साल को आना ही था क्योंकि विधि
का विधान भी यही है. इस तारीख को भी आना था क्योंकि यह भी निश्चित है. इस बार यह
तारीख कुछ ज्यादा ही दर्दनाक होकर आई. आपके जाने के दुःख के साथ मिंटू के न रहने की
असह्य पीड़ा ने कष्ट बहुत ज्यादा बढ़ा दिया. वर्ष 2005 में आपके जाने के तत्काल बाद ही परिवार हमारी
दुर्घटना के साथ ही अत्यंत विपत्ति जैसी स्थिति में आ गया था. आपके जाने के दुःख
के साथ एक और दर्द जुड़ गया था. आपके जाने के बाद एकदम से घर में खुद के बड़े होने
के एहसास हमारे प्रति दिखाई देने लगा. खुद में भी बड़े होने की जिम्मेवारी का भाव समेट
कर खुद को इसके लिए तैयार करने लगे कि आपके द्वारा छोड़े गए कामों को कुछ हद तक
पूरा कर सकें.
खुद को खुद के कष्ट से उभारते
हुए कोशिश यही बनी रही कि परिवार में आपके द्वारा बनाई स्थिति बराबर बनी रही.
इसमें कितना सफल रहे,
कितना नहीं ये तो आप ही बता सकते हैं. कोशिश बराबर बनी रही कि कोई भी हमारे किसी
कदम से, हमारे व्यवहार से निराश न हो. परिवार के सभी छोटे-बड़े
सदस्यों के साथ समन्वित रूप को बनाये रखते हुए, लगातार सबको साथ लेकर आगे बढ़ने का
प्रयास होता रहा. इस प्रयास में सभी लोग अपनी-अपनी स्थिति,
प्रस्थिति में समाहित होते रहे. समय-समय पर सब लोग एक-दूसरे के प्रति सहयोग, प्रेम, स्नेह की भावना के साथ परिवार की अवधारणा को
और पुष्ट करते रहे.
इस बीच लगने लगा था जैसे सबकुछ
सही से चल रहा है. सामान्य सी उथल-पुथल जो आमतौर पर सबके साथ होती रहती हैं, वे आ
रही थीं, सहज रूप में
उनका समाधान हो रहा था और ज़िन्दगी की गाड़ी अपनी ही सुखमय रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी.
इसी में मिंटू के अचानक चले जाने की घटना ने भीतर तक तोड़ कर रख दिया. विपत्ति की, परेशानियों की स्थिति में दिल-दिमाग में बहुत कुछ नकारात्मक बातें आती
हैं मगर ऐसी नकारात्मक स्थिति तो कभी सोची भी नहीं गई थी. संभवतः किसी ने भी ऐसी
घटना की कल्पना, आशंका भी नहीं की होगी. जनवरी में मकर
संक्रांति की शाम वह दिल तोड़ देने वाली खबर लेकर आई. उस खबर ने भीतर तक न केवल तोड़
डाला बल्कि बहुत अकेला सा कर दिया.
मिंटू की घटना के बाद से लगातार
आपको याद करते हुए विचार करते हैं कि ऐसी कौन सी परीक्षा ली जा रही है हमारी,
हमारे अलावा अम्मा की, पिंटू
की शेष परिजनों की यह समझ नहीं आ रहा है. शायद आपके न रहने पर आपकी अनुपस्थिति से
उपजी तमाम जिम्मेवारियों को हम उस रूप में नहीं निभा पाए जिस तरह से उनको निभाया
जाना था. आपके जाने के बाद परिवार की एक कड़ी के रूप में सबको जोड़े तो रहे मगर उस
रूप में नहीं जोड़ सके जिससे कि सभी एक-दूसरे की ताकत बने रहते.
आज आपकी पुण्यतिथि पर आपको सादर
चरण स्पर्श करते हुए अपने लिए आशीर्वाद की कामना है कि आगे परिवार ऐसी किसी आपत्ति
में, मुश्किल में न आये.
आगे कभी किसी परेशानी में, किसी दुःख में हमें अकेला न रहने
दे, कमजोर ने बनाये.
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