20 जनवरी 2021

ज़िन्दगी का सफर

ज़िन्दगी कब एकदम से रुख मोड़ दे, कहा नहीं जा सकता है। हँसती-खिलखिलाती हुई बगिया में कब आँसुओं की बरसात होने लगे, समझ नहीं आता है। खुशियों के बीच एकदम से दुखों का पहाड़ टूट पड़ना किस नियति के कारण है, आज भी समझ न आया। सबकुछ सही चलते-चलते सबकुछ गलत हो जाना प्रकृति का उचित कदम नहीं। 

अभी दिल, दिमाग सवाल-जवाब की हालत में ही नहीं है। मन को समझाने से ज्यादा भरमाने का काम किया जा रहा है। समझाने पर आँखें बरसती हैं और भरमाने पर खुद ही भ्रम की स्थिति में रहकर चलते रहा जाता है।


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वंदेमातरम्

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