17 अप्रैल 2021

आम नागरिकों का लापरवाही भरा व्यवहार

पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ी है वह निश्चित ही चिंताजनक है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस बार इसके कारण बहुत से लोगों को मौत ने छीन लिया है. जिस तरह से मीडिया में आ रहा है उससे लग रहा है जैसे चारों तरफ अव्यवस्था ही अव्यवस्था है. कहीं ऑक्सीजन की कमी दिखाई जा रही है, कहीं श्मशान घाटों पर भीड़ बताई जा रही है, कहीं से बेड न होने की समस्या है तो कहीं से दवाओं का न होना दिक्कत बढ़ा रहा है. जिस तरह से आम आदमी और सरकारी स्तर पर लापरवाही देखने को मिली है उसके बाद ऐसे हालात बन जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं.


इधर लोग सरकार को कोसने में लगे हुए हैं. ये वही लोग हैं जो पिछली बार सरकार द्वारा लॉकडाउन लगाये जाने के बाद से हाहाकार मचाने लगे थे. इन लोगों ने उस समय सरकार के इस कदम का घनघोर विरोध किया था और लॉकडाउन को मजदूरों, कमजोरों आदि के लिए घातक बताया था. सरकार को, प्रधानमन्त्री को तानाशाह तक सिद्ध कर दिया था. आज यही लोग लॉकडाउन की माँग करने में लगे हैं. अब वे सरकार को, प्रधानमंत्री को लॉकडाउन न लगाने के कारण कोसने में लगे हैं. बहरहाल, इसके इतर बहुत सी जगहों पर किसी तरह की चिकित्सकीय सुविधा के अभाव के लिए सरकार को दोषी ठहराने वाले खुद को दोषमुक्त मान रहे हैं. क्या वाकई सिर्फ सरकार ही दोषी है? माना कि प्राथमिक व्यवस्था करना सरकार का काम होता है मगर क्या आम नागरिक की जिम्मेवारी नहीं कि वह सरकार के साथ ऐसे आपातकाल में खड़ा रहे?


चलिए एक पल को मान लिया जाये कि सरकार ने एक साल बाद भी किसी तरह के इंतजाम नहीं किये. उसे मालूम था कि कोरोना गया नहीं है, ऐसे में वैक्सीन की व्यवस्था किसने की? सरकार ने आम आदमी के किसी रिश्तेदार ने? जितनी भी ऑक्सीजन हॉस्पिटल में उपलब्ध है वह किसने करवाई किसी आम आदमी ने या सरकार ने? आम आदमी ने क्या किया, आपदा बढ़ती दिखी तो उसने दवाओं की कालाबाजारी शुरू कर दी. मुश्किल घड़ी सामने आई तो इंजेक्शन दस-दस गुने दामों पर बेचा जाने लगा. ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ने लगी तो उसकी जमाखोरी शुरू हो गई. कम से कम कीमत वाले मास्क तक के अच्छे-खासे दाम वसूले गए.


ये तो मानिए कि व्यापारी वर्ग की हालत थी. और लोगों को तो मालूम था कि कोरोना अभी गया नहीं है मगर उन्होंने क्या किया? अनलॉक होने के बाद से बहुतेरे घर में रहने को तैयार नहीं थे. सब बाहर सडकों पर निकल कर ऐसे जमा होने लगे जैसे अब सभी संकटों से पार पा गए हैं. एक बारगी यह भी मान लिया जाये कि घरों में बंद लोग अकुलाहट में ऐसा कर बैठे तो भी आम नागरिक ने आने वाले समय के लिए किसी तरह के चिकित्सकीय इंतजाम किये? ये सभी तरफ से बताया जा रहा था कि कोरोना अभी गया नहीं है ऐसे में क्या आम नागरिकों ने एक या दो लोगों के लिए आपातकाल के लिए अपने घर में दवाओं को रखा था? क्या किसी परिवार ने अपने बुजुर्गजनों का मेडिकल चेकअप करवाया ताकि उनको किसी खतरे की आशंका से बचाया जा सके? क्या किसी ने अपने बच्चों को सुरक्षित रहने के टिप्स दिए? नहीं न. जिसने दिए उनकी संख्या लगभग न के बराबर है.


एक ऐसे समय में जबकि सभी नागरिकों ने पिछले साल कोरोना की दहशत को देखा और झेला भी है इसके बाद भी वह सजग नहीं हो सका है. इसी लापरवाही का परिणाम है कि व्यवस्था अचानक से बोझ पड़ने पर चरमरा उठी है. हमें एक जिम्मेवार नागरिक की हैसियत से सरकार का साथ देना चाहिए न कि अपनी लापरवाहियों से उसके लिए परेशानी उत्पन्न करें.


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वंदेमातरम्

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