लाल
किला नहीं लाल कोट था जिसे शाहजहां ने नहीं राजपूत राजा अनंगपाल तोमर द्वितीय ने बनवाया
था। वास्तव में 736 ई0 में दिल्ली में तोमर
राजवंश की स्थापना अनंगपाल सिंह तोमर प्रथम नाम के राजा द्वारा की गई थी। पांडवो के
वंशज चंद्रवंशी क्षत्रिय इसी तोमर वंश में आगे चलकर 1051 ईस्वी
से 1081ई0 तक अनंगपाल सिंह तोमर द्वितीय
नाम के प्रतापी शासक ने शासन किया। इसी शासक ने अपने शासनकाल में 1060 ईस्वी के लगभग लाल कोट नाम का किला बनवाया।
तारीखे फिरोजशाही के पृष्ठ संख्या 160 (ग्रन्थ 3) में लेखक लिखता है कि सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल
( लाल प्रासाद/ महल ) की ओर बढ़ा और वहाँ उसने आराम किया।
अकबरनामा और अग्निपुराण दोनों ही जगह इस बात
का वर्णन है कि महाराज अनंगपाल ने ही एक भव्य और गौरवशाली दिल्ली का निर्माण करवाया
था।
दिल्ली
के लालकिले को देखते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि वहाँ पर एक विशेष महल में सुअर
अर्थात वराह के मुंह वाले चार नल अभी भी लगे हुए हैं। इससे भी पता चलता है कि यह किसी
हिंदू शासक द्वारा बनवाया गया ही लगता है क्योंकि सुअर को कोई भी मुस्लिम शासक अपने
यहाँ पर इस प्रकार सम्मानपूर्ण स्थान नहीं देता।
शाहजहाँ से 250 वर्ष पहले ही 1398 ईस्वी में एक विदेशी तुर्क आक्रमणकारी जेहादी तैमूरलंग ने भी पुरानी दिल्ली का उल्लेख किया है। उसने अपने विवरण में जामा मस्जिद को काली मस्जिद के नाम से पुकारा है जबकि आज के इतिहासकार इस जामा मस्जिद को भी शाहजहां द्वारा निर्मित बताते हैं। वास्तव में इसे काली मस्जिद कहे जाने का अर्थ यह था कि यहां पर हिन्दू देवी (काली) का मंदिर था। तैमूरलंग के विवरण से पता चलता है कि पुरानी दिल्ली को भी शाहजहां के द्वारा बसाया जाना कपोल कल्पना मात्र है। यद्यपि शाहजहां ने अपने शासनकाल में दिल्ली को शाहजहानाबाद का नाम देकर पुरानी दिल्ली को कब्जाने का प्रयास अवश्य किया था।
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