07 अक्तूबर 2020

दादा से मिलकर चमक उठीं धुँधली यादें

घर-परिवार के, समाज के वरिष्ठजन अपने आपमें बेशकीमती खजाना होते हैं. उनके अनुभवों से एक तरफ सीख मिलती है तो दूसरी तरफ उनके समय की स्थितियों, परिस्थितियों, आचार-विचार, लोगों के बारे में जानकारी मिलती है. यह हमारा सौभाग्य रहा है कि बचपन से संयुक्त परिवार में रहने के कारण परिवार के वरिष्ठजनों का आशीर्वाद मिलता रहा है. सामाजिक प्रस्थिति में भी कुछ ऐसा संयोग रहा कि वरिष्ठजनों का साथ, आशीर्वाद सदैव प्राप्त होता रहा. घर-परिवार से हमेशा बड़ों का सम्मान करना सिखाया जाता रहा साथ ही पारिवारिक संबंधों को बनाने और उनके निर्वहन करने की सीख भी मिलती रही. बहुत से परिवार ऐसे हैं जिनके साथ दशकों पुराने सम्बन्ध हैं. पिताजी के समय से बनाये गए आत्मीय सम्बन्ध आज भी बने हुए हैं.


पिताजी के समय की मित्र-मंडली में आज भी बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो अपने पुत्रवत स्नेह देते हैं, आशीर्वाद देते हैं, समय-समय पर कुशल-क्षेम पूछते रहते हैं. अधिवक्ता होने के साथ-साथ राजनीति में भी पिताजी का सशक्त हस्तक्षेप बना हुआ था. न केवल जनपद, प्रदेश के बल्कि राष्ट्रीय स्तर के अनेक राजनेताओं के साथ उनके व्यक्तिगत सम्बन्ध बने हुए थे. जनपद में पिताजी के सहयोगीजनों में बहुत से लोग पिताजी की भांति ही अनंत यात्रा को प्रस्थान कर चुके हैं और अभी भी कई लोग ऐसे हैं जो पारिवारिक सदस्य की तरह हम पर अपना स्नेह, आशीर्वाद बनाये हुए हैं. इस तरह का अपनत्व बनाये रखने वाले एक-दो व्यक्ति नहीं वरन परिवार हैं, जहाँ कि पुरानी पीढ़ी से लेकर नई पीढ़ी के सभी सदस्य आपस में एक-दूसरे से पारिवारिक सदस्य की तरह जुड़े हुए हैं. ऐसा ही एक परिवार है दादा का.


दादा के साथ हम 

जी हाँ, वे जगत दादा हैं. पेशे से अधिवक्ता श्री हरदास सिंह निरंजन न केवल अपनी मित्र-मंडली में दादा के नाम से जाने जाते हैं बल्कि जहाँ तक उनकी राजनैतिक गरिमा है वहाँ तक भी वे दादा के नाम से ही अपनी पहचान बनाए हुए हैं. आज नितांत पारिवारिक मेल-मिलाप के चलते दादा से मिलने घर जाना हुआ. दादा से मुलाकात की विशेष बात यह रहती है कि वे उम्र के अनुसार खुद को ढाल लेते हैं. हमें बहुत अच्छी तरह से याद है कि उम्र में पिताजी से लगभग दस वर्ष बड़े होने के बाद भी दादा हम बच्चों के साथ एकदम बच्चे बनकर घुल-मिल जाया करते थे. पिताजी से बात करने में हम लोग जितना डरते थे, दादा से उतने ही सहज रहा करते थे. आज दादा से होती बातचीत अनेक बिन्दुओं से गुजरती हुई राजनीति पर भी पहुँच गई.


दादा से उनके आवास पर मुलाकात कर सम्मान करते अखिलेश कटियार (राष्ट्रीय सचिव समाजवादी पार्टी)



बाँए से - हरदास सिंह निरंजन 'दादा', अखिलेश कटियार, ज्ञानेन्द्र निरंजन 'ज्ञानू' (दादा के पुत्र)

यद्यपि दादा वर्तमान समय में राजनीति से बहुत दूरी बनाए हुए हैं तथापि वरिष्ठ समाजवादी या कहें कि खांटी समाजवादी होने के कारण उनके दल के पदाधिकारी उनसे मुलाकात करने आवास पर आते ही रहते हैं. अभी हाल ही में आये ऐसे अवसर की चर्चा हमने की, बात की बात में दादा ने अपने समय की बहुत सारी राजनैतिक गतिविधियों की, अपनी और पिताजी सहित अन्य मित्रों की अनेकानेक गतिविधियों की, सक्रियता की बातें हमारे साथ बाँटीं. न केवल अपने दल से जुड़े लोगों बल्कि अन्य राजनैतिक दलों के साथ पारिवारिक संबंधों की गंभीरता, गहराई को भी समझाया. अपने घर पर बचपन से राजनैतिक गतिविधियों को होते देखा है, बहुत से लोगों को आते देखा है उन बातों में से कुछ की धुँधली तो कुछ की स्पष्ट छाप अभी तक मन में है. 


आज भी पिताजी की पुरानी फाइल्स देखते हैं, पुराने पत्रों को देखते हैं, राजनीति से सम्बंधित कागजातों को देखते हैं तो उनके संबंधों की कहानी स्वतः बाहर आ जाती है. आज वे सब यादें दादा के साथ बातें करके पुनः ताजा हो गईं. जो यादें धुँधली सी थीं, वे भी स्पष्ट चमकने लगी हैं.


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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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