02 अगस्त 2020

ज़िन्दगी इम्तिहान लेती है

एक पुरानी फिल्म का गीत है, ज़िन्दगी इम्तिहान लेती है, इस गीत का नहीं बस इतने शब्दों का सार वास्तविक समझ आता है। गीतों में, कविताओं में गहराई छिपी होती है, एक संदेश छिपा होता है। कुछ इसी तरह की स्थिति इन शब्दों में है। ज़िन्दगी का एक-एक पल व्यक्ति की परीक्षा तो लेता ही रहता है। बचपन से लेकर ज़िन्दगी के अंतिम क्षणों तक इंसान परीक्षाओं से दो-चार होते-होते आगे बढ़ता रहता है। शैक्षणिक संस्थानों की परीक्षाओं से इतर ये परीक्षाएँ इंसान को मजबूत भी बनाती हैं, कमजोर भी बनाती हैं। 


सोचने का विषय ये है कि क्या सभी इंसान परीक्षाओं से दो-चार होते हैं? क्या ज़िन्दगी सभी की परीक्षा लेती है? या फिर ज़िन्दगी उनका इम्तिहान लेती है जो कुछ अलग करना चाहते हैं? हम अपने आसपास देखें तो स्पष्ट समझ आता है कि समाज में व्यक्तियों की अपनी स्थिति, प्रस्थिति के अनुसार परीक्षा तो होती ही है पर उसका स्वरूप बदला हुआ होता है। एक वरिष्ठ की परीक्षा का स्तर अलग होता है, बच्चे की परीक्षा का स्तर अलग होगा। एक अमीर के लिए उसके इम्तिहान का स्तर अलग होगा, एक गरीब के लिए यही स्थिति अलग होगी। 

कहने का तात्पर्य महज इतना है कि हम सभी देखा-देखी दूसरे के सापेक्ष कार्य करने की प्रवृत्ति को पाल बैठे हैं। हम अपनी क्षमताओं को जाँचे-परखे बिना ही कार्य करने उतर पड़ते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि इंसान को कई बार असफलताओं का सामना करना पड़ता है। इससे उसके अंदर निराशा का भाव पैदा हो जाता है। ऐसे में इस बात को स्वीकार करते हुए कि ज़िन्दगी इम्तिहान लेती है और सबकी स्थिति के अनुसार अलग-अलग रूप में लेती है। बस हम सबको अपनी क्षमताओं की जानकारी रखते हुए कार्य करना चाहिए, ज़िन्दगी के इम्तिहान को पार करना चाहिए। 

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