26 अप्रैल 2021

आत्मविश्वास और जिजीविषा से ज़िन्दगी को जीवन देना

ज़िन्दगी उतनी भी हसीन नहीं जितनी हम समझते हैं और मौत उतनी भी भयानक नहीं जितनी हमने मान रखा है. ऐसा अपने अनुभव के आधार पर ही कहा जा सकता है. ऐसा सिर्फ हम ही नहीं कह रहे, ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसने जिन्दगी को करीब से जिया है, महसूस किया है वह समझ सकता है. असल में हममें से बहुत से लोग ज़िन्दगी जीना भूल चुके हैं या कहें कि ज़िदगी जीना ही नहीं जानते. आज भी बहुतायत लोग खाने-कमाने को ही ज़िन्दगी माने बैठे हैं. यही कारण है कि ऐसे लोगों की सोच के कारण न केवल इनकी ज़िन्दगी वरन सम्पूर्ण समाज का ढाँचा विकृत स्थिति में पहुँच गया है. इन लोगों के लिए सुबह उठने से लेकर रात सोने तक सिर्फ अपने परिवार के चंद लोगों की चिंता करना ही ज़िन्दगी है. ऐसे लोगों के लिए स्वार्थ में संकुचित रहना ही ज़िन्दगी है. यही लोग वे हैं जो ज़िन्दगी को एक निश्चित दायरे से बाहर जाने देना नहीं चाहते हैं. ऐसे लोगों के लिए ही ज़िन्दगी दिव्य और भव्य होती है. देखा जाये तो ज़िन्दगी इससे कहीं अधिक बड़ी है, विस्तृत है. ज़िन्दगी का तात्पर्य सिर्फ अपना परिवार नहीं. ज़िन्दगी का मतलब अपने परिजन नहीं. ज़िन्दगी का मतलब चंद लोग नहीं हैं.




अपने आपमें व्यापक अवधारणा और विस्तृत सन्दर्भ को अपने में संजोये रखती है ज़िन्दगी. उसके लिए किसी एक व्यक्ति, किसी एक परिवार का कोई मोल नहीं. असल में ज़िन्दगी एक व्यक्ति से आरम्भ होकर अपने में सम्पूर्ण का प्रसार करती है. वह आरम्भ तो होती है किसी एक व्यक्ति के द्वारा और फिर अपना विस्तार करते हुए उसे सन्दर्भ प्रदान करती है. ज़िन्दगी का विस्तार और संकुचन भले ही संदर्भित व्यक्ति को अलग-अलग रूपों में सुखद दिखाई देता हो मगर मूल रूप में वह अत्यंत कष्टप्रद होता है. जिसने ज़िन्दगी का सन्दर्भ व्यापकता में देखा हो उसे ज़िन्दगी कष्टप्रद ही नहीं भयावह नजर आती है. विगत कुछ दिनों में न केवल हमने बल्कि हम जैसे अनेक भाइयों ने ज़िन्दगी की भयावहता को बहुत नजदीक से देखा-महसूस किया है. ज़िन्दगी के आनंद के क्षणों को कहीं गायब होते देखा है. पल-पल ज़िन्दगी के रूप में मौत को पास आते देखा है. ऐसा हमने हर उस स्थिति में महसूस किया है जबकि हमने ज़िन्दगी को आपस में एक-दूसरे से जोड़ कर देखा है.


आज किसी भी फोन की घंटी पर सहम जाना, किसी भी मैसेज की आवाज़ पर सिहर जाना, बातचीत का सिरा पकड़ते हुए आवाज़ में कम्पन आना सब कुछ ऐसा होता जा रहा है जो बता रहा था कि हम सब एक हैं मगर कहीं न कहीं भीतर से डरे हुए हैं. इस एक होने के बाद भी हम सब ज़िन्दगी का संगठित रूप प्रस्तुत नहीं कर पा रहे थे. बहुत से लोग अपनी-अपनी ज़िन्दगी के अनमोल पलों में से बहुत सारा जीवन जरूरतमंद लोगों को देने को तैयार बैठे हैं मगर ज़िन्दगी के द्वारा ज़िन्दगी नहीं दी जा सकती है. यही कारण है कि सुखद होने के बाद भी ज़िन्दगी अत्यंत भयानक है. जहाँ एक व्यक्ति अपनी ज़िन्दगी का सुखद पल अपने साथ लिए बैठा होता है और उसी का अभिन्न भाई ज़िन्दगी में से ज़िन्दगी का एक-एक पल अपने लिए तलाश रहा होता है. ये तो विश्वास, संयम, हिम्मत रखने वाली बात है, ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से अलग नहीं होने देने का जज्बा है कि बहुतेरे लोग आज भी अपने आत्मविश्वास, अपनी जिजीविषा के चलते ज़िन्दगी को सुरक्षित रख ले जा रहे हैं. विश्वास, स्नेह, आशीर्वाद की दम पर ज़िन्दगी को अपने बगल में बैठा लेने पर मजबूर कर देने वाले अपने सभी परिचितों, अपरिचितों, मित्रों, परिजनों, सहयोगियों के दीर्घायु होने की कामना.


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वंदेमातरम्

1 टिप्पणी:

  1. सार्थक लिखा आपने। सोच और मानवीयता का व्यापक विस्तार ही तो जीवन है। कोरोना के इस दुखद समय में जीवन और मृत्यु का मोल समझ आ रहा है।

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