अक्सर ऐसा होता है कि कोई-कोई दिन बहुत ख़राब निकलता है. कई बार खुद का मन ही ऐसा होता है कि किसी काम में मन नहीं लगता है और कई बार ऐसा होता जाता है कि मन अपने आप ही ख़राब होता जाता है. इसी के साथ-साथ कई बार ऐसा भी होता है कि एक के बाद एक इस तरह से खबरें सामने आती जाती हैं कि पूरा दिन ख़राब समझ आता है. आज कुछ ऐसा ही हुआ.
सुबह-सुबह बाबा जी के निधन की खबर मिली. ये बाबा जी हमारे पिताजी के बड़े मामा जी थे. हमारे बाबा जी इस दुनिया को बहुत पहले ही छोड़कर चले गए थे और पन्द्रह वर्ष पहले हमारे पिताजी भी इस दुनिया को छोड़ अनंत यात्रा को चले गए थे. पिताजी के दो मामा थे. छोटे मामा जी यानि कि हमारे छोटे बाबा जी का बहुत साल पहले निधन हो गया था. बड़े बाबा जी से काफी समय तक संपर्क बना रहा किन्तु इधर कुछ वर्षों से उनसे बात नहीं हो सकी थी. बाबा जी से भले ही बात न हो पा रही हो मगर उनके बड़े बेटे, हमारे चाचा जी से संपर्क बना हुआ था. सभी के हाल-चाल मिल जाते थे, उनसे पारिवारिक कार्यक्रमों में मिलना-जुलना भी हो जाता था. इधर कुछ महीनों से इच्छा होती थी कि किसी दिन बाबा जी से फोन से बात की जाये. यह इच्छा बस इच्छा ही बनी रह गई और आज उनके निधन की खबर ने दुखी कर दिया. दुःख उनके जाने का तो हुआ ही, साथ ही दुःख इसका हुआ कि हम अपने जरा से आलस के चलते उनसे बात न कर सके.
बाबा जी के निधन की खबर अपने अन्य परिजनों को, चाचा लोगों को देने के लिए मोबाइल से संपर्क किया तो एक और बुरी खबर ने आकर घेर लिया. अम्मा से बाबा जी के सम्बन्ध में बात हुई तो जानकारी हुई कि गुड्डू चाचा का निधन हो गया है. इस खबर पर विश्वास ही नहीं हुआ. विश्वास इसलिए भी नहीं हुआ क्योंकि वे हमउम्र थे और ऐसी कोई आशंका भी नहीं थी. पहले लगा कि अम्मा के पास गलत खबर पहुँची होगी फिर मन न माना तो इस बुरी खबर की पुष्टि के लिए संपर्क साधा गया. बुरी खबरें शायद कभी गलत नहीं होतीं सो ये खबर भी गलत न निकली. गुड्डू चाचा हमारे पिताजी के मौसेरे भाई थे, उनकी असमय कल मृत्यु हो गई. उनसे इस रिश्ते के अलावा एक और अद्भुत रिश्ता बना हुआ था. उनके छोटे भाई हमारे साथ हॉस्टल में रहे थे. अध्ययन की स्थिति में हमसे एक वर्ष पीछे होने के कारण, हॉस्टल के रिश्ते के कारण एक दूसरा रिश्ता हम लोगों के बीच बना हुआ था. यह रिश्ता किसी भी रक्त-सम्बन्धी रिश्ते से बढ़कर उस समय भी था, आज भी है और कल भी रहेगा.
इन दो खबरों से गुजरते हुए दिन भर अजीब सी भागदौड़ रही. मन खिन्न रहा, उदास भी रहा. होनी-अनहोनी की अवधारणा को मानते हुए इन खबरों को भी स्वीकारना पड़ा. सबकुछ समय के हाथ होता है यही सोच कर मन को समझाया और इस कामना के साथ कि अब दिन किसी बुरी खबर की सूचना न दे, दिन के गुजरने का इंतजार करने लगे. दिल में यही शब्द गूँजते रहे कि होनी तो हो के रहे, अनहोनी न होए.
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