अभी तक तो हम तुमको देख पा रहे थे, भले ही पार्थिव रूप में. आज एक साल होने को आया जबकि हमने तुमको पञ्चतत्त्व में विलीन कर दिया. जिस किसी भी, भले ही वह तुम्हारा निर्जीव रूप था, तुमको देख रहे थे मगर आज के बाद तो तुमको देख भी नहीं सके, तुमको छू भी नहीं सके. हम तो उस दिन तुमको छूने में भी संकोच कर रहे थे. समझ नहीं आ रहा था कि क्या कह के तुमको स्पर्श करें? उस दिन तो कोई आशीर्वाद भी तुम तक नहीं पहुँच रहा था. कोई आवाज़ भी तुम नहीं सुन रहे थे. दीपू ने कितनी बार कहा हमसे कि भाई जी मिंटू को बोलो कि उठे, मगर तुम किसी की सुन ही कहाँ रहे थे. तुम तक हमने बहुत बार हाथ बढ़ाया, बहुत बार तुमको छुआ मगर तुमने कोई जवाब नहीं दिया. तुमको उस दिन उठना ही नहीं था, तुम उठे भी नहीं.
कितनी
बड़ी सजा है ये कि तुमको किसी दिन अपने कंधों पर उठाने वाले, तुमको खिलाने वाले उस
दिन भी तुमको अपने कंधों पर लिए जा रहे थे मगर सबकी आँखों में आँसू थे. वे सब उस
दिन खुश नहीं थे, हँस नहीं रहे थे. उस दिन गिरते-पड़ते हमने
भी कुछ कदम तुमको अपने कंधे पर बिठाया था, ये सोच कर कि शायद
तुम उठ बैठो मगर तुम न उठे. हम जानते थे कि तुमको अब नहीं उठाना है फिर भी खुद को
धोखा देने का काम कर रहे थे. तुम उस धोखे में नहीं आये. तुम नहीं उठे.
बहरहाल, उस दिन को, उस बहुत बुरे दिन को आज एक साल हो गए
हैं मगर ऐसा लगता है जैसे आज, अभी इसी समय की बात हो. एक पल
भी तुम्हारे बिना नहीं गुजारा हमने. लोग पागल कह सकते हैं हमें, यदि उनको बताया जाये. कहने को कुछ भी कहा जाये मगर आज एक साल बाद भी एक
सेकेण्ड तुम्हारे बिना नहीं गुजरा हमारा. आज पिंटू इंदौर में थे तो वो टिंकू,
रश्मि और विक्रम सहित उज्जैन हो आये. तुम उज्जैन जाते रहते थे, रश्मि की भी ऐसी इच्छा थी. अब तुम हम सबके बीच या कहें कि तुम्हारे साथ
हम सभी लोग इसी तरह बस संस्कारों के माध्यम से आते रहेंगे.
तुमको
बार-बार आशीर्वाद, जहाँ रहो खुश रहो,
सुखी रहो.
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