उस
उम्र में पहली कविता लिखी गई जब कविता की समझ बाल-कविताओं के रूप में ही विकसित हो
रही थी. न केवल लिखी बल्कि पिताजी के
प्रयास से दो समाचार-पत्रों में प्रकाशित भी हुई थी. तत्कालीन पाठ्य-पुस्तकों में,
समाचार-पत्रों के बच्चों का कोना, बाल सभा जैसे साप्ताहिक स्तंभों, बाल पत्रिकाओं
में प्रकाशित कविताओं के द्वारा कविताओं को सिर्फ पढ़ा ही जा रहा था. न ऐसा विचार
था और न ही कहीं मन में था कि कभी कविताएँ भी लिखी जाएँगी. अपनी पहली कविता के
प्रकाशन बाद भी जबकि बड़ों से आशीर्वाद; साथियों से, छोटों से स्नेह मिला तब भी ऐसा
विचार मन में नहीं आया था. नौ-दस वर्ष की उम्र में पहली कविता के लेखन-प्रकाशन के
बाद भी कविताएँ लिखते रहने जैसा कोई भाव मन में नहीं जागा.
आज
जबकि गद्य के साथ-साथ पद्य लेखन भी लगातार हो रहा है इसके बाद भी ऐसा लगता है कि
कविता लिखी नहीं जा सकती है. जी हाँ, हमारे साथ यही वास्तविकता है. आज भी हम कविता
लेखन के नाम पर कविता लिख नहीं पाते हैं. यह एक स्वतः स्फूर्त प्रक्रिया है जो
क्षणिक भाव-बोध के साथ आरम्भ होती है और किसी रचना के रूप में इतिश्री को प्राप्त
होती है. हमारा व्यक्तिगत रूप से ऐसा मानना है कि काव्य-लेखन कोई प्रक्रिया नहीं
है वरन मन की अनुभूति है. कविता, गीत, ग़ज़ल आदि विभिन्न काव्य-विधाओं का लेखन हमसे कभी
सायास नहीं हुआ. ऐसा कभी नहीं हुआ कि सोच-विचार कर कागज-कलम लेकर बैठे और एक
काव्य-रचना का जन्म हो गया. हमारे साथ ऐसा अनायास होता है. कभी ट्रेन-बस में
यात्रा करते समय, कभी घर से महाविद्यालय आते-जाते समय, कभी बाजार में नितांत
आवारगी से टहलते हुए, कभी देर रात बिस्तर पर सोने की कोशिश करते समय.
सभी
काव्य-रचनाओं के केन्द्र में कोई न कोई घटना, स्थिति, व्यक्ति रहा है. प्रेम
सम्बन्धी काव्य-रचनाओं पर हमारे साथियों का, पाठकों का, श्रोताओं का एक मासूम सा
सवाल हमसे हमेशा रहा है कि ये रचनाएँ किसके लिए लिखी गईं? यह सत्य है कि कुछ
रचनाएँ अपने उस अतीत को याद करते हुए लिखी गईं, जो हमारा वर्तमान नहीं बन सका. यह
भी सच है कि कुछ काव्य-रचनाओं में उस प्रेम की खुशबू है जो हमारे साथ न होकर भी
हमारे जीवन में घुली-मिली है. चूँकि हमें अभिव्यक्ति का सर्वाधिक सहज और प्रभावित
करने वाला माध्यम काव्य समझ आता है. बहुत ही कम शब्दों में किसी भी बात को दिल की
गहराइयों तक बहुत ही आकर्षक और आलंकारिक रूप में उतारा जा सकता है. यही कारण है कि
हमने अपनी कविताओं के द्वारा अपने मन की, अपने दिल की बात कहने का प्रयास किया है.
इसी के चलते अतुकांत रचनाओं का लेखन भी खूब हुआ है. अतुकांत होने के बाद भी उनमें
एक तरह लयबद्धता बनी रहे, इसका प्रयास लगातार किया है. बहुत सी रचनाओं में
व्याकरणिक अनुशासन दिखाई नहीं देता है. इसके पीछे हमारा स्वयं का मानना है कि जब
कोई रचना स्वान्तः-सुखाय के रूप में हो, अनायास भावबोध के कारण जन्मी हो,
अनुभूतियों का प्रस्फुटन हो तो उसे किसी बंधन से मुक्त ही माना जाना चाहिए, रखा
जाना चाहिए. शेष तो बस लिखने का प्रयास अभी भी है, लगातार है.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
जो दिल से निकले वही दिल पर वार करती है।
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