हिन्दी दिवस का आयोजन बहुत से लोगों के लिए महज एक औपचारिकता सी है. इस औपचारिकता में लोग भूल जाते हैं कि यह दिवस हिन्दी के लिए है न कि हिन्दी साहित्य के लिए. आज सुबह-सुबह ही एक सज्जन मिल गए. उन्होंने हिन्दी दिवस की शुभकामनायें दी तो हमने भी जवाब में उनको शुभकामना बोल दिया. इस पर वे बड़े ही आत्ममुग्ध भाव से बोले कि न, ये हमारा दिन नहीं बल्कि आपका दिन है. हम तो साइंस वाले आदमी हैं. हमारा हिन्दी से क्या काम?
उनको ये बताते हुए कि हम भी साइंस वाले आदमी हैं,
समझाया कि आपने अभी जो गर्वोक्ति की है वो किस भाषा में की?
बस इसी भाषा को बोलने वालों का दिन है ये.
इस पर उनको ऐसा अनुभव हुआ जैसे कि किसी बहुत
बुरी स्थिति में ला खड़ा कर दिया हो. उनके चेहरे की भाव-भंगिमा से लगा कि वे अपने
आपको हिन्दी वाला आदमी बताये जाने पर अपमानित महसूस कर रहे हैं.
जब भी हिन्दी भाषी व्यक्तियों के साथ में इस तरह
की मानसिकता जन्म लेगी, हिन्दी का विकास नहीं हो सकता.
हिन्दी ही क्या किसी भी भाषा को बोलने, लिखने, पढ़ने वाले जब निम्न स्तर की मानसिकता लेकर समाज में कार्य करेंगे, उस भाषा का विकास होना कठिन है.
बहरहाल, हिन्दी दिवस पर
हमारे कुछ विचार अपने मित्रों सहित प्रकाशित हैं. उनको पढ़िए और प्रयास करिए कि
हिन्दी के विकास में अपना कुछ योगदान कर सकें.
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