आज छह दिसम्बर है, किसी के
लिए शौर्य दिवस किसी के लिए काला दिवस. इस दिन को यदि बाबरी ढाँचा विध्वंस से
जोड़कर देखा जाये तो और भी तमाम सारे अर्थ सामने आ सकते हैं. इस दिन का बाबरी ढाँचा
ध्वंस से जोड़कर देखने से हमारा भी सन्दर्भ बना हुआ है. किसी समय कॉलेज टाइम में की
गई गतिविधियों, रामलला हम आयेंगे,
मंदिर वहीं बनायेंगे के घोष के बीच यह दिन बहुत कुछ याद दिला जाता है. इधर एक बात
और बताते चलें कि अदालत का फैसला राममंदिर निर्माण के पक्ष में आने के बाद से सोशल
मीडिया के विभिन्न मंचों पर इस दिन हमारी स्वीकार्यता बनी रही अन्यथा की स्थिति
में पहले इस दिन किसी भी रूप में राममंदिर निर्माण की, बाबरी
ढाँचा ध्वंस की पोस्ट डालते ही हम पर प्रतिबन्ध लगा दिए जाते थे. कहीं दो दिन
पोस्ट न कर पाने का प्रतिबन्ध, कहीं कोई फोटो न लगा पाने का
प्रतिबन्ध, कहीं एकाउंट ही लॉग इन न कर पाने का प्रतिबन्ध.
बहरहाल, हमारे लिए
व्यक्तिगत रूप से छह दिसम्बर का दिन यदि राममंदिर निर्माण से जुड़ा होने के कारण
गर्व का एहसास कराता है वहीं हमारी आजीविका से जुड़ा होने के कारण भी एक अलग तरह की
अनुभूति देता है. वर्ष 2005 की कुछ अत्यंत दुखद घटनाओं के बाद उस साल का समापन एक सुखद घटना से हुआ
था. वह सुखद घटना थी हमारा मानदेय प्रवक्ता के रूप में चयनित होने को लेकर. मानदेय
प्रवक्ता पर चयन होने के बाद छह दिसम्बर को ही हमने गांधी महाविद्यालय, उरई में हिन्दी विभाग में कार्य करना शुरू किया था. आज जब कैलेण्डर देखते
हैं तो सोलह वर्ष की बाली उमरिया बीती हुई दिखाई देती है.
सोलह साल के लम्बे कार्यानुभव में बहुत सी
खट्टी-मीठीं बातें हमारे अनुभव के पिटारे में बंद हैं. वे बातें हँसाती कम, रुलाती ज्यादा हैं. फिलहाल तो मानदेय प्रवक्ता से बाहर निकल कर अब
विनियमित हो गए हैं. विनियमितीकरण के बाद फिर से एक नए सिरे से महाविद्यालय ने
नियुक्ति पत्र दिया, नए रूप में नियुक्ति की गई. इस बार भी
तिथि ऐतिहासिक ही रही. अबकी 08 मार्च को स्थायी शिक्षक
के रूप में सहायक प्राध्यापक पद पर कार्यभार ग्रहण किया. अब स्थायी शिक्षकों के
रूप में महाविद्यालय ने, विश्वविद्यालय ने, सरकार से स्वीकार कर लिया है. इसके बाद भी संघर्ष बहुत से मोर्चों पर अभी
ज़ारी है. संघर्ष भरे जीवन में एक संघर्ष इस अध्यापन क्षेत्र का भी.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें