इधर
बहुत लम्बे समय से विचार बन रहा था कि अपने ब्लॉग पर राजनीतिक, सामाजिक विवादों
वाली पोस्ट नहीं लिखेंगे. इस ब्लॉग पर अब अपने जीवन की घटनाओं को, संस्मरणों को
लिखेंगे. सामाजिक, राजनैतिक विषयों से सम्बंधित विवादित पोस्टों को लिखने का, उन
पर विमर्श करने का कोई अर्थ समझ नहीं आ रहा है. इधर लोग अपने बनाये खाँचों में
रहने के आदी होते जा रहे हैं. वे जो कह-कर रहे हैं, वही सही है, शेष गलत है. इस
मानसिकता के चलते आपसी विद्वेष बढ़ने के और कुछ नहीं हो रहा है. दो-तीन दिन से अपने
संस्मरण लिखने का विचार कर रहे थे मगर कुछ समझ नहीं आ रहा था. आज अचानक अपनी ही एक
पुरानी पोस्ट नजर आ गई. उसी को फिर से आप सबके बीच कुछ संशोधनों के साथ लगा रहे
हैं.
चाँदी की चम्मच मुँह में लेकर पैदा होना बचपन
में इस वाक्य को जब भी पढ़ते, सुनते थे तो सोचा करते थे कि एक बच्चा कैसे इतनी बड़ी चम्मच
लेकर पैदा होता होगा? हालांकि उस समय तो बच्चों के पैदा होने
की प्रक्रिया ही हम लोगों की समझ से परे थी, कोई आज के बच्चे
तो थे नहीं कि सब कुछ टी0वी0 पर,
इंटरनेट पर दिखता हो। धीरे-धीरे अक्ल आई और उक्त वाक्य का सही अर्थ समझा।
उस छुटपन में भी पिताजी के साथ, कभी अपने बाबाजी के साथ साइकिल
पर बैठ कर स्कूल जाते हुए शहर में शान बघारतीं एक दो मोटरगाड़ियों को देखकर,
कुछेक स्कूटरों को फरफराते देखकर लालच सा आता।
उन्हीं
दिनों एक बड़ी ही रोचक घटना हुई जिसको लेकर आज तक परिवार में सभी हँसी-मजाक कर लेते
हैं। हमारे मकान मालिक बहुत बुजुर्ग थे और उनके कोई सन्तान भी नहीं थी। सम्पन्नता के
साथ-साथ उनको कंजूसी भी काफी सम्पन्नता में प्राप्त हुई थी। उनके पास उस समय एम्बेसडर
कार थी, पूरे मुहल्ले में इकलौती कार। वह कार हम बच्चों के लिए
बड़ी ही कौतूहल की वस्तु थी। अपने दोस्तों के साथ स्कूल में इसी बात पर रोब झाड़ लिया
करते थे कि हमारे वकील बाबा के पास कार है। (उन मकान मालिक को जो कि एडवोकेट थे,
बुजुर्ग होने के कारण हम बच्चे बाबा कहते थे) पता नहीं अपनी वृद्धावस्था
के कारण, कंजूसी के कारण या फिर किसी पर भी विश्वास न करने के
कारण जब उनको लगने लगा कि अब कार चलाना उनकी अवस्था के अनुरूप नहीं रहा तो उन्होंने
उस कार को बेच दिया। बाबा अपनी कार स्वयं ही चलाते थे कभी कोई ड्राइवर नहीं रखा। कार
बेच कर एक साइकिल खरीद ली।
इस घटना की घर में, मुहल्ले में बड़ी ही चर्चा हुई कि चचा को कंजूसी बहुत चढ़ी है, वृद्ध हो रहे हैं ऐसे में साइकिल चलायेंगे। अरे! एक ड्राइवर ही रख लेते, पैसे की कौन सी कमी है आदि-आदि बातें हम बच्चों के कानों में पड़ती ही रहतीं। हम छोटी बुद्धि के बालक कुछ समझ में तो आता नहीं था कि आखिर ये चक्कर क्या है? समझ कुछ आता नहीं बस ये ख़राब लगता कि अब कार में घूमने को नहीं मिलेगा।
धन,
सपत्ति, पद, प्रतिष्ठा से इतर एक दिन हमने अपनी अम्मा से कहा जैसे वकील बाबा
ने अपनी कार बेचकर साइकिल खरीद ली है क्या वैसे पिताजी अपनी साइकिल बेचकर कार नहीं
खरीद सकते? अम्मा हँस दीं और प्यार से
सिर पर हाथ फेरकर बोलीं अब तुम ही कार खरीदना और हम दोनों को घुमाना।
हम
तो भौचक्के से रह गये थे कि जो सवाल हमने पूछा अम्मा ने उसका उत्तर तो दिया नहीं हमारे
सिर पर एक काम और बता दिया। अम्मा की बात हमारे दिमाग में घूमती रही, आज भी घूमती है। पिताजी तो हमें छोड़कर चले गए, उनको कार से घुमाने का सपना
हमारे लिए एक सपना ही रह गया। हालाँकि हम आज भी कार न ले सके। ऐसी स्थिति जो हमने
बचपन में देखी थी और आज समाज में देखते हैं तो बचपन में सुने-पढ़े उस वाक्य का अर्थ
समझ आता है। आज कुछ लोगों को देखने पर पता चलता है कि चाँदी की चम्मच मुँह में लेकर
पैदा होना किसे कहा जाता है। एक तरफ युवा वर्ग है जो अपनी बेकारी से, घर-परिवार के भरण-पोषण की समस्या से जूझ रहा है और एक तरफ वो युवा वर्ग है
जो अपने मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर घूम रहा है, अपने बाप-दादा की, अपनी
पुश्तैनी संपत्ति पर सिर्फ ऐश कर रहा है। एक तरफ ऐसे युवा हैं जो अपनी स्थिति को सुदृढ़
करने के लिए किसी का वरदहस्त चाहते हैं और दूसरी ओर ऐसा युवा वर्ग है जिसकी चाटुकारिता
में बड़े-बड़े अपने को धन्य समझ रहा है। देश के सर्वोच्च पद के लिए एक युवा का नाम उसकी
काबिलियत के कारण नहीं मुँह में दबी चाँदी की चम्मच के कारण ही तो आ रहा है।
ऐसे में खुद से ही एक सवाल करते हैं और खामोश रह जाते हैं कि क्या देश का हर बच्चा चाँदी की चम्मच मुँह में दबाकर पैदा नहीं हो सकता है?
बेहतरीन पोस्ट... हकीकत बयाँ करती हुई
जवाब देंहटाएंकितना सही सवाल! अगर देश का हर बच्चा चाँदी की चम्मच के साथ पैदा होने लगे तो भारत सोने की चिड़िया का देश हो जाए। यूँ यह असंभव नहीं; हम सभी चाहे आम आदमी हो या राजनेता प्रण करें तो। बहुत सराहनीय पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसही विषय उठाया और उमर्दा विश्लेषण
जवाब देंहटाएं