इंसान कितनी भी कोशिश कर ले वह अपने अतीत से मुक्त नहीं हो पाता है. अतीत की घटनाएँ यदि सुखद हैं तो वह उन्हें याद कर-कर के खुश होता रहता है और यदि घटनाएँ दुखी करने वाली होती हैं तो वह व्यथित हो जाता है. मन बहुत बार बिना किसी प्रयास के अतीत की सैर कर आता है और कई बार किसी विशेष घटना से जुड़ी कोई अन्य घटना होने पर, अतीत की घटना से जुड़ी किसी वस्तु के सामने आ जाने से भी इंसान अचानक से अतीत की यात्रा करने लगता है. पुराने दिनों की घटनाओं को पूरी तरह से भुला देना किसी के हाथ में नहीं है, ये और बात है कि समय के साथ अन्य कामों की व्यस्तता के चलते घटनाएँ हमेशा याद न रह पातीं हों. ऐसे में किसी न किसी सन्दर्भ के सामने आते ही यादों की लहरों में गोते लग जाना सामान्य स्थिति है.
आजकल ऐसे ही गोते लगाये जा रहे हैं. बहुत दिनों से अपनी स्टडी टेबल, अलमारी, कमरा आदि व्यवस्थित करने का विचार बन रहा था. इस विचार को किसी-किसी दिन कार्यान्वित कर लिया जाता है. ऐसे में सितम्बर 2014 में दिल्ली में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में सम्मिलित होने का अवसर मिला था. हमारे मित्र डॉ० पवन विजय के द्वारा आमंत्रण मिला और हम पहुँच गए थे दिल्ली. वे दिन संभवतः उतने सुखद नहीं थे जितना कि अंदाज लगाया था. जल्दी पहुँचने के चक्कर में रात को ट्रेन पकड़ी, वो भी राजधानी लेकिन समय से पहुँचना ही नहीं था सो रात को किसी तकनीकी समस्या के चलते कई घंटे ट्रैक पर ही ट्रेन के खड़े रहने के कारण दोपहर बाद दिल्ली पहुँचना हो पाया था. सुबह पहुँचाने वाली ट्रेन ने दोपहर बाद दिल्ली स्टेशन पर उतारा तो पवन जी द्वारा हमारी सहायता के लिए भेजे गए एक सहायक की उपस्थिति ने व्यवस्थाओं के प्रति आश्वस्त किया. इसी आश्वस्ति के साथ एक बुरी खबर मिली कि पवन जी सपरिवार दुर्घटनाग्रस्त हो गए हैं, घायल होकर घर में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं. बिटिया रानी ज्यादा चोटिल हो गई थी फिर भी सुखद यही था कि सभी लोग सुरक्षित थे.
स्टेशन से सीधे कांफ्रेंस हॉल ले जाया गया. वहाँ पहुँचते ही डॉ० चित्रा मैडम का स्नेहिल आदेश मिला कि अगले एक घंटे में पेपर पढ़ना है. जल्दी-जल्दी वहीं वाशरूम में चेहरा चमकाया, कुर्ता बदला और पहुँच गए पेपर पढ़ने. अपने आपमें गौरवान्वित इसलिए महसूस हो रहा था कि महज पंद्रह-सोलह लोगों को दो दिनों में पेपर पढ़ना था. पढ़ने के लिए भरपूर समय था और हॉल के भीतर पर्याप्त संख्या में उपस्थिति भी थी. स्त्री-विमर्श पर केन्द्रित पेपर को खूब सराहा गया, कुछ सवाल-जवाब भी हुए, कुल मिलाकर कांफ्रेंस का भरपूर आनंद लिया गया.
पवन
जी के कारण ही यह मौका मिला था और उनके तथा किरण भाभी की अनुपस्थिति से इस आनंद
में कमी महसूस हुई. दूसरे दिन शाम को उनके घर जाकर मिलना भी हुआ. पूरे परिवार के
स्वास्थ्य और कुशलता की कामना के साथ वापसी हुई. कांफ्रेंस की Abstract Book में मात्र पंद्रह लोगों के बीच खुद की उपस्थिति आज भी
गौरवान्वित करती है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें