तुम हम सबको हमेशा के लिए उसी शाम छोड़कर चले गए गए थे. उस शाम से लेकर तुम्हारी पार्थिव देह के पंचतत्त्व में विलीन हो जाने तक एक आस सी जगती कि यह खबर गलत हो जाये और तुम हमेशा की तरह अपनी शैतानियों के साथ, अपने खिलंदड़ स्वभाव के साथ हम सबके बीच आ जाओ. उस झूठी आस के साथ लगातार तमाम सारे संस्कार चलते रहे. तुम्हारी यादों के साथ आँखों में छलकते आँसुओं को पीते हुए अंतिम संस्कार से जुड़े तमाम सारे क्रिया-कलापों को संपन्न किया जाता रहा. तुमसे जुड़ी एक तरह की व्यस्तता सभी के साथ बनी रही. इसी बहाने तुम्हारा एहसास लगातार आसपास बनता-दिखता रहा.
आज त्रयोदशी संस्कार से जुड़े पूजन-हवन, शांति पाठ के दौरान भी सभी परिजनों की आँखें छलकतीं रहीं और तुम्हारी आत्मिक शांति के लिए पावन कृत्य संपन्न किये जाते रहे. हवन, शांति पाठ का समापन एकदम सामान्य, सादे तरह से संपन्न किया गया. ऐसी कोई उम्र नहीं थी तुम्हारी कि त्रयोदशी संस्कार के नाम पर कोई आयोजन किया जाता. इस समापन के बाद एकदम से अपने आसपास खालीपन सा महसूस होने लगा. अचानक से लगने लगा जैसे पिछले बारह-तेरह दिनों से चले आ रहे धार्मिक कृत्य, संस्कार के बाद तुम वाकई हम सभी से बहुत दूर चले गए हो, हमेशा के लिए दूर चले गए हो.
यह एहसास हमें भी है कि तुम्हारे दूर चले जाने का दुखद एहसास अब कभी भी दिल से दूर नहीं हो सकेगा. हमें यह भी मालूम है कि तुम प्रत्यक्ष में भले ही बहुत दूर चले गए हो मगर कभी हमारे दिल से दूर नहीं हो सकोगे. यह भी हमें जानकारी है कि तुम कभी हमें दिखाई नहीं पड़ोगे मगर तुम्हारी अनुभूति अब सदैव हमें अपने आसपास महसूस होती रहेगी.
तुम्हारा असमय जाना अत्यंत कष्टकारी है. हमें अपने शरीर के साथ लिए फिरते एक कष्ट के साथ-साथ अब अपने दिल पर इस कष्ट को लेकर भी आजीवन चलना है. अपने दिल पर, मन पर एक कष्ट लेकर हम सदा चलते रहेंगे मगर तुमको अपने दिल से, यादों से, अपने आसपास से, अपने अस्तित्व से, परिवार से सदैव जोड़े रखेंगे, अपने से बाँधे रखेंगे. हमें अपने बड़े होने का यह दायित्व आजीवन निर्वहन करना ही है.
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