12 दिसंबर 2020

मौत को दोस्त बनाइये और ज़िन्दगी का मजा लीजिए

ज़िन्दगी का वाकई कोई भरोसा नहीं या मौत का कोई भरोसा नहीं? ये एक अनुत्तरित सवाल हो सकता है. अपने आपसे फिर से यही प्रश्न करके देखिए, फिर समझिये कि अंतिम सच क्या है. ज़िन्दगी तो जन्म के साथ मिल गई और उसी के साथ मौत ने भी अपना जोड़ बैठा लिया. किसी भी व्यक्ति को अगले कदम पर ज़िन्दगी के बारे में अनिश्चय है मगर मौत नितांत सत्य है. ज़िन्दगी और मौत के बीच इतनी ही बारीक रेखा है और इसी को समझने की आवश्यकता है. हम सभी इसी बारीक रेखा को तोड़ कर मौत को जीतने की कोशिश करते रहते हैं मगर सत्य यह है कि मौत जीतने वाली स्थिति नहीं वरन दोस्त बनाने वाली स्थिति है. जैसे ही ज़िन्दगी के साथ-साथ मौत से हम याराना बनाना शुरू कर देते हैं, उसको अपना यार समझने लगते हैं हमारी मुश्किल दूर हो जाती है.




हो सकता है कि ये सब अभी फिलोसफी लग रहा हो? संभव है कि अभी इसमें गूढ़ दर्शनशास्त्र समझ आ रहा हो. इसके बाद भी जब ख़ामोशी से ज़िन्दगी और मौत के बारे में विचार करने बैठा जाये तो ज़िन्दगी की तरह ही हमारे साथ चलती हुई मौत दिखाई देने लगती है. बस, यहीं सबकुछ समझने वाली बात है. जो हमारे साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है, जो हमारे साथ पहली साँस से जुड़ा हुआ है तो वह अजनबी कैसे? जब अजनबी नहीं तो उसे दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त बनाइये. उसके साथ ज़िन्दगी का एक-एक पल गुजारिये. ज़िन्दगी के एक-एक पल की मस्ती का साझेदार मौत को भी बनाइये. ऐसा करते ही दिल-दिमाग से मौत का डर ख़त्म हो जायेगा. जिस दिन ऐसा हो गया, उसी दिन व्यक्ति ज़िन्दगी का असल आनंद लेना सीख जायेगा. ज़िन्दगी को असलियत में जीना सीख जायेगा.



.
वंदेमातरम्

3 टिप्‍पणियां:

  1. इस बेहद ख़ास पोस्ट के लिए बधाई आपको 🙏🌹🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. बिलकुल सही है। मौत तो पहले साँस के साथ हमारे साथ चलती है। कोई साथ दे न दे वह अंतिम क्षण तक वह साथ है। इसलिए न मौत से डरना है न उससे बचना है। जीवन के साथ भी जीवन के बाद भी।

    जवाब देंहटाएं