आर्थिक वर्ष (फाइनेंशियल इयर)
2020-21 और मूल्यांकन वर्ष (असेसमेंट इयर) 2021-22 के लिए आयकर के स्लैब में कुछ नवीन परिवर्तन किये गए हैं. इनके
चलते वर्तमान में आयकर की व्यवस्था के दो प्रारूप करदाताओं के सामने हैं. यह
करदाता के अधिकार में है कि वह अपनी रुचि किस प्रारूप की तरफ दिखाता है. कर की
पुरानी व्यवस्था भी वर्तमान में बनायी रखी गई है.
करदाताओं के लिए नई
और पुरानी कर व्यवस्था को इस सारणी के द्वारा समझा जा सकता है.
वार्षिक आय (रु०) |
नई कर व्यवस्था |
वार्षिक आय (रु०) |
पुरानी कर व्यवस्था |
2.50 लाख तक |
छूट |
2.50 लाख तक |
छूट |
2.50 लाख – 5 लाख |
5%* |
2.50 लाख – 5
लाख |
5%* |
5 लाख – 7.50
लाख |
10% |
5 लाख – 10
लाख |
20% |
7.50 लाख – 10
लाख |
15% |
10 लाख से ज्यादा |
30% |
10 लाख – 12.50
लाख |
20% |
|
|
12.50 लाख –15 लाख |
25% |
|
|
15 लाख से ज़्यादा |
30% |
|
*इनकम टैक्स एक्ट,
1961 के सेक्शन 87ए के अनुसार रु. 5 लाख तक के करयोग्य आय (टैक्सेबल इनकम) वाले व्यक्तियों को रु. 12500
या इनकम टैक्स की 100% राशि, जो भी कम हो, छूट का लाभ प्राप्त हो सकेगा.
यहाँ नई कर व्यवस्था में प्रावधान किया गया है कि जो व्यक्ति नए आयकर स्लैब अर्थात इनकम टैक्स स्लैब 2020 का विकल्प चुनेंगे वे बहुत सी कटौतियों और छूटों का लाभ नहीं ले पाएंगे. नई कर व्यवस्था को अपनाने वाले करदाताओं को सेक्शन 80 सी कटौती, सेक्शन 80 डी, चैप्टर VI-ए के अंतर्गत कोई भी कटौती, स्टैन्डर्ड डिडक्शन, लीव टैक्स अलाउंस (एलटीए)/अवकाश यात्रा भत्ता, हाउस रेंट अलाउंस (एचआरए)/घर किराया भत्ता, सेक्शन 24 के अंतर्गत होम लोन पर ब्याज, प्रोफेशनल टैक्स (पेशेवर कर) आदि छूटों का लाभ नहीं मिलेगा.
यहाँ
सामान्य और सरल शब्दों में इसे ऐसे समझा जाए कि नई कर व्यवस्था स्वीकारने वाले
किसी भी नागरिक की जितनी भी आय हो रही है, वह पूरी की पूरी आयकर योग्य आय मानी
जाएगी. इसके उलट पुरानी व्यवस्था में उक्त कटौतियों को लागू किये जाने के बाद
निकली धनराशि को करयोग्य आय माना जाता है.
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