कहते हैं कि समय घावों को भर देता है. ऐसा सही होता
भी होगा किन्तु कई बार लगता है कि समय सभी घावों को भरने में सक्षम नहीं होता है.
बहुत सारे घाव ऐसे होते हैं जिनको समय कभी भी नहीं भर पाता बल्कि समय के साथ-साथ
इन घावों की टीस और बढ़ती रहती है. अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ऐसा महसूस किया
है कि कष्ट का, दुःख का, दर्द का, किसी घाव का किसी न किसी रूप में व्यक्ति
से सम्बन्ध होता है. उस सम्बन्ध के आधार पर ही उसकी टीस का निर्धारण होता है और
उसी के अनुसार उसके कम, ज्यादा होने की बात भी सिद्ध होती
है.
आज पूरा एक माह होने को आया जबकि अपने छोटे भाई का
अंतिम संस्कार किया. उसके निधन की खबर महज एक खबर नहीं थी, एक ऐसा ज़ख्म थी जिसे समय का कोई
हिस्सा कभी भर नहीं सकता है. कैसे समय इस ज़ख्म को मिटा सकेगा? कैसे समय के साथ इस घाव का भरना हो सकेगा? ये
प्रश्न रोज ही सामने खड़े होते हैं और रोज ही अनुत्तरित होकर अगले दिन के लिए सामने
आने को तैयार होने लगते हैं. समझ से परे है ये बात कि समय के साथ ये घाव भर
जायेगा. क्या कोई भी छोटा-बड़ा आयोजन घर में होगा तो उस छोटे भाई को याद न किया
जायेगा? क्या जब हम सभी भाई-बहिन एकसाथ कहीं मिलेंगे तो उस
छोटे भाई की कमी महसूस नहीं होगी? क्या उसकी बेटी जब कभी
उसके बारे में सवाल करेगी तो क्या इस कमी का दर्द महसूस नहीं होगा? बहुत सी स्थितियाँ हैं जो इस वाक्य को झुठलाती हैं कि समय घावों को भर
देता है.
हाँ, संभव है कि ऐसा होता हो, उनके साथ जिनका अपने
परिवार से कोई मतलब नहीं. संभव है कि ऐसे लोगों के दर्द समय के साथ भर जाते हैं जो
स्वार्थ में लिप्त रहते हैं. जिनके लिए परिवार की कोई अहमियत नहीं होती है, संभव है कि उनके लिए न कोई दुःख हो, न कोई घाव हो. इसके
उलट जिन परिवारों में आपसी सामंजस्य है, आपस ए स्नेह-विश्वास
है वहाँ छोटे से छोटा दुःख भी अत्यंत कष्टकारी होता है. इस समय हमारा पूरा परिवार
जिस असीम कष्ट को सहन कर रहा है, देखना है अब समय की ताकत कि
वह कब इस घाव को भर पाता है, कब इस दुःख को समाप्त कर पाता
है. वैसे समस्त परिजनों की स्थिति देखकर लगता नहीं कि समय के लिए ऐसा कर पाना आसान
होगा. समय क्या, हम परिजनों के लिए भी इस दुःख को भुला पाना
संभव नहीं.
आदरणीय/ प्रिय,
जवाब देंहटाएंकृपया निम्नलिखित लिंक का अवलोकन करने का कष्ट करें। मेरे आलेख में आपका संदर्भ भी शामिल है-
मेरी पुस्तक ‘‘औरत तीन तस्वीरें’’ में मेरे ब्लाॅगर साथी | डाॅ शरद सिंह
सादर,
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह