वित करती है कि बचपन से परिचित नाम हमारे साथ न केवल डिग्री रूप में जुड़ा बल्कि यही डिग्री आगे चलकर हमारा कैरियर बनी. वर्ष २००५ में हिन्दी साहित्य से ही स्थानीय गांधी महाविद्यालय में अध्यापन करने का अवसर मिला और सहायक प्राध्यापक के रूप में हमारा चयन हुआ. इसके साथ ही हमारे लिए यह भी गौरव का विषय आज तक है कि हमारे शोध-निर्देशक डॉ. दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव जी देश में तीसरे ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने दो विषयों में डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त की हुई थी. डीपी सर ने हिन्दी साहित्य और भाषा विज्ञान में डी.लिट्. उपाधि हासिल की थी.
एम.ए. करने के बाद अपने नाम के आगे डॉ. लगाने की
इच्छा रखने की पूर्ति इस रूप में हुई कि हिन्दी साहित्य के साथ-साथ अर्थशास्त्र
विषय से भी बाद में पीएच.डी. उपाधि बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी से प्राप्त की. अपनी पढ़ाई के दौरान से ही हम पर विशेष स्नेह रखने
वाले डॉ. शरद जी श्रीवास्तव सर ने निर्देशन में अर्थशास्त्र विषय में पीएच.डी.
उपाधि हासिल करने का सौभाग्य मिला. इसका भी शोध-क्षेत्र हमने बुन्देलखण्ड ही चुना.
आज, २३ फरवरी को प्रसिद्द
उपन्यासकार, नाटककार वृन्दावन लाल वर्मा जी की
पुण्यतिथि है. हिन्दी
उपन्यास के विकास में
उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है. उन्होंने ऐसे दौर में जबकि प्रेमचंद उपन्यास विधा
में एक युग बन चुके थे, उपन्यास के क्षेत्र में न केवल प्रवेश
किया बल्कि ऐतिहासिक उपन्यासों की सफल रचना करके अपना एक अलग, विशिष्ट स्थान बनाया. देखा जाये तो वृन्दावन लाल
वर्मा जी ने एक तरफ प्रेमचंद की सामाजिक परंपरा को आगे बढ़ाया तो
दूसरी तरफ हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यास की धारा को उत्कर्ष तक पहुँचाया.
आज उनकी
पुण्यतिथि पर सादर नमन.
रोचक संस्मरण। वृन्दालाल वर्मा जी की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन।
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