जनपद
जालौन की तहसील कोंच के उत्साही युवा पारसमणि द्वारा कोंच फिल्म फेस्टिवल का आयोजन
ऑनलाइन किया जा रहा है. उस युवा की क्षमता पर हमें भरोसा है, यदि कोरोना संक्रमण
से सुरक्षित रहने की, लॉकडाउन-अनलॉक जैसी व्यवस्था का पालन करने की उसकी ईमानदारी
न होती तो निश्चित ही ये आयोजन वास्तविक रूप में बहुत ही भव्य होता. फ़िलहाल तो
इन्हीं बाध्यताओं, नियमों का पालन करते हुए इस फेस्टिवल का आयोजन ऑनलाइन किया गया.
इसमें निश्चित समय पर अनेक कलाकारों को, फिल्म से जुड़े लोगों को, व्याख्यान देने
वालों को आमंत्रित किया गया. सभी ने अपनी-अपनी प्रतिभा का परिचय यहाँ दिया.
इसी
में हमें भी ऑनलाइन अपने विचार प्रस्तुत करने का अवसर दिया गया. ऑनलाइन बोलना, वो
भी उस स्थिति में जबकि आपके सामने कोई सुनने वाला न दिखाई दे, बहुत ही अजब सा
अनुभव देता है. इसी कारण से बहुत कम लाइव कार्यक्रमों में सहभागिता कर पाते हैं. इस
कार्यक्रम में सहभागिता करना हमारा स्नेहिल बंधन था. पारस के स्नेहिल आदेश के बाद
इंकार कर पाना संभव ही नहीं होता है. कतिपय कारणों से इस बार उसके कहे अनुसार वीडियो
बनाकर नहीं भेज सके. फिलहाल, ऑनलाइन आकर नए फ़िल्मी कलाकारों से बात करने का अवसर
मिला.
इस
पोस्ट के द्वारा अपनी उसी बात को लगभग दोहराते हुए जनपद जालौन के उन सभी कलाकारों
से, जो फिल्म निर्माण में लगे हैं, इतना निवेदन है कि वे विषयों का निर्धारण कुछ
इस तरह से करें जो आम विषय से अलग हो. यह सत्य है कि छोटी जगहों के फिल्मकार बड़े
बैनर का मुकाबला किसी भी स्थिति में नहीं कर सकते. ऐसी स्थिति में बजाय हतोत्साहित
होने के वे ऐसे विषयों का चुनाव करें जो अपने आपमें अलग दिखाई दे. इसके साथ-साथ
जनपद जालौन में साहित्यिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत की अत्यंत समृद्ध है. इनके
बारे में भी समाज को बताये जाने की आवश्यकता है. फिल्मकारों को इस तरफ भी ध्यान
दिए जाने की आवश्यकता है.
यहाँ
के फिल्मकारों को चंद छोटी-छोटी बातों को ध्यान रखना होगा.
- उनकी बनाई फ़िल्में व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर सकतीं. ऐसे में ऐसे विषयों पर फ़िल्में बनाई जाएँ जो लोगों का ध्यान खींचें.
- बजाय कमाई करने के लोगों तक अपनी पैठ बनाने के लिए फिल्मों को बनाया जाना चाहिए.
- उन विषयों पर फिल्म बनाने से बचना चाहिए जो आम हैं, सामान्य हैं. किसी विशेष विषय को ऐतिहासिक, सांस्कृतिक रूप से सम्बद्ध करते हुए दिखाया जाना चाहिए.
- उन स्थानीय बिन्दुओं को भी परिलक्षित करना चाहिए जो आज भी ऐतिहासिक, अमूल्य होने के बाद भी जनमानस की दृष्टि से ओझल हैं.
- अपनी-अपनी फिल्मों को इधर-उधर रिलीज के चक्कर में फँसने के सीधे इंटरनेट पर, विभिन्न सोशल मीडिया मंचों पर रिलीज करके बहुतायत लोगों तक अपनी पहुँच बनानी चाहिए.
- सभी फिल्मकारों को खुद का विशेष समझने के अहंकार से मुक्त होने की आवश्यकता है. ऐसा करके वे सामान्य जन से सीधे तौर पर जुड़ सकेंगे.
- सभी कलाकारों को यह समझना होगा कि नुक्कड़ नाटक, मंचीय नाटक, रंगमंच, फिल्म के अभिनय में बहुत अंतर है. नुक्कड़ अथवा रंगमच का तरीका लेकर फिल्म में अभिनय नहीं किया जा सकता है.
- वरिष्ठ कलाकार साथियों को समय-समय पर कार्यशाला का आयोजन करना चाहिए ताकि नए लोग कुछ और नया सीख सकें.
- इसके साथ-साथ जनपद के सभी साथियों को मिलकर एक मंच, एक बैनर की स्थापना करनी चाहिए. इसमें वे सब एकजुट होकर अपनी-अपनी समस्याओं का निदान कर सकते हैं.
बातें
तो और भी बहुत हुईं मगर लगता नहीं कि उन पर अमल किया जायेगा. कॉलेज की पढ़ाई पूरी
करने के बाद बहुत प्रयास किये कि यहाँ के सक्रिय कलाकार एक मंच पर आयें मगर संभव न
हो सका. आज जबकि लोगों में होड़ ज्यादा है, आपसी तनाव अधिक है, ऐसे में सबका एक मंच
पर आना कल्पना ही लगता है. अपनी बात कहनी थी सो कह दी, मानना या न मानना सामने
वाले की मर्जी. फ़िलहाल तो बड़े अच्छे कार्यक्रम के लिए सभी आयोजकों को बधाई,
शुभकामनायें.
.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
मेरी ओर से भी शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंअरे वाह। बहुत अच्छी और ज़रूरी बात कही आपने। सफल कार्यक्रम के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएं