खुशी हो या गम सभी समय के हाथ में रहते हैं। यह किसी व्यक्ति की मानसिकता पर निर्भर करता है कि वह अपने साथ घटित होने वाले अच्छे या बुरे घटनाक्रम से किस प्रकार से निपटता है। यह सही बात है कि बुरी घटनाएं व्यक्ति को झकझोर देती हैं। यह हर व्यक्ति के बस की बात नहीं है कि वह बुरी घटनाओं के प्रभाव से सहजता से बाहर निकल सके किंतु व्यक्ति को इस प्रकार से अपने आप को संतुलित करना चाहिए कि वह खुद को बुरी घटनाओं के प्रभाव से बाहर निकाल सके।
हम सभी के जीवन में इस प्रकार के उदाहरण सामने आते रहते हैं कि उनके द्वारा पता चलता है कि लोग खुद को दुख से बाहर निकाल कर सुख की तरफ बढ़ रहे हैं। यह सत्य है कि किसी भी व्यक्ति का दुख उसका व्यक्तिगत होता और उसके साथ के लोग निश्चित ही उसका दुख बांटने का काम करते हैं। इसके बाद भी यह देखने में आता है कि एक समयसीमा के बाद लोग ऐसे व्यक्तियों का साथ देने से बचने लगते हैं जो 24 घंटे सिर्फ रोने का, अपने दुख को दिखाने का काम करते रहते हैं। हम सभी को यह समझना चाहिए कि इस संसार में पूर्णरूप से सुखी अथवा प्रसन्न कोई भी नहीं है, हर एक व्यक्ति के साथ तमाम सारे सुखों के बीच कोई ना कोई दुख लगा रहता है। ऐसे में कोई भी व्यक्ति अपने दुख को भूलकर यदि सामने वाले की दुख में का साथ दे रहा है तो यह बड़ी बात है।
दुख में साथ देने की स्थिति के बाद भी एक स्थिति ऐसी आती है जबकि साथ देने वाला व्यक्ति भी दूसरे के दुख से खुद को परेशान महसूस करने लगता है। इसके पीछे का कारण सामने वाले का सिर्फ दुख भरी बातें करना, अपने कष्टों को बताते रहना आदि रहता है। सिर्फ और सिर्फ अपने दुखों को बताते रहना, मिलने वाले से अपने कष्टों की चर्चा करते रहना कहीं ना कहीं मिलने वालों की संख्या में कमी करता है। परेशान व्यक्तियों को चाहिए कि वे इस बात को समझें कि प्रत्येक व्यक्ति अपने दुखों को पीछे रखकर उसके दुखों को बांटने का काम कर रहा है। इसलिए जो व्यक्ति उसके साथ है उसके दुखों, सुखों का भी ख्याल रखना चाहिए।
दुख का वातावरण नकारात्मकता पैदा करता है इसलिए किसी भी व्यक्ति को अपने आसपास बहुत देर तक अथवा बहुत दिनों तक दुख जैसी स्थिति को बनाए रखना से बचना चाहिए। नकारात्मकता के उस माहौल से व्यक्ति स्वयं भी परेशान होता है और अपने मिलने वाले व्यक्तियों को भी परेशान करता है। दुख की नकारात्मकता के बीच सुख अथवा प्रसन्नता सकारात्मकता पैदा करता है। परेशानी की स्थिति में भी यदि व्यक्ति अपने आसपास सकारात्मक माहौल बनाए रखें तो वह स्वयं अपने दुखों से बहुत हद तक खुद को बाहर निकाल लेता है। इसके अलावा उसके आसपास की सकारात्मकता उसमें ऊर्जा का संचार करती है जिसके द्वारा वह ना केवल खुद को स्फूर्तिवान और प्रसन्न महसूस करता है बल्कि अपने मिलने-जुलने वालों को भी खुशी देता है। दुख के बीच अपने आसपास खुशी का वातावरण सृजित करना प्रत्येक के वश की बात नहीं है किंतु माहौल को नकारात्मकता से बचाने के लिए ऐसा करना अत्यावश्यक होता है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने आसपास किसी भी रूप में नकारात्मकता, दुख अथवा परेशानी को बहुत लंबे समय तक न बना रहने दे।
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