01 जनवरी 2021

कुछ सीखने-सिखाने का प्रयास नहीं होता नववर्ष के पहले दिन

नया वर्ष 2021, नये साल का पहला दिन। सभी लोग उत्साह, उमंग से भरे दिख रहे हैं। सभी के चेहरे किसी उम्मीद के साथ नये साल का स्वागत करने को तत्पर हैं। अभी-अभी गया हुआ वर्ष 2020 अप्रत्याशित सा निकला, इस कारण लोगों में अनजान भय के बीच एक सुखद संदेश की आस है। इस आस के उत्साह को देखकर लगा कि समय के साथ न केवल समय बदलता है बल्कि लोगों के विचार, मानक, कार्यशैली भी बदल जाती है। ऐसा होना स्वाभाविक है पर कुछ बातें ऐसी हैं जो समय के साथ आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहें तो बेहतर होता है।



विगत कई वर्षों से देखने में आ रहा है कि नववर्ष के पहले दिन को पार्टी, पिकनिक के रूप में लिया जाने लगा है। आधी रात से शुरू होने वाला ये सिलसिला कई-कई दिनों तक चलता रहता है। हमें आज भी बहुत अच्छे से याद है कि हमारे बचपन में पहली तारीख को स्कूल बंद नहीं होते थे। हम बच्चे नियमित दिनचर्या की तरह स्कूल जाते थे। यह सब इसलिए भी याद है क्योंकि उस दिन हमारे अध्यापक, अध्यापिका बार-बार इस बात पर बल देते कि नये साल के पहले दिन किया जाने वाला कार्य बिना किसी परेशानी के साल भर सफल रहता है। उस दिन स्कूल में हम सबको पढ़ना, लिखना तो होता ही था, भोजन अवकाश के बाद के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी अनिवार्य रूप से भाग लेना होता था। 

इसके पीछे उद्देश्य यही था कि साल भर करते रहने के लालच में हम बच्चे न केवल पढ़ने-लिखने की ओर बढ़ें बल्कि खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा लें, रुचि दिखाएँ। अब इधर काफी समय से ऐसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा। अब पहली तारीख को छुट्टी होती है और पार्टी के नाम पर सैर-सपाटा। इधर न तो शैक्षणिक संस्थानों द्वारा प्रतिभा विकास पर बल दिया जा रहा है और न ही अभिभावकों द्वारा इस पर ध्यान दिया जा रहा है। आज नया साल सिर्फ मौज-मस्ती करने का माध्यम भर रह गया है, इसके आयोजन द्वारा किसी तरह की सीख देने का प्रयास नहीं किया जा रहा है। 


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वंदेमातरम्

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