06 दिसंबर 2020

आन्दोलन की आड़ में हिन्दू विरोधी स्वरों का उठना

दिल्ली में चल रहे तथाकथित किसान आन्दोलन में अपने आपको सिख कहने वाले योगराज द्वारा विवादित बयान दिया गया. उस व्यक्ति ने अपने बयान में इतिहास की तरफ जाकर बताया कि सिखों ने हिन्दू महिलाओं को मुगलों के सामने टके-टके पर बिकने से बचाया. यहाँ खुद को सिख बताने वाले योगराज को भारतीय इतिहास की जानकारी नहीं है. एक बार वह खुद ही सिखों की उत्पत्ति और मुगलों के समय को देख-परख ले तो शायद उसकी बुद्धि खुल जाए. इधर कुछ जगह से जानकारी हुई है कि अगला व्यक्ति खालिस्तान आन्दोलन का समर्थक है और उसकी साजिश है कि दिल्ली में चल रहे तथाकथित किसान आन्दोलन के भीतर से खालिस्तान समर्थन में, हिन्दुओं के विरोध में स्वर उठने लगें. योगराज के अनर्गल बयान के बाद जिस तरह से सिख विरोधी पोस्ट सामने आ रहीं हैं, वे उस व्यक्ति की साजिश को सफल करने को दर्शाती हैं. ये कहना अपने आपमें सही हो सकता है कि सिखों का उदय हिन्दुओं से ही हुआ है. यह भी सत्य है कि हिन्दू-सिख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.

 



इस सत्य के पीछे से एक अजीब सी आहट सुनाई दे रही है, उसे समझने की आवश्यकता है. सिक्कों के दो पहलुओं को अलग-अलग किये जाने की साजिश रची जाने लगी है. किसान आन्दोलन के भीतर से जिस तरह से खालिस्तानी आन्दोलन के स्वर उभरने लगे हैं, जिस तरह से हिन्दू विरोधी बयान दिए जाने लगे हैं, जिस तरह से हिन्दू धर्म विरोधी ताकतें अपने मंसूबे सफल बनाने के लिए जुटने लगी हैं, जिस तरह से सिखों के भेष में मुसलमान पकड़े गए हैं उससे बहुत बड़ी साजिश की बू आ रही है. यहाँ सिखों को भी इस साजिश को समझने की आवश्यकता है. हर बार की तरह हिन्दुओं को ही संयत रहने, शांत रहने, समझदारी दिखाने की सीख दी जाने लगी है. सिखों को अपने अतीत से सीखने की जरूरत है. उनके दामन पर आतंकवाद जैसी कालिख लगी हुई है. ये और बात है कि सम्पूर्ण देश ने, समस्त हिन्दुओं ने उनके काले अतीत को विस्मृत करते हुए उनको अपने ह्रदय में बसाए रखा है.

 

सिखों को इस कदम का सम्मान करना चाहिए. योगराज जैसों के हिन्दू विरोधी बयानों का विरोध किया जाना चाहिए. किसान आन्दोलन की आड़ में हिन्दू विरोधी एजेंडा सेट करने की कोशिश का विरोध सिखों को भी करना चाहिए. किसान आन्दोलन के भीतर से उठ रहे खालिस्तान समर्थन के स्वरों को भी उन्हीं सिखों को दबाया जाना चाहिए जो हिन्दू-सिख एकता की बात करने में लगे हैं. आपसी फूट से कभी किसी का लाभ नहीं हुआ है मगर सोचने वाली बात है कि किसी भी विवादित स्थिति में, किसी भी विभेद की स्थिति में, किसी भी अनपेक्षित स्थिति के सामने आने के बाद सिर्फ हिन्दुओं से ही धैर्य, संयम, शांति रखने की अपेक्षा क्यों की जाती है? क्या हिन्दू सिर्फ गाली खाने के लिए ही पैदा हुए हैं, जिसे कभी मुस्लिम संगठन गाली देने लगते हैं, और अब हिन्दुओं के पर्याय कहे जाने वाले सिख भी गाली देने पर उतर आये हैं?


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वंदेमातरम्

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