लॉकडाउन
के बाद अब नई शब्दावली चलन में आ गई है, अनलॉक. वैसे इन दोनों शब्दों से लोग पहले
से परिचित रहे हैं मगर इस सन्दर्भ में पहली बार प्रयोग कर रहे हैं. इस लॉकडाउन
लगने, खुलने को लेकर लोगों में अजब सी उथल-पुथल है. जब इसे लगाया गया था तो इनके
पेट में मरोड़ उठी थी. उसके बाद जब इसका दूसरा भाग शुरू हुआ तो फिर ज्यादा मरोड़
हुई. पहले मरोड़ उठी थी लगने को लेकर फिर मरोड़ उठी एकाएक लगने को लेकर. श्रमिकों,
मजदूरों के परेशान होने को लेकर. इन मरोड़धारियों को जानकारी नहीं थी कि ये क्या
होने लगा है. इसी कारण से उस समय बमचक नहीं मचाई जबकि लॉकडाउन शुरू हुआ था. जब कुछ
दिन बाद दिमाग ने इसका विश्लेषण, आकलन करना शुरू कर दिया तो सरकार के कदमों की
समीक्षा होने लगी.
अब
जबकि लॉकडाउन को खोल दिया गया है या कहें कि अनलॉक जैसी स्थिति का आरम्भ हो गया है
तो इन्हीं लोगों को फिर समस्या होने लगी है. अब समस्या यह है कि आखिर लॉकडाउन
हटाया क्यों जा रहा? इनकी समस्या ये भी है कि जब संख्या कम थी तो लॉकडाउन लगाया
गया था, अब जबकि संख्या बढ़ने लगी है तो लॉकडाउन हटाया जाने लगा है. ऐसे लोगों की
समस्या ठीक पहले दिन वाली है. तब भी अपना दिमाग न लगाते हुए बस विरोध करना था, आज
भी दिमाग न लगाते हुए बस विरोध करना है. कभी सोचा है कि इतने लॉकडाउन के बाद भी
संख्या बढ़ रही है तो यदि लॉकडाउन न किया होता तो यही संख्या मार्च के अंत में
होती. फिर यही अतिबौद्धिक लोग सरकार के कार्यों की आलोचना करते. सरकार की
तैयारियों की बुराई करते.
किसी
ने कभी सोचा होगा कि देश को कभी इतनी बड़ी संख्या में पीपीई किट की आवश्यकता पड़ेगी?
किसी ने कभी इसका आकलन किया होगा कि देश में कभी भी सामान्यजन को भी एन-95 मास्क की आवश्यकता होगी? किसी भी लैब ने या किसी भी चिकित्सकीय संस्थान
सहित किसी भी बुद्धिजीवी ने विचार किया था कि देश को कभी कोरोना टेस्टिंग किट की
आवश्कता पड़ेगी? क्या कभी किसी ने विचार किया था कि महज इसी एक बीमारी के लिए देश
में प्रतिदिन एक लाख से अधिक लोगों के सैंपल इकठ्ठा किये जायेंगे, उनकी जाँच की
जाएगी? क्या किसी ने कभी अस्पताल जाने के दौरान सोचा होगा कि कोई दिन ऐसा भी आएगा
जबकि किसी बीमार के लिए आइसोलेशन वार्ड जैसी जगह भी बनानी पड़ेगी? किसी ने भी ऐसा
नहीं सोचा था. संभवतः ऐसा किसी भी देश की सरकार ने नहीं सोचा होगा.
ऐसे
में जबकि आपके सामने, परिवार के सामने, देश के सामने, सरकार के सामने ऐसी कोई
स्थिति आ जाये जो एकदम से नई हो तो क्या किया जाये? क्या उससे बिना तैयारी के लड़ना
शुरू कर दिया जाये? क्या उससे निपटने के साधनों को उपलब्ध नहीं करवाया जाये? बस
ध्यान रखें कि सरकार ने आरम्भिक दिनों में लॉकडाउन करके यही सब किया. इतने दिनों में
लॉकडाउन के कारण मरीजों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ी. लोगों की आवाजाही कम रही, देश भर
की सारी गतिविधियाँ ठप्प रहीं जिससे सरकार और उसके सहयोगीजनों को अपनी तैयारी करने
का समय मिला. जो देश दे महीने पहले पीपीई किट बनाता न हो वह अब निर्यात करने की
स्थिति में है. जिस देश में टेस्टिंग किट बनती न हो वह अब एक दिन में एक लाख से
अधिक जाँच कर रहा है. जिस देश की चिकित्सा व्यवस्था को दोयम दर्जे का माना जाता
रहा हो उसने रेलवे की बोगियों को महीने भर से कम समय में आइसोलेशन वार्ड में बदल
दिया. अब लाखों की संख्या में बेड तैयार हैं, किसी भी असामान्य स्थिति से निपटने
को. क्या ये आपके लिए संतोष की बात नहीं है?
संभव
है कि बहुतों के लिए इसमें भी सरकारी हेरफेर दिखाई दे तो फिर स्पष्ट शब्दों में
इसे ऐसे समझिये. सरकार ने लॉकडाउन आपके लिए नहीं लगाया था बल्कि अपनी तैयारियों के
लिए लगाया था. सरकार ने अब अनलॉक किया है तो वो भी आपके लिए नहीं किया है बल्कि देश
की अर्थव्यवस्था को सँभालने के लिए किया है. दो महीने के लॉकडाउन में सरकार ने
आपको खूब समझा दिया, तोते की तरह रटवा दिया कि कैसे बचना है कोरोना से. क्या-क्या
सावधानियाँ अपनानी हैं. उसने आपको हर तरह से प्रशिक्षित कर दिया है. अब ये आपकी
मनमर्जी पर है कि आप असावधानी में कोरोना को चपेटते हैं ये फिर कोरोना आपको अपने
लपेटे में लेता है. अब ये आपके कदम बताएँगे कि आप अपने कार्य के लिए बढ़ रहे हैं या
फिर कोरोना की तरफ जा रहे हैं. मर्जी आपकी क्योंकि स्वास्थ्य है आपका, परिवार है
आपका, जान है आपकी.
.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
सामयिक और आलेख।
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख
जवाब देंहटाएंइसी उहापोह ने तो सबसे ज्यादा संकट पैदा किया । आपने सीधा सपाट लिख दिया । साधुवाद
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंऐसे में जबकि आपके सामने, परिवार के सामने, देश के सामने, सरकार के सामने ऐसी कोई स्थिति आ जाये जो एकदम से नई हो तो क्या किया जाये? क्या उससे बिना तैयारी के लड़ना शुरू कर दिया जाये? क्या उससे निपटने के साधनों को उपलब्ध नहीं करवाया जाये? बस ध्यान रखें कि सरकार ने आरम्भिक दिनों में लॉकडाउन करके यही सब किया. इतने दिनों में लॉकडाउन के कारण मरीजों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ी. लोगों की आवाजाही कम रही, देश भर की सारी गतिविधियाँ ठप्प रहीं जिससे सरकार और उसके सहयोगीजनों को अपनी तैयारी करने का समय मिला.
बिल्कुल सही बात है ,बोलना आसान करना मुश्किल होता है, दोष निकालने की बजाय सहयोग दे ,तभी मुसीबत टलेगी ।बढ़िया आलेख
Very nice
जवाब देंहटाएंसहमत आपकी बात से ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख
जवाब देंहटाएं