फिल्मों के सीक्वेल बनने के दौर में बर्थडे का सीक्वेल बनाया जाना वर्ल्ड रिकॉर्ड हो सकता है. इसके लिए सारिका को और धर्मेन्द्र को ही श्रेय दिया जाना चाहिए. आपको आश्चर्य लग रहा होगा न? लगना भी चाहिए आखिर अवसर भी ऐसा है. अमिता दीदी के स्नेहिल सान्निध्य में सारिका की बर्थडे के अवसर पर धर्मेन्द्र द्वारा सप्रेम प्रदान किया गया गिफ्ट सभी के लिए सरप्राइज बना हुआ था. इस सरप्राइज को दूर करने के लिए ही बर्थडे का सीक्वेल बनाया गया.
अब आज की सबसे अधिक पसंद की गई कहानियों में तीन रुपए की उधारी के कारण सम्बन्ध का आगे न बढ़ पाने की कुछ चर्चा. हम सबके बीच के, सबके चहेते भाईसाहब की युवावस्था के दिन थे. उरई के प्रसिद्द व्यंजन का स्वाद उनको किशोरावस्था में लग गया था. यह व्यंजन ऐसा है जिसका आनंद बहुतायत नागरिक उठा रहे हैं और बहुत से ऐसे हैं जो दीवारों, सड़कों, कपड़ों आदि को लाल भी करने की कलाकारी दिखाते रहते हैं.
फिलहाल, आगे की मूल चर्चा. उनकी उम्र हो गई थी विवाह योग्य सो एक परिवार खोजबीन करते हुए उनके घर तक पहुँचा. अब पता नहीं उनका सम्बन्ध वहाँ नहीं होना था अथवा हम लोगों को एक मजेदार संस्मरण प्राप्त होना था सो लड़की वालों की मुलाकात सीधे उन्हीं भाईसाहब से हो गई. घर में कोई और बड़ा न होने के कारण बातचीत का अगला क्रम चलता उसके पहले ही तीन रुपये की उधारी का धमाका हो गया.
मेहमाननवाजी के क्रम में पानी वगैरह के साथ बात आगे बढ़ने से पहले ही उरई के प्रसिद्द व्यंजन को खाने की इच्छा व्यक्त की गई. उनके खुद के और उनके अभिन्न मित्र के पास न तो वह व्यंजन पुड़िया निकली और न ही उसे मँगवाने के लिए समुचित धन निकला. समुचित धन से तात्पर्य आप लोग हजार-लाख रुपयों से न लगा लीजिएगा. व्यंजनविहीन और धनविहीन जेबों को देखने के बाद घर आये हुए सम्बन्धियों ने अपनी जेब से पाँच रुपये निकाल कर व्यंजन मँगवाने की आतुरता दिखाई.
बस, अब आप समझे समुचित धन. ये उस दौर की बात चल रही है जबकि व्यंजन-पुड़िया चवन्नी-अठन्नी के भाव मिला करती थी. भावी दूल्हा बनने का ख्वाब आँखों में लगभग सजा चुके भाईसाहब ने अपने किसी चेले लला को रुतबे सहित आवाज़ दी. लला प्रकट हुए तो मेहमानों की जेब से निकले पाँच रुपये भाईसाहब के हाथों से गुजरते हुए लला की हथेलियों तक पहुँच गए. भावी दूल्हे ने लला को आदेश सुनाया, दुकान पर जाकर दो रुपइया के मौनी गुटका ले अइयो और तीन रुपइया उधार हैं बे चुका दइयो.
समझ सकते होंगे आप, मेहमान के पाँच रुपयों से ही उनके लिए व्यंजन-पुड़िया (अब तो आप समझ ही गए होंगे इसे, ये है गुटखा) मँगवाना और अपने तीन रुपए उधार चुका देना संबंधों को आगे न ले जा सका. हमें तो लगता है कि बेचारे लड़की वाले यहाँ चूक कर गए. उन भाईसाहब ने जिस अधिकार से पाँच रुपयों से खातिरदारी और अपनी उधारी को निपटा दिया, वैसा अधिकार जताने वाला लड़का मिलना गौरव की बात होती उन लड़की वालों के लिए. बहरहाल, वे लोग इस गौरव से वंचित रह गए और हम लोगों को एक रोचक संस्मरण के साथ ठहाके लगाने का मौका अवश्य दे गए.
तीन रूपया उधारी का मामला कहानी का हिस्सा है या किसी संस्मरण का, समझ नहीं आया।
जवाब देंहटाएंये एक भाईसाहब के द्वारा सुनाया गया उनका संस्मरण है.
हटाएं