प्रेम,
प्यार, मुहब्बत, इश्क ये
शब्द आज के समय में गंभीरता से नहीं लिए जाते हैं. इनके पीछे कहीं व्यंग्य का भाव,
कहीं उपेक्षा का भाव, कहीं अन्योक्ति का भाव छिपा दिखता है. इश्क की चर्चा होने से
पहले ही सामने वाला अपने दिमाग में एक छवि उभर कर स्थायी भाव ग्रहण कर लेती है. इस
स्थायी भाव में एक लड़का होता है और एक लड़की शामिल हो जाती है. इनके बीच के संबंधों
की परिभाषा स्वतः गढ़ी जाने लगती है. इस परिभाषा में भले ही प्रेम शामिल होता ही है
मगर इसके साथ ही प्रेम को लेकर बना हुआ नजरिया भी शामिल होता है. यह परिभाषा प्रेम
के नाम पर कम बल्कि स्त्री-पुरुष के दैहिक संबंधों के नाम पर अधिक बनाई जाने लगती
है. लोगों द्वारा ये मान लिया जाता है कि प्रेम करने वाले दो विषमलिंगियों के बीच शारीरिक
सम्बन्ध बने ही बने होंगे. ये भी माना जाने लगता है कि वे दो प्रेम करने वाले आपस में
शादी करेंगे ही. इस शादी करने वाले विचार के साथ प्रेम करने वालों के भी विचार
अपना साम्य बिठाने लगते हैं. इसके साथ-साथ समाज में ये मान्यता बनी हुई है कि दो प्रेम
करने वालों को आपस में शादी करनी ही चाहिए. प्रेम सम्बन्धी मान्यताओं, विचारों को लेकर
लोगों में इतना भ्रम है कि आज भी प्रेम का वास्तविक स्वरूप सामने नहीं आ पाया है.
उक्त
विचारों और ऐसे ही अनेक विचारों के सन्दर्भ में कई सवाल मन में हमेशा उठते रहे
हैं. ये कहाँ लिखा है कि दो प्रेम करने वालों के बीच शारीरिक सम्बन्ध बने ही होंगे?
ये कहाँ लिखा है कि दो प्रेम करने वालों को आपस में शादी करनी ही चाहिए?
ये कहाँ की मान्यता है कि बिना शादी किये प्रेम सफल नहीं कहा जाता?
ये किस विचारक ने कहा है कि प्रेम का अंतिम स्वरूप शादी ही है?
यहाँ प्रेम सम्बन्धी पावन विषय पर बिना किसी पूर्वाग्रह के ध्यान रखना
चाहिए कि यह वही समाज है जहाँ राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है. यह वही समाज है जहाँ
मीरा को स्त्री-सशक्तिकरण का मानक माना जाता है. क्या इन दोनों ने कृष्ण के साथ विवाह
किया था? क्या इन दोनों ने कृष्ण के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये
थे? क्या दोनों का प्रेम असफल माना जायेगा? यदि दोनों का प्रेम असफल है तो आज भारतीय समाज दोनों की पूजा क्यों करता है?
क्यों राधा-कृष्ण के चित्र अपने पूजागृह में लगाये होता है? क्यों नहीं राधा की जगह कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी की तस्वीर लगाई गई होती है?
असल
में प्रेम एक विशुद्ध पावन अवधारणा है जो दो चरों के बीच की भावनात्मक स्थिति से
जन्मती है. इन दो चरों में दोनों सजीव हो सकते हैं, एक सजीव एक
निर्जीव हो सकता है. यहाँ प्रेम करने वालो दो विषमलिंगी भी हो सकते हैं, दो समलिंगी भी हो सकते हैं. प्रेम करने वाले प्रेमी-प्रेमिका हो सकते हैं,
अन्य दूसरे रिश्ते वाले भी हो सकते हैं. यहाँ प्रेम का वास्तविक स्वरूप
समझने की जरूरत है. प्रेम कोई ऐसा स्त्रोत नहीं जो एक व्यक्ति से करने के बाद सूख जाता
है. प्रेम कोई ऐसा धन नहीं जो एक पर खर्च कर दिया गया तो अन्य किसी के लिए शेष नहीं
बचता है. प्रेम एक तरह की भावना है, एक तरह की संवेदना है जो
एक या अनेक से हो सकती है. एकसाथ कई से हो सकती है. समान रूप से हो सकती है.
यहाँ
ध्यान यह रखने की जरूरत होती है कि प्रेम संबंधों में सामने वाले के साथ किसी तरह का
विश्वासघात न हो. इसके पीछे कारण यह कि प्रेम आपस में विश्वास की माँग करता है. किसी
भी व्यक्ति का यह कहना कि एक बार प्रेम करने के बाद किसी दूसरे से कैसे प्रेम किया
जा सकता है, सिद्ध करता है कि उसके दिल में प्रेम नहीं वरन एक
व्यक्ति विशेष के प्रति आकर्षण का भाव बना रहा है. प्रेम का सम्बन्ध स्पष्ट रूप से
सामने वाले के प्रति भावनात्मक, सकारात्मक भावना रखना है. ऐसा
कैसे हो सकता है कि कोई व्यक्ति एक व्यक्ति के प्रति भावनात्मक रूप से सकारात्मक रहे
और अन्य व्यक्तियों के प्रति नकारात्मक हो जाये.
असल
में प्रेम को लेकर एक ऐसी मानसिकता बनी रही है जो समय के साथ रूढ़ हो गई है. ऐसा माना
जाने लगा है कि जिससे प्रेम किया जाये यदि उससे शादी नहीं होती है तो वह प्रेम असफल
माना जायेगा. ये भी माना जाता है कि प्रेम करने वाले व्यक्ति से शादी न हो पाने पर
किसी दूसरे व्यक्ति से प्रेम करना अपराध है. ऐसा भी माना जाता है कि इस जीवन में एक
ही व्यक्ति से प्रेम किया जा सकता है, यदि एक से अधिक लोगों से प्रेम किया जाता है
तो वह भी अपराध है. ये सारी स्थितियाँ समाज में प्रेम के विस्तार पर अंकुश लगाती हैं.
प्रेम का सीधा सा सम्बन्ध दो आपसी लोगों में भावनात्मकता का विस्तार है. यहाँ यदि उनके
मन में आपस में एक-दूसरे के लिए छल, विश्वासघात, धोखा नहीं है तो प्रेम का यही सफलतम रूप है. देखा जाये तो प्रेम किसी संकुचन
का नहीं वरन विस्तार का नाम है. काश! इसे समझा जा सकता, प्रेम
करने वालों द्वारा भी, प्रेम संबंधों का निर्धारण करने वालों
द्वारा भी.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सही कहना है आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, सही और सटीक लिखा आपने। राधा कृष्ण को पूजने वाले वास्तविक जीवन में प्रेम को अमर्यादित मानते हैं। दोहरी मानसिकता है पर यही समाज का सच है। विचारपूर्ण आलेख के लिए बधाई।
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